क्या आपको पता हैं बंगाली शादियों से जुड़े ये अनोखे रिवाज?

क्या आपको पता है कि बंगाली शादियों में दुल्हन अपने चेहरे को पान के पत्तों से क्यों ढकती है? जानिए बंगाली शादियों के ऐसे ही अनोखे रिवाजों के बारे में हमारी इस स्टोरी में। 

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क्या आपने कोई बंगाली शादी अटेंड की है? इन शादियों में बहुत ही यूनिक रिवाज होते हैं जिन्हें बाकी हिंदू शादियों में नहीं देखे जाते हैं। बंगाली शादियों में उलू की वो आवाज़ तो आपने सुनी ही होगी जहां दूल्हा-दुल्हन की एंट्री पर महिलाएं इस ध्वनि को निकाली हैं और उसके बाद शंख बजता है। क्या आपको पता है कि उस आवाज का मतलब क्या है और ऐसा क्यों किया जाता है? आज हम आपको बंगाली शादियों से जुड़े कुछ ऐसे ही रिवाजों के बारे में बताने जा रहे हैं।

दुल्हन के हाथ में क्यों होते हैं पान के पत्ते?

हिंदू मान्यताओं के अनुसार पान के पत्ते समुद्र मंथन से निकले थे। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को खुश करने के लिए पूजा में हमेशा पान के पत्तों को रखा जाता है। इन्हें शुद्ध माना जाता है और पान, सुपारी दोनों ही नवरात्र, गणपति पूजन, शादी-ब्याह, गोदभराई सभी जगहों पर पान इसलिए इस्तेमाल होता है।

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बंगाली शादियों में दुल्हन के हाथों में हमेशा दो पान के पत्ते दिखाए जाते हैं। इसे शुभो दृष्टि की रस्म कहा जाता है। दूल्हे के इर्द-गिर्द 7 फेरे लेने के बाद दुल्हन अपने चेहरे से पान के पत्ते को हटाते हैं।

पान को शुभ भविष्य और अच्छी किस्मत का सूत्र माना जाता है और इसलिए पान के पत्तों को ही चुना गया। यह पहली नजर बहुत ही शुभ मानी जाती है।

बंगाली शादियों में उलू की आवाज

उलूध्वनि या हुला हुली नामक यह रिवाज सिर्फ बंगाली शादियों में ही नहीं, बल्कि असम, ओडिशा, तमिलनाडु में भी है।

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उलूध्वनि (Ululudhvani) को नेगेटिविटी दूर भगाने के लिए किया जाता है। इस ध्वनि का संबंध वैसे ही समझा जा सकता है जैसा नजर उतारना है। कई जगहों पर आवाज के जरिए नेगेटिविटी भगाने का रिवाज है। जैसे दिवाली के दिन सुबह उठकर घर के बर्तन बजाने का रिवाज यूपी के कुछ हिस्सों में देखा जा सकता है। उलूध्वनि नेगेटिविटी भगाने के साथ-साथ दूल्हा-दुल्हन की समृद्धि के लिए भी की जाती है।

तीन बार माला बदलने का रिवाज

जयमाल में एक बार दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे के गले में माला डालते हैं, लेकिन बंगाली शादियों में तीन बार माला बदलने का रिवाज है।

दरअसल, यह रिवाज शुभो दृष्टि (पान के पत्ते हटाने के बाद) होता है। पुराने समय में इस रिवाज के दौरान ही पहली बार दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को ठीक से देखते थे। यही कारण है कि माला को तीन बार बदला जाता था। हालांकि, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इससे दूल्हा-दुल्हन का रिश्ता ज्यादा गहरा होता है। आजकल शादियों में इस रिवाज को हंसी-मजाक का एक तरीका भी समझा जाता है और दूल्हा-दुल्हन के साथ पूरा परिवार इस दौरान बहुत आनंदित रहता है।

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एक बार फेरों के बाद क्यों लिया जाता है पान के पत्ते के साथ फेरा?

इस रिवाज को सप्तपदी कहते हैं। ऐसा लगता है कि यह सात फेरे जैसा है, लेकिन इससे थोड़ा सा अलग है। दुल्हन दूल्हे के इर्द-गिर्द फेरे लेकर पान के पत्तों को हटाती है उसे ही फेरे माना जाता है। सप्तपदी में दुल्हन को सात पान के पत्तों के ऊपर से चलना होता है। इसके बाद दूल्हा भी उसी पान के पत्ते पर चलना होता है और अपने पैर से नोरा को आगे खिसकाना होता है। नोरा एक छोटा सा पत्थर होता है जिसे मसाले कूटने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

बंगाली शादियों में क्यों आग में फेंकी जाती है लाई

लाई, लइया या पफ्ड राइस को सूप के सहारे अग्नि में डाला जाता है। दुल्हन के हाथ में सूप होता है और दूल्हा पीछे से दुल्हन को पकड़ता है। इसे दान या प्रसाद के रूप में देखा जाता है जो पवित्र अग्नि पर चढ़ाया जाता है।

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