जब बात गद्दी संभालने, युद्ध कौशल सीखने और युद्ध लड़ने की आती है, तो हमारे दिमाग में कई राजाओं के नाम आने लगते हैं। वहीं, जब हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो हमें कुछ गिनी-चुनी रानियों के नाम ही मिलते हैं, जिन्होंने अपने दम पर शासन किया। आज हम आपको युद्धों और धर्मयुद्धों से कुचली हुई, एक शानदार वीरांगना की कहानी बताने वाले हैं, जिसे उसके जन्म के समय अपशकुन कहा गया, लेकिन वह एक महान योद्धा बन गई। कश्मीर के इतिहास के बारे में बहुत कम ही लोगों जानते हैं और जब बात कश्मीर की सबसे शक्तिशाली शासक रानी दिद्दा की आती है, तो बहुत कम लोगों ने उनके बारे में सुना है।
वैसे तो, हमें 21वीं शताब्दी के इतिहासकार कल्हण का शुक्रिया करना चाहिए, जिन्होंने कश्मीर के इतिहास के बारे में लिखा है। उन्होंने कश्मीर के शुरुआती राजाओं का जिक्र अपनी पुस्तक ‘राजतरंगिणी’ में किया हुआ है और इसी किताब में उन्होंने राज्य की कुछ प्रमुख रानियों के बारे में भी लिखा है। हालांकि, किताब में सबसे ज्यादा जगह उन्होंने रानी दिद्दा को दी है और उन्होंने उन्हें एक निर्दयी, चालाक, सत्ता की भूखी रानी के रूप में दर्शाया है। रानी दिद्दा की मौत के 145 साल बाद राजतरंगिणी लिखी गई थी। तथ्यों की जांच करना, रानी दिद्दा की कहानी को पुनः परखना और यह सवाल उठाना आवश्यक है कि क्या कल्हण पितृसत्तात्मक समाज में मुखर महिलाओं के प्रति गहरे पूर्वाग्रह से प्रभावित थे, जो आज भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है!
राजतरंगिणी के अनुसार, दिद्दा लोहार राजवंश के सिंहराजा की बेटी थीं, जिन्होंने पुंछ के दक्षिण के कुछ पहाड़ी रियासतों पर शासन किया था। दिद्दा बहुत सुंदर थीं, लेकिन उनका एक पैर खराब था जिसकी वजह से वह लंगड़ाकर चलती थीं। कल्हण के अनुसार, हमेशा उनके साथ एक लड़की रहती थी, जो उन्हें अपनी पीठ पर ढोकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती थी। दिद्दा हर समय अपने एक हाथ में लोहे का कवच बांधकर रखती थीं।
26 साल की उम्र में दिद्दा का विवाह कश्मीर के एक राजा क्षेमगुप्त से हो गया था। कहा जाता है कि उसे औरतों में बहुत दिलचस्पी थी। पिता की मृत्यु के बाद, क्षेमगुप्त 950 ईस्वी में शासक बना, लेकिन वह कमजोर राजा था। उसे केवल शराब पीने, जुआ खेलने और शिकार करने में ही रुचि थी। परिणामस्वरूप, उसके राज्य पर शासन करने का जिम्मा उसकी पत्नी रानी दिद्दा के हाथों में आ गया। कल्हण के अनुसार, दिद्दा का पति क्षेमगुप्त अपनी पत्नी से काफी प्रभावित था, इसलिए उस काल के सिक्कों पर दिद्दाक्षेम नाम गुदवाना शुरू कर दिया था। 958 ईस्वी में क्षेमगुप्त की मृत्यु हो गई और रानी दिद्दा ने सती होने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपने बेटे अभिमन्यु के लिए एक रीजेंट के रूप में शासन करना चुना।
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एक महिला शासक के रूप में, पितृसत्तात्मक समाज में रानी दिद्दा के लिए शासन करना काफी कठिन था। उन्हें स्थानीय सरदारों और राज्य के मंत्रियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। उस समय सरदार रानी दिद्दा को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे और उन्होंने उन्हें चुड़ैल और बदचलन कहना शुरू कर दिया था। जिसकी वजह से रानी दिद्दा का नाम चुड़ैल रानी भी पड़ गया।
कहा जाता है कि उस समय कश्मीर के दरबार में रानी के खिलाफ कई तरह की साजिशें रची जा रही थीं। उन्होंने जिसे राज्य का प्रधानमंत्री बनाया था, वह भी पुंछ भाग गया था। रानी दिद्दा को अपनी ननद के बेटे महिमान और पटाला का विरोध झेलना पड़ा था, क्योंकि वह कश्मीर का राजा बनाना चाहते थे।
एक समय ऐसा आया था कि रानी दिद्दा ने कश्मीर पर राज करने के लिए सामंतों को घूस दी थी और बड़े-बड़े पदों का लालच दिया था। कल्हण कहते हैं कि रानी ने अपने विद्रोह को बड़ी निर्दयता से दबा दिया था। 972 ईस्वी में जब रानी दिद्दा के बेटे अभिमन्यु की मृत्यु हो गई, तो रानी दिद्दा अपने छोटे बेटे नंदीगुप्त के लिए वापस से राज्य का सरंक्षक बन गईं।
रानी दिद्दा ने अपने बेटे अभिमन्यु की याद में श्रीनगर में अभिमन्युपुरा शहर बसाया था, जिसे वर्तमान में बिमयान कहा जाता है। इसके अलावा, रानी ने दिद्दा मठ की स्थापना की जिसे श्रीनमगर में दिद्दमार इलाका कहते हैं। कल्हण के अनुसार, रानी दिद्दा का छोटा बेटा भी ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहा और उसकी बीमारी के चलते मृत्यु हो गई। इसके बाद, रानी दिद्दा ने अपने पोते त्रिभुवनगुप्त के लिए एक बार फिर रीजेंट बनने का फैसला किया। रानी दिद्दा ने 1003 ईस्वी तक कश्मीर पर शासन किया और आखिरी में गद्दी अपने भाई के बेटे संग्रामराज को सौंप दी।
कश्मीरी लेखक आशीष कौल की 'दिद्दा: कश्मीर की योद्धा रानी' की किताब में जिक्र है कि 1025 ईस्वी में मोहम्मद गजनवी ने गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया था। उसके बाद, उसने कश्मीर पर कब्जा करने की योजना बनाई, लेकिन शायद उसे नहीं पता था कि उसका सामना किससे होने वाला था। रानी दिद्दा ने गजनवी की सेना से लड़ाई लड़ी और उन्होंने ऐसी रणनीति अपनाई की गजनवी को अपने राज्य में घुसने तक नहीं दिया। ऐसा केवल एक बार नहीं, बल्कि रानी दिद्दा ने 2-2 बार किया।
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कहा जाता है कि रानी दिद्दा ने अफगानिस्तान की लड़ाई में गुरिल्ला युद्ध तकनीक का इस्तेमाल करते हुए राजा वुशमेगीर की सेना के 38,000 सैनिकों को केवल 45 मिनट में हरा दिया था। रानी इस युद्ध में केवल 500 सैनिकों के साथ पहुंची थीं। दिद्दा ने वुशमेगीर के जनरल को हाथी के पैरों के नीचे कुचल दिया था।
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