आसमान में उड़ान भरना अक्सर रोमांच और उत्साह से भरा होता है। जमीन से हजारों फीट ऊपर, हम उस दुनिया से कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं, जहां पर हम रहते हैं। लेकिन, कभी-कभी ये उड़ानें इमरजमेंसी लेकर भी आती हैं और ऐसी ही एक अजीबोगरीब सिचुएशन तब होती है, जब उड़ती हुई फ्लाइट में अगर किसी यात्री की मौत हो जाती है।
हालांकि, यह सुनने में डरावना लग सकता है, लेकिन एयरलाइंस ऐसे मामलों को संभालने के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित होती हैं। हर एयरलाइन के पास इस तरह की इमरजेंसी के लिए तय प्रोटोकॉल होते हैं, जो यात्री सुरक्षा, अन्य को-पैसेंजर्स की मेंटल स्थिति को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं। भारत में इन प्रक्रियाओं की निगरानी और रेगुलेशन का कार्य नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) करता है। DGCA यह सुनिश्चित करता है कि देश की एयरलाइंस ऐसी स्थितियों में इंटरनेशनल सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन करें और प्रशिक्षित स्टाफ द्वारा उचित कार्रवाई की जाए। हालांकि उड़ान में मृत्यु की स्थिति से जुड़ी सभी जानकारियों को सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया जाता है, फिर भी एयरलाइनों से अपेक्षा की जाती है कि वे इन मानकों के अनुरूप कार्य करें। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, International Air Transport Association (IATA) ने भी इस प्रकार की घटनाओं से निपटने के लिए गाइडलाइंस जारी किए हैं।
जब फ्लाइट में यात्री की तबीयत बिगड़ जाए
अगर फ्लाइट के दौरान, किसी पैसेंजर की तबीयत अचानक बिगड़ती है या उसकी बॉडी रिएक्ट करना बंद कर देती है, तो एयरलाइंस का केबिन क्रू सबसे पहले सिचुएशन को चेक करता है। क्रू मेंबर्स First Aid और CPR में प्रशिक्षित होते हैं और ऐसे ही हालात में तुरंत एक्शन लेते हैं। जैसे ही पैसेंजर के बेहोश होने की आशंका होती है, केबिन क्रू CPR शुरू कर देता है। इसके साथ, यदि यात्री को कार्डियक अरेस्ट हुआ है, तो फ्लाइट में Automated External Defibrillator (AED) मौजूद होता है और इसका इस्तेमाल भी किया जाता है। AED एक मेडिकल डिवाइस होती है, जो दिल की धड़कन को मॉनिटर कर यह तय करती है कि मरीज को शॉक देने की जरूरत है या नहीं।
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इंटरनेशनल दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रोसेस
International Air Transport Association (IATA) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, CPR तब तक देते रहना चाहिए, जब तक यात्री फिर से सांस लेना और सामान्य ब्लड सर्कुलेशन शुरू न कर दे। यदि 30 मिनट तक CPR देने के बाद और AED द्वारा शॉक दिए जाने के बाद भी अगर भी यात्री की बॉडी रिएक्ट नहीं करती है, तो उसको मृत घोषित किया जा सकता है।
मृत्यु की घोषणा
उड़ान के दौरान, किसी यात्री की मृत्यु की पुष्टि करना एक बेहद संवेदनशील और जिम्मेदारी भरा काम होता है। आमतौर पर योग्य डॉक्टर या मेडिकल प्रोफेशनल ही किसी व्यक्ति को आधिकारिक रूप से मृत घोषित कर सकते हैं। अगर विमान में कोई मेडिकल प्रोफेशनल मौजूद नहीं होता है, तो केबिन क्रू मौजूद एयरलाइन के मेडिकल एक्सपर्ट्स से रेडियो या सैटेलाइट कम्युनिकेशन के जरिए बात कर सकता है। उनकी सलाह पर ही अगला कदम तय किया जाता है। कुछ मामलों में, जब मेडिकल एक्सपर्ट उपलब्ध नहीं होते, तो फ्लाइट के कैप्टन को यात्री की स्थिति और हालात के आधार पर अनुमान लगाकर निर्णय लेना पड़ जाता है।
मृतक यात्री को संभाला कैसे जाता है?
