वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज संसद में मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पूर्ण बजट पेश कर रही हैं। यह वित्त मंत्री का लगातार 07 वां बजट है। बजट पेश होने से पहले और बाद में सभी की नजरों बजट पर टिकी हुई हैं क्योंकि इसमें गरीब, किसान और नोकरी पेशा व्यक्तियों के लिए कई खास प्रकार योजनाओं की घोषणा की जाती हैं। हालांकि अगर गौर किया जाए तो बजट को लेकर लोगों को जानकारी कम है। अधिकतर लोग केवल बजट के दौरान कौन सी वस्तु महंगी और सस्ती हो रही है और इनकम टैक्स में किस प्रकार का बदलाव देखने को मिल सकता है। केवल इन बातों पर गौर करते हैं। लेकिन बता दें कि बजट काफी बड़ा होता है। इसमें सरकार के अनुमानित खर्च और उसकी कमाई का लेखा-जोखा रखा जाता है।
सरकारी बजट में, सरकार के खर्च और कमाई का लेखा-जोखा होता है। आसान भाषा में समझें तो जिस प्रकार एक महिला अपने घर को चलाने के लिए पूरे महीने के खर्चे का ब्यौरा रखता है और निर्धारित करता है कि आय के अनुसार उसे कितना पैसा खर्च करना है। ठीक इसी प्रकार सरकार भी प्रत्येक वर्ष बजट में अपनी कमाई और खर्च को ध्यान में रखकर बजट का निर्धारण करती है। बता दें कि बजट तीन प्रकार का होता है। पहला संतुलित, दूसरा असंतुलित। असंतुलित बजट के अंतर्गत बचत का बजट और घाटे का बजट पेश किया जाता है।
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घाटे का बजट अर्थात कमाई से ज्यादा का खर्च। सरकार का अनुमानित खर्च जब उसकी कमाई से अधिक होता है तो उसे 'घाटे का बजट' कहा जाता है। आम आदमी के नजरिए से समझे तो घाटे का बजट, नुकसानदेह होता है। लेकिन अगर सरकार के नजरिए से देखें तो भारत जैसे विकासशील देश की अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त है। खासकर, मंदी के समय घाटे का बजट अतिरिक्त मांग और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
आम आदमी पर पड़ने वाला प्रभाव काफी कुछ सरकार के बजट और नीतियों पर निर्भर होता है। इस दौरान सरकार बताती है कि वह अपने खर्चों के लिए पैसा कैसे जुटाएगी। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर लगाने के अलावा सरकार वित्तीय बाजार से उधार भी ले सकती हैं। अगर बात करें बाजार पर पड़ने वाले प्रभाव की तो उस पर सीधा असर पड़ता है। इस दौरान सरकार कई वस्तुओं के कीमतों को बढ़ाने के लिए कर लगाने के साथ निर्माण सामग्री पर भी कर लगाती है। उनके परिवहन को प्रभावित करने वाले पेट्रोल, डीजल के दाम में भी गिरावट व बढ़ोत्तरी भी कर सकती हैं।
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