रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना होता है। यह महीना शाबान के महीने के बाद शुरू होता है। रमजान में रोजा रखने की शुरुआत चांद दिखने के अगले दिन से होती है। साल 2024 में, 11 मार्च से मक्का में चांद दिखने के बाद रमजान की शुरुआत हो चुकी है। भारत के साथ कुछ एशियाई देशों में आज यानी 12 मार्च से रोजा रखा जाना शुरू हो गया है।
रमजान बेहद पवित्र महीना माना जाता है। रमजान के महीने में दुनियाभर के मुसलमान रोजा रखते हैं, जिसका मतलब है दिन भर के लिए बनाए गए कुछ तरीकों का पालन करना, सुबह से लेकर सूर्यास्त तक भोजन और पानी का एक कतरा भी न लेना। इसके साथ ही रमजान के महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रात में तरावीह की नमाज भी पढ़ते हैं।
रमजान के महीने में रोजा रखने के पीछे की वजह
असल में इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा दूसरी हिजरी यानी इस्लामी पंचांग में शुरू हुई है। रोजा यानी उपवास को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब होता है रुकना या ठहरना। कुरान की दूसरी आयत सूरह अल बकरा में साफ तौर पर फरमाया गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह से फर्ज किया जाता है जैसे तुमसे पहले की उम्मत पर फर्ज था। मुहम्मद साहब मक्के से हिजरत (Migration) कर मदीना पहुंचें। इसके एक साल के बाद मुसलमानों को रोजा रखने का हुक्म आया। इस तरह से दूसरी हिजरी में रोजा रखने की परंपरा इस्लाम में शुरू हुई।
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मुफ्ती तारिक मसूद के मुताबिक रमजान के महीने में रोजा रखने वाले लोग सुबह से सूरज डूबने तक रोजा के हालत में होते हैं, इस दौरान, रोजा रखने वाले लोग पांच वक्त की नमाज के साथ रात में तरावीह की नमाज अदा करते हैं, कुरान पढ़ते हैं, और अच्छे कामों को करने और लोगों की खिदमत करने में यकीन रखते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक,इसी महीने में पैगंबर मोहम्मद साहब को साल 610 में लैलतुल-कद्र के मौके पर अल्लाह की तरफ से कुरान शरीफ की आयतें दुनिया में नाज़िल (Descended) की गई थी।
क्यों दिन भर रखा जाता है रोजा
ऐसा भी माना जाता है कि रमजान के महीने में रोजा रखने से हमें गरीबों और जरूरतमंदों की पीड़ा समझने में मदद मिलती है। जब हम भोजन और पानी से दूर रहते हैं, तो हम उन लोगों की जज्बात को समझ सकते हैं, जो लोग भोजन और पानी की कमी से जूझ रहे हैं। रमजान के महीने में अल्लाह की इबादत किया जाता है, जैसे नमाज पढ़ना, कुरान पढ़ना और चैरिटी यानी दान के साथ-साथ ऐसे तमाम नेक काम किया जाता है।
रमजान के महीने में एक सवाब के बदले मिलती है 70 फीसदी नेकी
रमजान को बरकत का महीना कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आम दिनों में जहां आपको किसी नेकी के बदले एक फीसदी का सवाब मिलता है, तो वहीं रमजान के महीने में 70 फीसदी सवाब मिलता है। इस महीने में दोजख (Hell) के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं। इस दौरान, लोग 12 से 14 घंटे तक रोजा रखते हैं, जिससे शारीरिक तौर पर पाचन तंत्र को आराम मिलता है, मेटाबॉलिज्म बढ़ता है और वजन घटाने में भी मदद मिलती है।
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