75th Republic Day Special 2024: हमारे देश में भारतीय महिलाएं हर दौर में अपनी खास पहचान और कृतिमान की वजह से जानी जाती रही हैं। देश की आजादी में ही नहीं, बल्कि देश का संविधान बनाने में भी महिलाओं का अहम योगदान रहा है। बहुत कम लोग जानते हैं कि 15 महिलाएं भारत की संविधान सभा की सदस्य थीं। तो आइए, इस बार 75 वें Republic Day Special यानी 26 जनवरी को इन महान महिलाओं एवं उनके योगदान को याद करते हैं।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें भारतीय नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ। भारत की नाइटिंगेल के नाम से लोकप्रिय सरोजिनी नायडू एक प्रगतिशील महिला थीं। उन्होंने लंदन के किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की थी तथा महात्मा गांधी से काफी प्रभावित थीं और उनके कई आंदोलनों से जुड़ी भी रही थीं।
दुर्गाबाई देशमुख
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 15 जुलाई, 1909 को आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी में हुआ था। उन्होंने न केवल देश को आजाद कराने में, बल्कि समाज में महिलाओं की स्थिति बदलने के लिए भी लड़ाई लड़ी। भारत के दक्षिणी इलाकों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इन्होंने बालिका हिन्दी पाठशाला भी शुरू की। दुर्गाबाई 12 साल की छोटी-सी उम्र में ही असहयोग आंदोलन का हिस्सा बनीं। वकील होने के नाते उन्होंने संविधान के कानूनी पहलुओं में योगदान दिया।
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विजय लक्ष्मी पंडित
वह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन थीं। साल 1932 से 1933, फिर 1940 और साल 1942 से 1943 तक अंग्रेजों ने उन्हें जेल में बंद किया था। साल 1936 में वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गईं और 1937 में स्थानीय सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बनीं। इस पद पर कार्य करने वाली वह पहली महिला थीं।
कमला चौधरी
उन्होंने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया। वह एक प्रसिद्ध कथा लेखिका भी थीं और उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं के अधिकारों पर ही आधारित होती थीं। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के 54वें सेशन में वह उपाध्यक्ष बनीं और 1970 के आखिरी दशकों में वह लोकसभा तक भी पहुंचीं।
बेगम एजाज रसूल
1908 में पंजाब के संगरूर जिले में जन्मी बेगम एजाज अपने पति नवाब रसूल के साथ अल्पसंख्यक समुदाय की महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ बनकर उभरीं एवं मुस्लिम लीग की सदस्य थीं। वह संविधान सभा की अकेली मुस्लिम महिला सदस्य थीं। वह सभा की मौलिक अधिकारों की सलाहकार समिति एवं अल्पसंख्यक उपसमिति की सदस्य थीं।
अम्मू स्वामीनाथन
अम्मू स्वामीनाथन एक सामाजिक कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं। संविधान सभा में यह मद्रास की प्रतिनिधि थीं। वह महात्मा गांधी के नक्शे कदम पर चलना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया।
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राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी, 1889 में उत्तर प्रदेश के शहर लखनऊ में हुआ था। स्वतंत्रता की लड़ाई में इनका अहम योगदान रहा। आजादी के बाद यह प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं। उन्हें हेल्थ मिनिस्टर बनाया गया था। वह संविधान सभा की सलाहकार समिति एवं मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं।
लीला रॉय
लीला रॉय ने शुरू से ही महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की। वह सुभाष चंद्र बोस की महिला सब-कमेटी की सदस्य भी रहीं। संविधान निर्माण में उन्होंने महिला के अधिकारों की बात जम कर उठाई ।
दक्श्यानी वेलायुद्धन
वह एक दलित समुदाय से आई और विज्ञान में स्नातक करने वाली भारत की पहली दलित महिला थीं। वह संविधान सभा की अकेली दलित महिला सदस्य थीं। संविधान के निर्माण के दौरान दक्श्यानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया था।
हंसा मेहता
हंसा मेहता समाज सेविका एवं स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ कवयित्री एवं लेखिका भी थीं। वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में 'ऑल मैन आर बोर्न फ्री एंड इक्वल' को बदल कर 'ऑल ह्यूमन बीइंग आर बोर्न फ्री एंड इक्वल ' करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है।
मालती चौधरी
गरीबों की मसीहा कही जाने वाली मालती चौधरी सत्याग्रह सहित कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं। 1934 में वह गांधी जी की पैदल यात्रा में उनके साथ जुड़ीं। कमजोर समुदायों के विकास के लिए उन्होंने आवाज बुलंद की। इनके अलावा एनी मासकारेन, सुचेता कृपलानी, पूर्णिमा बनर्जी और रेणुका रे संविधान सभा की अन्य सदस्य थीं।
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