Right to Repair: अक्सर ऐसा होता है कि किसी कंपनी से बने गैजेट्स कुछ टाइम में अपडेट होने पर पुराने प्रोडक्ट के कल पुरजा बनाना बंद कर देते हैं। इससे कस्टमर्स को सर्विस चार्ज के साथ साथ नए प्रोडक्ट के लिए भी भुगतान करना पड़ता है। इसी पर केंद्र सरकार राइट टू रिपेयर पॉलिसी लाने की तैयारी कर रही है। राइट टू रिपेयर पॉलिसी से कस्टमर्स को अपने खराब पड़े महंगे सामान को फिर रिपेयर कर के इस्तेमाल करने में मदद मिल सकता है।
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क्या है राइट टू रिपेयर पॉलिसी?
राइट टू रिपेयर नीति या मरम्मत का अधिकार, कंज्यूमर को अपने इलेक्ट्रॉनिक सामान की मरम्मत करवाने का अधिकार देती है। ये सामान मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज और गाड़ियां आदि हो सकते हैं। इस नीति का खास मकसद कंपनियों के कंट्रोल को कम करना है और कंज्यूमर को मरम्मत के लिए उनकी डिपेंडेंसी कम करना है।
असल में राइट टू रिपेयर पॉलिसी का मतलब यह है कि अगर किसी का मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी, फ्रिज और गाड़ियां आदि खराब हो जाता है और कस्टमर उस कंपनी के सर्विस सेंटर पर जा कर रिपेयर करने की मांग करता है, तो सर्विस सेंटर कस्टमर को यह कह कर मना नहीं कर सकता है कि इस गैजेट में इस्तेमाल हुए कल पुर्जे अब बनने बंद हो गए या फिर प्रोडक्ट अपग्रेड होने की वजह से इस मॉडल के पार्टस नहीं दे पाएंगे। साथ ही कंपनी कस्टमर को नए प्रोडक्ट खरीदने पर मजबूर नहीं कर सकती है, क्योंकि राइट टू रिपेयर पॉलिसी के तहत कंपनी पुराने प्रोडक्ट को रिपेयर करने से मना नहीं कर सकती है।
कस्टमर्स के पॉकेट पर पड़ेगा राइट टू रिपेयर का असर:
कई बार ऐसा होता है कि कोई कस्टमर अपनी पुरानी या एंटीक प्रोडक्ट को रिपेयर कराने के लिए सर्विस सेंटर पर जाता है, जिसे प्रोडक्ट पुराने हो गए हैं और इसके लिए उन्हें नए पार्ट्स बदलवाने होंगे। इससे कस्टमर्स को सर्विस चार्ज के बजाए नए पार्टस के लिए भी पैसे चुकाने पड़ते हैं। जो कस्टमर के पॉकेट पर सीधा असर डालता है, लेकिन राइट टू रिपेयर पॉलिसी के तहत कस्टमर्स से नए पार्ट्स बदलने के चार्ज नहीं लिए जाएंगें। सर्विस सेंटर पर पुराने पार्ट को रिपेयर कर के दिया जाएगा।
यहां बताया गया है कि राइट टू रिपेयर नीति कैसे मदद करती है:
- स्थानीय मरम्मत करने वालों की तुलना में कंपनियों की सर्विस सेंटर अक्सर कम खर्चे में मरम्मत करते हैं।
- वारंटी के भीतर ही कंपनी की सर्विस सेंटरों में लंबा इंतजार करना पड़ सकता है, राइट टू रिपेयर के तहत कम समय में मरम्मत करवा पाएंगे।
- कंपनी के सीमित विकल्पों पर निर्भरता कम हो सकती, फिर भी आपके प्रोडक्ट को रिपेयर कर के देना होगा।
- पुराने उपकरणों को फेंकने की बजाय उनकी मरम्मत कर इस्तेमाल करने से कचरा कम होगा।
- मरम्मत के विकल्प खुलने से टेक्नोलॉजी को समझने और बेहतर करने का अवसर मिलेगा।
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हालांकि, भारत में अभी तक आधिकारिक तौर पर राइट टू रिपेयर नीति लागू नहीं हुई है, लेकिन उपभोक्ता विभाग में इस विषय पर चर्चा चल रही है और उम्मीद है कि जल्द ही इसे लागू किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए आप https://righttorepairindia.gov.in/ वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।
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