कुलदेवी या कुलदेवता किसी भी परिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्म में इन्हें विशेष रूप से पूजा जाता है और किसी भी शुभ अवसर जैसे शादी, नई बहू के आगमन, बच्चे के जन्म के समय और अन्य कई संस्कारों में कुल देवी या कुल देवता की पूजा की जाती है।
उन्हें एक विशेष वंश या कुल के अधिष्ठाता देवता माना जाता है। कुलदेवी या कुलदेवता की अवधारणा हिंदू परंपराओं में देखी जाती है और ये अलग-अलग समुदायों के बीच भिन्न होती है। एक मुख्य बात ये आती है कि आखिर क्यों होते हैं हम सभी के कुल देवी या देवता होते हैं और इनकी पूजा का क्या महत्व है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इनका महत्व और इनकी अनिवार्यता के बारे में।
कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने का महत्व
ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक परिवार या वंश का एक विशिष्ट दैवीय संबंध होता है जो पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ता है। किसी भी कुलदेवी या कुलदेवता को वंश के संरक्षक के रूप में देखा जाता है, जो उस कुल के सभी सदस्यों की रक्षा करते हैं।
- कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने से परिवार में आशीर्वाद बना रहता है और समृद्धि आती है। कुल देवी और देवता का सम्मान करने और उनकी कृपा पाने से पूरे परिवार पर कृपा बनी रहती है।
- उनकी पूजा परिवार और परंपराओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पूजा किसी विशेष वंश के सदस्यों के बीच सांस्कृतिक पहचान की भावना को मजबूत करती है।
- उनकी पूजा करने से परिवार के सदस्यों के बीच एकता और सामंजस्य बढ़ता है। यही नहीं यदि नव विवाहित जोड़े को कुल देवी और देवता के दर्शन कराए जाते हैं तो उनके रिश्ते में सदैव सामंजस्य बना रहता है।
कैसे की जाती है कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा
कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने की प्रथा अलग समुदायों में अलग होती है और सभी कुलों के देवी-देवता भी अलग होते हैं। किसी भी विवाह संस्कार में उन्हें आमंत्रित करना अनिवार्य माना जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है जिससे कुल की समृद्धि बनी रहे।
उन्हें हमारे वंश का रक्षक माना जाता है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद उसे दर्शन के लिए जरूर ले जाना चाहिए जिससे उसकी सेहत हमेशा अच्छी बनी रहे और जीवन में कोई समस्या न आए।
क्यों होते हैं कुलदेवी या कुलदेवता
कुलदेवी एक शब्द है जो हिंदी में 'कुला' यानी खानदान और 'देवी' से मिलकर बना है। दरअसल कुलदेवी वो देवी हैं जो किसी विशेष खानदान या कुल की आदि देवी होती हैं। उन कुलदेवी की उपासना करते समय उनकी मूर्ति या पिंडी की पूजा की जाती है।
वहीं कुलदेवता को उस कुल के देवता के रूप में पूजा जाता है। जिन्हें उस कुल का आदि देवता माना जाता है। कुलदेवी और कुलदेवता को पारंपरिक रूप से पूजा के लिए आदर्श माना जाता है और इनकी उपासना में विशेष महत्व दिया जाता है। ये परंपरा, पारिवारिक जीवन और सांस्कृतिक पहचान के अहम उसके रूप में प्रतिष्ठित होती है।
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पूर्वजों ने किया है कुलदेवी और कुलदेवता का निर्धारण
किसी भी कुल के देवी या देवता का निर्धारण हमारे पूर्वजों के समय से चला आ रहा है। उस समय उनके इस चुनाव का उद्देश्य था की उनके माध्यम से कुल के सभी लोग अपना संदेश ईश्वर रक् पहुंचाएंगे पूर्वजों ने उपयुक्त कुलदेवता या कुलदेवी या परिवार के देवता को चुना था और उनकी पूजा करने की प्रथा शुरू की थी।
कुलदेवी या देवता की पूजा के बिना शुभ अवसर को अधूरा माना जाता है
कुलदेवी या कुलदेवता को परिवार या कुल का रक्षक माना जाता है और उनके आह्वाहन के बिना किसी भी शुभ अवसर को पूर्ण नहीं माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कुलदेवी या कुलदेवता यदि किसी वजह से नाराज हो जाते हैं तो परिवार पर संकट आने लगते हैं और बनते काम भी बिगड़ सकते हैं।
कुलदेवी या देवता का हिन्दू धर्म शास्त्रों में भी महत्व बताया गया है और उनकी पूजा से घर की समृद्धि बनी रहती है।
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