गंगा नदी को हिंदुओं की सबसे पवित्र नदी माना जाता है। भारत के कई हिस्सों में बहने वाली नदी अपने जल से अनगिनत लोगों को तृप्त करती है। अपने उद्गम स्थान से लेकर हिमालय की गोद में जाने तक इस नदी का अपना अलग ही इतिहास और कहानी है।
इस नदी को आपने अक्सर भगवान शिव की जटाओं से निकलते हुए देखा होगा। मेरी ही तरह आपके मन में भी कई बार ये ख्याल आया होगा कि आखिर ये नदी शिवजी की जटाओं में कैसे आई? आज भी ये नदी भगवान शिव की तस्वीरों और मूर्तियों में उनके सिर से नीचे की ओर बहती दिखाई पड़ती है।
यदि हम पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा नदी की बात करें तो यह त्रिदेव से जुड़ी नदी है। यह नदी हिंदू धर्म शास्त्रों में इतनी शुभ मानी जाती है कि इसके जल का इस्तेमाल सभी धार्मिक कार्यों में और पूजा-पाठ के दौरान किया जाता है। आइए जानें इस बात के रहस्य से जुड़ी कुछ बातों के बारे में कि कैसे गंगा नदी शिव जी की जटाओं में स्थापित हुई।
शिव जी की जटाओं में कैसे आईं गंगा
अगर हम भौगोलिक रचना की बात करें तो गंगा नदी का उद्गम हिमालय में स्थित गंगोत्री के ऊपर गोमुख से हुआ है। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार गंगा माता पृथ्वी पर आने से पहले देव लोक में विराजमान थीं।
उस समय भागीरथ की कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। पौराणिक कथाओं की मानें तो गंगा नदी के तेज जल प्रवाह की वजह से उनका धरती पर सीधे ही आना संभव नहीं था, इसलिए भागीरथ ने शिव जी से प्रार्थना की कि उनके प्रवाह को कम करके धरती पर उतारें।
उस समय शिव जी ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में प्रवेश कराया और काफी समय तक वो वहीं विराजमान हुईं। ऐसा भी कहा जाता है कि यदि भगवान शिव नदी को अपनी जटाओं में न समेटते तो वो अपने तीव्र प्रवाह की वजह से धरती को चीरकर पाताल लोक पहुंच जातीं।
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भागीरथ गंगा को धरती पर क्यों लाए
प्राचीन काल में भागीरथ ऋषि ने सौ आत्माओं को मुक्त कराने के लिए एक युक्ति निकाली जिसमें स्वर्ग में रहने वाली गंगा को उनकी राख पर प्रवाहित करने से ही मुक्ति मिल सकती थी। इसलिए उन्होंने घोर तपस्या की।
भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा उसके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनकी प्रार्थना पूरी करने के लिए धरती पर जाएंगी। चूंकि उस समय वो स्वर्ग से बहती थीं तो उसका बल मूसलाधार था जिसे पृथ्वी सहन नहीं कर सकती थी और केवल भगवान शिव ही उस प्रवाह को धीमा करने में सक्षम थे।
शिव जी ने जटाओं में ही गंगा को क्यों कैद किया
ऐसी मान्यता है कि गंगा अपनी शक्तियों की वजह से अत्यंत घमंडी थीं। इसी वजह से जब भागीरथ ने भगवान शिव से गंगा के प्रवाह को कम करने की प्रार्थना की तब उन्होंने अपने केशों की जटाएं खोलीं और उनमें गंगा समेटा, जिससे गंगा का घमंड चूर हो सके। जब गंगा को अपनी गलती का एहसास हुआ तब उसने क्षमा प्रार्थना की, तो शिव जी ने उन्हें अपने सिर से बहने दिया।
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पुराणों में है गंगा नदी की उत्पत्ति की कहानी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा नदी की उत्पत्ति उस समय हुई जब भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अपने अवतार में ब्रह्मांड को पार करने के लिए दो कदम उठाए। उस समय दूसरे चरण में विष्णु के बड़े पैर के अंगूठे ने गलती से ब्रह्मांड की दीवार में एक छेद बना दिया और इसके माध्यम से गंगा नदी का पानी गिरा दिया।
उस समय भगीरथ की तपस्या से से प्रसन्न होकर देवता, गंगा को पृथ्वी पर उतारने के लिए सहमत हुए और गंगा का पृथ्वी पर आगमन हुआ।
इस प्रकार पवित्र गंगा नदी भगवान शिव की जटाओं में आईं और सदियों से ये अपने पवित्र जल से भक्तों को तृप्त करती आ रही हैं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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