अगर आप होम लोन की ईएमआई समय पर नहीं चुका पा रहे हैं, तो लोन सेटलमेंट के बारे में सोच सकते हैं। लोन सेटलमेंट के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। लोन लेने के बाद, यह कैलकुलेट कर लें कि आपको कितना लोन लिया है और बदले में कितना ब्याज चुकाना पड़ रहा है। लोन चुकाने में दिक्कत इसलिए आती है, क्योंकि मूलधन से ज़्यादा ब्याज चुकाना पड़ता है। जितना लंबे समय के लिए लोन लेते हैं, उतना ही ज़्यादा ब्याज भी चुकाना होता है। पिछले कुछ सालों से महंगाई बढ़ने की वजह से लोन की ब्याज दरें भी बढ़ रही हैं।
अगर आप 30 लाख रुपये का होम लोन 20 साल के लिए लेते हैं, तो आपको प्रिंसिपल अमाउंट पर कमोबेश उतना ही ब्याज देना पड़ जाएगा। ऐसे में आपको मकान के लिए करीब-करीब दोगुनी कीमत चुकानी पड़ती है। लोन चुकाने में दिक्कत होने पर, कई लोग मूलधन और ब्याज के जंजाल में फंस जाते हैं और डिफ़ॉल्टर घोषित हो जाते हैं। ऐसे लोगों का क्रेडिट स्कोर हमेशा के लिए चौपट हो जाता है। बाद में जरूरत पड़ने पर उधार लेना हो, तो बैंक बैरंग वापस लौटा देते हैं।
लोन सेटलमेंट करते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए
- लिखित समझौता पाना चाहिए
- दस्तावेज़ों को ध्यान से पढ़ना चाहिए और सौदे की शर्तों और नियमों को समझना चाहिए
- लेनदार से बात करके किसी भी सवाल या चिंता का समाधान करना चाहिए
- सहमत तारीख पर या उससे पहले भुगतान करना चाहिए
- लेनदार से यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह क्रेडिट ब्यूरो में निपटाए गए खाते की रिपोर्ट दे
- अपनी वित्तीय स्थिति का आकलन करना चाहिए
- लोन देने वाले के साथ अपनी चुनौतियों के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए
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लोन का वन टाइम सेटलमेंट क्या है?
लोन का वन टाइम सेटलमेंट, बैंकिंग भाषा में इसे कहते हैं। इसमें, लोन लेने वाले और देने वाले बैंक के बीच बातचीत होती है और दोनों की सहमति होने के बाद, उधारकर्ता को लोन की राशि एक बार में चुकानी होती है। वन टाइम सेटलमेंट में, कम से कम प्रिंसिपल अमाउंट जमा करके लोन सेटलमेंट किया जा सकता है।
इसमें, पेनल्टी, इंटरेस्ट, और अन्य खर्च नहीं देने होते। सेटलमेंट की रकम का फैसला, कर्ज़दार की पैसे चुकाने की क्षमता और परिस्थिति पर गौर करने के बाद लिया जाता है। सेटलमेंट की रकम भरने के बाद, बैंक, टोटल आउटस्टैंडिंग अमाउंट और सेटलमेंट की रकम में जो अंतर आता है, उसे राइट ऑफ करके लोन को बंद कर देते हैं।
वन टाइम सेटलमेंट करने पर, बैंक, उधारकर्ता की क्रेडिट हिस्ट्री में सेटल्ड लिख देते हैं। इससे पता चलता है कि उधार लेने वाले के पास लोन को चुकाने के पैसे नहीं थे।
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लोन सेटलमेंट का जिक्र क्रेडिट हिस्ट्री में भी होता है। क्रेडिट रिपोर्ट में अकाउंटिंग अकाउंट में लोन सेटलमेंट का शेयर अगले 7 साल तक रह सकता है। इसलिए, भविष्य में जब भी किसी भी लोन के लिए आवेदन किया जाता है, तो लोनदाता आपको उच्च जोखिम वाले उधारकर्ता के तौर पर माना जाएगा और आपकी पुनर्भुगतान क्षमता पर भरोसा नहीं किया जाएगा।
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