Uniform Civil Code: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक 7 फरवरी को विधानसभा में पास कर दिया गया है। इसमें सहजीवन (लिव-इन) का पंजीकरण अनिवार्य किए जाने का प्रावधान है। ऐसा न करने पर लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे दोषियों को तीन महिने तक की सजा के साथ जुर्माना हो सकता है। यूसीसी विधेयक में इसके अलावा बहुविवाह (Polygamy) और हलाला (Halala) जैसी प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए इन्हें अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसके साथ ही भारत में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल के लिए क्या है नियम आज हम जानेंगे इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील पंकज शुक्ला से..
क्या है उत्तराखंड में लागू होने वाला समान नागरिक संहिता विधेयक
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में 'समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024' विधेयक पेश किया था। इस दौरान सत्तापक्ष के विधायकों ने विधेयक का स्वागत किया। इसे सदन में चर्चा के बाद पारित कराया जाएगा। विधेयक में कहा गया है कि राज्य में लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हर कपल को क्षेत्र के रजिस्ट्रार के समक्ष एक तय प्रारूप में अपने रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा।
हालांकि, विधेयक में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल में से कोई एक अवयस्क (Minor) है, तो उनके रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा। अगर, दोनों में से किसी एक की भी आयु 21 साल से कम हो, तो रजिस्ट्रार उनके माता-पिता को इस बारे में सूचित करेगा।
इसके अलावा, अगर जोड़े में शामिल किसी एक शख्स की सहमति बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव या किसी झूठ या धोखाधड़ी करके ली गई हो तो भी उनके रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। रिलेशनशिप में रहने की सूचना एक महीने में नहीं देने पर तीन महीने की कैद या दस हजार रुपए का जुर्माना या फिर दोनों दंड लगाए जाएंगे। गलत सूचना देने पर कारावास और 25 हजार रुपए के जुर्माने का प्रस्ताव किया गया है।
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वकील पंकज शुक्ला कहते हैं कि सबसे पहली बात तो यह भी है कि भारत में हमेशा से लिव इन रिलेशनशिप की कॉन्सेप्ट थी ही नहीं, जिसकी वजह से इस विषय पर संविधान में अलग से नियम या कानून नहीं है।
असल में लिव इन रिलेशनशिप में किसी वयस्क लड़के और लड़की के व्यक्तिगत अधिकार या महिलाओं के अधिकार होते हैं, जो उन्हें अब तक मिलते थे। लेकिन इस विधेयक के पास हो जाने पर समान नागरिक संहिता कानून लागू होगा।
इसका मतलब है कि अब तक मुस्लिम धर्म के अलग से कानून लागू होते थे, जो अब लागू नहीं होगा। इसके साथ ही गोवा में पुर्तगालियों ने 1867 में यूसीसी सबसे पहले लागू किया गया था।
तलाक के लिए शादी के एक साल बाद ही अर्जी दे सकेंगे
इस विधेयक में यह प्रस्ताव किया गया है कि असाधारण कष्ट की स्थिति को छोड़कर न्यायालय में तलाक की कोई भी अर्जी तब तक प्रस्तुत नहीं की जाएगी, जब तक कि शादी हुए एक साल की अवधि पूरी न हुई हो।
मुस्लिम समुदाय में तलाकशुदा पत्नी के लिए प्रचलित 'हलाला' को प्रतिबंधित करने के साथ ही उसे अपराधी घोषित करते हुए, उसके लिए दंड का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक में सभी धर्म और समुदाय के लोगों के लिए शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल रखी गई है।
ये समाज इस कानून के दायरे से बाहर
इस विधेयक में प्रदेश के सभी नागरिकों के लिए शादी, तलाक, जमीन, संपत्ति और उत्तराधिकार के विषयों पर धर्म से परे एक समान कानून का प्रस्ताव है। हालांकि, प्रदेश में रहने वाली जनजातियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। विधेयक में बहुविवाह पर रोक लगाने के प्रावधान में कहा गया है कि एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई शख्स दूसरी शादी नहीं कर सकता है।
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लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे को मिलेंगे सभी अधिकार
समान नागरिक संहिता विधेयक में कहा गया है कि लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे को कानूनी तौर पर वैध माना जाएगा। उसे शादीशुदा रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चे के समान ही उत्तराधिकार के अधिकार मिलेंगे इसके अलावा लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरुष साथी छोड़ देता है, तो वह उससे भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
मुख्यमंत्री मी ने इस विधेयक को ऐतिहासिक बताया। समान नागरिकता विधेयक पारित करने वाली पहली विधानसभा बनी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा यूसीसी विधेयक पूरे देश को राह दिखाएगा, आधी आबादी को बराबरी का हक मिलेगा।
समान नागरिक संहिता विधेयक में ये भी है प्रावधान
- किसी भी शख्स को दूसरी शादी करने का अधिकार तभी मिलेगा, जब कोर्ट ने तलाक पर निर्णय दे दिया हो और उस आदेश के खिलाफ अपील का अधिकार नहीं रह गया हो।
- कानून के खिलाफ जा कर शादी करने पर छह महिने की जेल और 50 हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। नियमों के खिलाफ तलाक लेने पर 3 साल की जेल हो सकती है।
- महिला या पुरुष में से किसी ने शादी में रहते हुए किसी अन्य से शारीरिक संबंध बनाए हों, तो इसे तलाक का आधार बनाया जा सकता है।
- अगर किसी ने नपुंसकता या जानबूझकर बदला लेने के लिए शादी किया है, तो तलाक के लिए कोर्ट की शरण ली जा सकती है।
- विवाह के बाद महिला या पुरुष में से कोई भी धर्म परिवर्तन करता है, तो इसे तलाक की अर्जी का आधार बनाया जा सकता है।
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