शिव और माता पार्वती के प्रेम के बारे में तो हर कोई जानते है लेकिन क्यो आप जानती हैं कि एक बार भोलेनाथ को माता पार्वती के क्रोध का शिकार होना पड़ा था। सिर्फ यही नहीं, देवी पार्वती ने क्रोध की आग में भोलेनाथ को ही श्राप दे दिया। आइए हम आपको बताते गैं कि आखिर क्यों माता पार्वती ने शिव को श्राप दिया था।
देवी पार्वती ने शिव जी के साथ खेला था चौसर
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवी पार्वती ने महादेव के समक्ष चौसर खेलने की इच्छा प्रकट की थी और भोलेनाथ ने देवी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। चौसर का खेल शुरू हुआ और हर चाल में माता पार्वती ने शिव जी को हराया।
खेल में भगवान शिव सब कुछ पार्वती जी से हारने के बाद पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। यह बातें जब कार्तिकेय जी को पता चली तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने पहुंच गए, लेकिन देवी ने खेल के नियम अनुसार वस्तुएं देने से इनकार कर दिया फिर देवी पार्वती और कार्तिकेय जी के बीच खेल शुरू हुआ, जिसमें माता हार गई।
इसके बाद गणपति जी ने भी चौसर के खेल में पिता शिव को हरा दिया। अपनी जीत की खुशी का समाचार गणपति ने माता को सुनाया तो उन्होंने पिता को पुन: कैलाश पर लाने की बात कही।
गणपति जी ने दोबारा प्रयास किया कि वह माता पार्वती को जाकर यह बताए कि वह जीत रहे हैं, लेकिन शिव नहीं माने और इस बार भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेशजी के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डराकर भगा दिया और फिर शिव ने कहा कि अगर पार्वती जी फिर से खेल खेलने को राजी होंगी तो वह लौट आएंगे।यह भी पढ़ें-Mahabharat Katha: श्री कृष्ण ने क्यों किया था अर्जुन के किन्नर पुत्र से विवाह?
माता पार्वती ने क्रोध में दिया शिव जी को यह श्राप
पार्वती जी ने महादेव के प्रस्ताव को स्वीकार किया लेकिन अब शंकर जी अपना सब कुछ हार चुके थे ऐसे में पार्वती ने उनसे पूछा कि अब उनके पास खेल में हारने के लिए क्या है। इस पर नारदजी ने अपनी वीणा शिव जी को सौंप दी और इस खेल में भगवान विष्णु ने शिव जी की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था।
अब खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। गणपति जी महादेव और विष्णु जी की चाल समझ गए और उन्होंने सारी बात माता पार्वती को बताई। जब माता पार्वती को यह बात पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुई और इस खेल में शिव का साथ देने पर रावण को भी श्राप दिया कि एक दिन भगवान विष्णु ही उसका अंत करेंगे। इसके बाद उन्होंने शिव जी को यह श्राप दिया कि उनके सिर पर सदैव गंगा की धारा का बोझ रहेगा।
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