Vat Savitri Vrat 2021:जानें कब है वट सावित्री व्रत का त्योहार, पूजा का शुभ मुहूर्त, कथा और महत्त्व

हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत का विशेष महत्त्व है। आइए इस लेख में जानें कि, साल 2021 में कब रखा जाएगा वट सावित्री का व्रत और क्या है इसकी कथा। 

vat savitri main

हिंदू धर्म में हर एक व्रत एवं त्यौहार का अलग महत्त्व है और पूजा का अलग फल प्राप्त होता है। ऐसे ही व्रत त्योहारों में से एक है वट सावित्री व्रत। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र की कामना से निर्जला व्रत करती हैं और बरगद के वृक्ष की पूजा करके ईश्वर से पति की लम्बी उम्र का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। मान्यता है कि इस दिन बरगद के वृक्ष की पूजा करने से अटल सुहाग की प्राप्ति होती है और पति को बरगद के वृक्ष के समान लम्बी उम्र मिलती है।

हर साल यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है। आइए नई दिल्ली के जाने माने पंडित, एस्ट्रोलॉजी, कर्मकांड,पितृदोष और वास्तु विशेषज्ञ प्रशांत मिश्रा जी सेजानें इस साल कब रखा जाएगा वट सावित्री व्रत और इसका क्या महत्त्व है।

वट सावित्री व्रत तिथि और शुभ मुहूर्त

vat savitri vrat

इस साल वट सावित्री व्रत 10 जून 2021, दिन बृहस्पतिवार को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस लेकर आईं थी। इसलिए इस व्रत का महत्त्व बहुत ज्यादा है।

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शुभ मुहूर्त

  • अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 9 जून 2021, दोपहर 01:57 बजे
  • अमावस्या तिथि समाप्त - 10 जून2021, शाम 04:22 बजे
  • उदया तिथि में अमावस्या तिथि 10 जून को प्राप्त हो रही है, इसलिए यह व्रत एवं पूजन 10 जून को करना ही शुभ माना जाएगा।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

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  • सुहागिन स्त्रियां इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।
  • स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें और सोलह श्रृंगार करें।
  • मुख्य रूप से बरगद के वृक्ष की पूजा करें।
  • बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाकर उसमें पुष्प, अक्षत, फल और मिठाई चढ़ाएं।
  • बरगद के वृक्ष में आटे और गुड़ के पुए चढ़ाए जाते हैं जिन्हें बरगद कहा जाता है।
  • बरगद के वृक्ष में रक्षा सूत्र बांधकर 12 परिक्रमा करें और आशीर्वाद मांगें।
  • हाथ में काले चने लेकर इस व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • बरगद की पूजा के पश्चात बरगद के वृक्ष की कोपल और भीगे हुए काले चने निगल कर उपवास समाप्त करें।

वट सावित्री व्रत का महत्व

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वट अमावस्या व्रत को सावित्री के सुहाग की कथा से जोड़ा गया है। सावित्री का पौराणिक कथाओं में श्रेष्ठ स्थान है। कहा जाता है कि सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आईं थी। इस व्रत में महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की दीर्घायु की कामना तीनों देवताओं से करती हैं ताकि उनके पति को सुख-समृद्धि, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त हो सके। मान्यता है इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने और वट वृक्षकी पूजा करने से स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है। यही नहीं इस व्रत को करने से घर में सुख समृद्धि आती है।

क्यों होती है बरगद की पूजा

हिन्दू धर्म में वट वृक्ष को पूजनीय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवों का वास होता है। इसलिए बरगद के पेड़ की आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस एक वृक्ष की पूजा से सभी देवताओं की एक साथ पूजा का फल प्राप्त होता है।

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वट सावित्री व्रत कथा

इसकी कथा के अनुसार भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी, उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। अठारह वर्षों तक वह ऐसा करते रहे। इसके बाद सावित्री देवी ने प्रकट होकर वर दिया कि- राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्री देवी की कृपा से जन्म लेने के कारण कन्या का नाम सावित्री रखा गया। कन्या जब बड़ी हुई तब उसके योग्य वर न मिल पाने से उसके पिता अत्यंत दुखी थे और उन्होंने सावित्री को स्वयं वर का चयन करने भेजा। तब सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया। ऋषिराज नारद को जब यह बात पता चली तब उन्होंने बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ऋषिराज नारद की बात सुनकर सावित्री ने सत्यवान के पिता से कहा कि पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती हैं, राजा एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और बोलीं मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। नारद मुनि ने सावित्री को पहले ही सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था इसलिए वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा, सावित्री अधीर होने लगीं। उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास शुरू कर दिया।

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सावित्री नेनारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने जंगल चले गये साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गये, तभी उनके सिर में तेज दर्द होने लगा। दर्द से व्याकुल सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गये और सावित्री अपना भविष्य समझ गईं। सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। तभी यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ीं. यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की, कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मानी और सावित्री की निष्ठा को देख कर यमराज ने सावित्री से कहा कि -" हे देवी, तुम धन्य हो, तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो। सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर वनवासी और अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा, जाओ अब लौट जाओ "। लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे-पीछे चलती रहीं। सावित्री ने यमराज सेकहा- "भगवन मुझे अपने पतिदेव के पीछे-पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है। पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है "। यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिए कहा। सावित्री बोलीं- "हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे पुन: वापस दिला दें"। यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम लौट जाओ, लेकिन सावित्री पीछे-पीछे चलती रहीं। यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने इसका वरदान भी सावित्री को दे दिया। सावित्री ने यमराज से कहा कि-" प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और आपने मुझे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है"। यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सावित्री उसी वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था। तभी से अटल सुहाग की कामना के लिए स्त्रियां वट सावित्री का व्रत करने लगीं।

इस प्रकार अटल सुहाग की कामना करते हुए वट वृक्ष की पूजा करना और निर्जला व्रत करना सुहागिन स्त्रियों के लिए अत्यंत फलदायी होता है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें। इसी तरह के अन्य रोचक लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।

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Image Credit: free pik and pintrest

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