शादी करना एक लड़की के जीवन में बहुत ही बड़े बदलाव लेकर आता है। कई बार जिंदगी में शादी के बाद बहुत से उतार-चढ़ाव आ जाते हैं। हर लड़की चाहती है कि शादी के बाद जिंदगी में खुशहाली हो, लेकिन कई बार इससे जुड़ी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। कई बार शादी के बाद हमारे लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसमें न तो ससुराल में रहा जा सकता है और ना ही अपनी शादी को निभाया जा सकता है। ऐसे समय में कई कानून ऐसे हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं।
अगर किसी लड़की की शादी होने वाली है तो उसे पहले से ही कुछ अधिकारों और कानूनों के बारे में पता होना चाहिए। लीगल राइट्स के बारे में पता होने से कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है।
हमने इस बारे में एक वकील की सलाह लेना बेहतर समझा। कलेक्ट्रेट परिसर लखनऊ मे ए वन चैम्बर के क्रिमिनल एडवोकेट शैलेन्द्र प्रताप सिंह से उन कानून की जानकारी लेनी चाही जो असल में महिलाओं के लिए मददगार साबित हो सकते हैं।
एक महिला को शादी के पहले इस बारे में जरूर जान लेना चाहिए।
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भारत में कई धर्म हैं और हिंदू मैरिज एक्ट, मुस्लिम मैरिज एक्ट आदि अलग-अलग धर्मों के लिए है, लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट किसी भी भारतीय नागरिक के लिए है। अधिकतर लोगों को लगता है कि अगर आप किसी दूसरे धर्म में शादी कर रहे हैं तो ही इस एक्ट का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है।
ये एक्ट सभी नागरिकों को रजिस्टर्ड मैरिज की सुविधा देता है और इसमें वो नागरिक भी शामिल होते हैं जो भारत की सिटिजनशिप रखते हैं, लेकिन किसी और देश में रहते हैं।
इस एक्ट के तहत शादी करने के लिए पहले रजिस्ट्रार को 1 महीने का नोटिस देना होता है। इस एक्ट के तहत शादी के बाद तलाक, प्रॉपर्टी के बंटवारे आदि को लेकर अलग तरह के राइट्स मिलते हैं। यहां 1 साल तक अगर दोनों पार्टीज एक साथ ना रह रही हों तो उन्हें अलग होने का अधिकार है। इस एक्ट का सेक्शन 22 कहता है कि अगर किसी एक को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा है तो दूसरा साथी अपनी तरफ से डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में शादी को खत्म करने की अर्जी दे सकता है। ऐसे ही कई अधिकार इस एक्ट में मिलते हैं।
दहेज विरोधी कानून डाउरी प्रोहिबिशन एक्ट 1961 के अंतर्गत आता है। ये जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है।
इस एक्ट के तहत दहेज लेना और देना किसी भी तरह से गैर-कानूनी है। ये शादी के पहले, शादी के दौरान, शादी के बाद किसी भी समय पर लागू हो सकता है। इसमें प्रॉपर्टी, गिफ्ट, कैश, बैंक अकाउंट, गाड़ी या किसी भी तरह का मॉनिटरी फेवर शामिल होता है।
इस एक्ट के तहत 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सज़ा और 10 हज़ार तक का जुर्माना हो सकता है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ शिकायत करने के लिए ये कानून बनाया गया है। पीड़ित महिलाओं को सही तरह से कानूनी सहायता भी दी जाती है और ये एक्ट 26 अक्टूबर 2006 से लागू हुआ है। इसमें सिर्फ पति द्वारा हिंसा ही नहीं बल्कि किसी भी ससुराल वाले की तरफ से मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना आदि कर रहा है तो वो भी शामिल होता है। घरेलू हिंसा किसी भी तरह से हो सकती है और इसके खिलाफ शिकायत तुरंत रजिस्टर भी होती है।
घरेलू हिंसा के खिलाफ अगर आपको शिकायत करनी है तो सरकारी नंबर - 8793088814 पर कॉल किया जा सकता है।
हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 का सेक्शन 14 और हिंदू मैरिज एक्ट का सेक्शन 27 दोनों ही ये बताते हैं कि एक महिला के पास स्त्री धन का पूरा अधिकार होता है। अगर कोई उसका ये अधिकार छीन रहा है तो वो सेक्शन 19A के तहत शिकायत कर सकती है। अगर इससे किसी को रोका जा रहा है तो वो महिला शिकायत भी कर सकती है। उसे पूरी कानूनी मदद दी जाएगी।
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एक महिला के पास अपनी प्रेग्नेंसी खत्म करने का पूरा अधिकार होता है। इसके लिए उसे अपने परिवार के किसी सदस्य से सलाह लेने की जरूरत नहीं है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 कहता है कि महिला अपने गर्भ में पल रहे बच्चे का अबॉर्शन 20 हफ्तों तक करवा सकती है। हालांकि, इसे अब बदलकर 24 हफ्तों तक कर दिया गया है। पर ये एडिशनल 4 हफ्ते सिर्फ स्पेशल मामलों के लिए हैं।
ये सभी एक्ट कानूनी मदद करने के लिए दिए गए हैं। अगर किसी महिला को बहुत ज्यादा दिक्कत हो रही है तो वो इन एक्ट्स की मदद ले सकती है। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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