जब किसी पैसेंजर को मृत घोषित कर दिया जाता है, तो सबसे पहले पायलट को इसकी सूचना दी जाती है। पायलट आगे के इंतजामों के लिए निकटतम एयरपोर्ट से संपर्क करता है।
जहां तक संभव हो, मृत यात्री को विमान के उस हिस्से में ले जाया जाता है, जहां भीड़ कम हो, जैसे कि फ्लाइट का पिछला हिस्सा। लेकिन, कई बार फ्लाइट छोटी होने के कारण मृत पैसेंजर को उसी सीट पर रहने दिया जाता है, जहां वह बैठा था। ऐसी स्थिति में शव को सीट बेल्ट से सुरक्षित किया जाता है, ताकि उड़ान के दौरान किसी प्रकार की असुविधा या असुरक्षा न हो। केबिन क्रू इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि मृत यात्री की गरिमा बनी रहे। वे शव को किसी कंबल या कवर से ढक देते हैं ताकि दूसरे पैसेंजर्स अन्कम्फर्टबल महसूस न करें।
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अधिकारियों के साथ कम्युनिकेशन
जब किसी पैसेंजर की फ्लाइट में मौत हो जाती है, तो कैप्टन की जिम्मेदारी होती है कि वह तुरंत एयरलाइन के ऑपरेशनल कंट्रोल सेंटर और ग्राउंड स्टाफ से संपर्क करे।
यह कॉर्डिनेशन इसलिए जरूरी होता है ताकि विमान की लैंडिंग करते ही मेडिकल एक्सपर्ट और स्थानीय अधिकारी मौके पर मौजूद रहें और जरूरी कार्रवाई की जा सके। फ्लाइट की लैंडिंग के तुरंत बाद, मेडिकल टीम मृत पैंसेजर को चेक करती है और आगे की कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है।
फ्लाइट की लैंडिंग के बाद का प्रोसेस
- सबसे पहले, जब फ्लाइट लैंड करती है, तो ग्राउंड पर तैनात मेडिकल प्रोफेशनल्स फ्लाइट में एंटर करते हैं और मृतक को ऑफिशियल तौर पर लेकर अपने साथ जाते हैं।
- इसके बाद, केबिन क्रू और फ्लाइट कमांडर घटना को बारीकी के साथ लिखित रूप में दर्ज करते हैं, जिसमें यात्री की हालत बिगड़ने से लेकर कब उसकी मृत्यु हुई तक सबकुछ लिखा जाता है। यह रिकॉर्ड कानूनी रूप से जरूरी होता है, ताकि बीमा क्लेम करने में आसानी हो सके।
- जब किसी फ्लाइट में पैसेंजर की मृत्यु हो जाती है, तो उस फ्लाइट में मौजूद सभी को-पैसेंजर्स के लिए एयरलाइन्स मेंटल हेल्थ सेशन और काउंसिंग सर्विस उपलब्ध कराती हैं।
Transporting Human Remains
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी दूसरे शहर या देश में हो जाती है और फैमिली पार्थिव शरीर को वापस घर लाने की इच्छा जताती है, तो एयरलाइन के जरिए से Transporting Human Remains प्रक्रिया को किया जाता है, जिसमें विशेष डॉक्यूमेंट्स और सावधानियां बरती जाती हैं। भारत में इस प्रक्रिया का संचालन संबंधित राज्य सरकारों, DGCA और अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के अनुरूप होता है।
भारत के अंदर यानी डोमेस्टिक फ्लाइट्स में
अगर किसी यात्री की मृत्यु किसी दूसरे राज्य में या दूसरे शहर में हो जाती है, तो उसकी फैमिली को सौंपने से पहले एयरलाइन को डेथ सर्टिफिकेट,स्थानी पुलिस से प्राप्त NOC, शव संरक्षण प्रमाण पत्र (Embalming Certificate), Coffin Maker's Certificate और मृतक का पहचान प्रमाणपत्र सबमिट करना होता है।
इंटरनेशनल फ्लाइट्स में
- अगर मृतक के पार्थिव शरीर को विदेश से भारत लाया जाना होता है या भारत से विदेश भेजना होता है, तो प्रोसेस कठिन और ज्यादा डॉक्यूमेंटेशन वाला हो जाता है।
- एयरलाइन को विदेश मे स्थित इंडियन एम्बेसी से परमीशन लेना जरूरी होता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि शव को ट्रांसपोर्ट वैध तरीके से किया जा रहा है।
- पार्थिव शरीर को जिस देश भेजना है, वहां की सरकार या वाणिज्य दूतावास से भी अनुमति लेनी जरूरी होती है।
- मृतक का पासपोर्ट कैंसिल करके उसे साथ लगाना आवश्यक होता है, ताकि भविष्य में किसी तरह की धोखाधड़ी न हो सके।
- हर किसी देश के अपने हेल्थ रूल्स होते हैं, इसलिए शव को भेजने से पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि उस देश के सभी Public Health Guidelines और Customs Regulations का पालन किया गया हो।
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Image Credit - freepik, jagran
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