घर में बच्चे होते हैं, तो वे आपस में खेलकर, झगड़कर, एक-दूसरे के साथ शेयर करते हुए बहुत कुछ सीखते हैं। लेकिन जब घर में एक ही बच्चा हो तो आपको ज्यादा खयाल रखना पड़ता है। बदलती जीवन शैली ने परिवारों को छोटा कर दिया है। ऐसे में एक ही बच्चे की ओर आपकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है। आपको खयाल रखना पड़ता है कि वो अकेला न महसूस करे, या उसे दोस्तों की कमी महसूस न हो। ऐसे में चुनौतियां भी सामने आती हैं। कुछ मां-बाप समझ ही नहीं पाते कि वह सिंगल बच्चे के साथ कैसे डील करें। सीनियर चाइल्ड और क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. भावना बर्मी बताती हैं कि सिंगल चाइल्ड होने के कुछ पायदे हैं, जैसे- वित्तीय स्थिरत, अकाउंटिबिलिटी कम होना और एक ही बच्चे पर पूरा ध्यान दे पाना। इसी के चलते कई मां-बाप अपने बच्चों पर अपेक्षाओं का बोझ डाल देते हैं। बढ़ता हुआ बच्चा अक्सर अकेला महसूस करने लगता है। अकेले होने के कारण वे अपने मां-बाप पर निर्भर रहते हैं। ऐसे में मां-बाप की यह बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है कि वे अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताएं। उनसे बात करें। डॉ. बर्मी ऐसी ही कुछ अन्य पैरेंटिंग टिप्स बता रही हैं।
अपने इकलौते बच्चे को शुरुआत से ही सोशलाइज करवाएं। उसे अपने साथ बाहर लेकर जाएं। लोगों से मिलवाएं और उसके आसपास अच्छे ग्रुप्स को शामिल करें। इस तरह आपका बच्चा खुलकर चीजें कर पाएगा। अपने पड़ोसी के बच्चों के साथ कुछ-कुछ दिनों में छोटी पिकनिक करें। उसे अपनी उम्र के बच्चों के साथ घुलने-मिलने का मौका दें।
इकलौते बच्चे के ऊपर हमेशा आगे रहने का, अच्छा करने का दबाव बना रहता है। आप भी अपनी अवास्तविक अपेक्षाओं को उन पर बिल्कुल न थोपें। आपको यह समझने की जरूरत है कि आपको कब रुकना है। बढ़ते हुए बच्चे के लिए यह चीज खराब हो सकती है। वे पूरी जिंदगी आपको खुश करने के दबाव में दबते रहेंगे। इसलिए उन पर अपनी फैंटेसी और अपेक्षाओं को दबाव न बनाएं।
अपने इकलौते बच्चे के प्रति प्रोटेक्टिव होना लाजिमी है, लेकिन ओवर-प्रोटेक्टिव न बनें। अगर आपका बच्चा किसी के साथ हेल्थी डिसकशन या फिर बातचीत में उलझ रहा है, तो आप इंटरफेयर मत करें। उसे खुद चीजों को सुलझाने दें। हर बार मीडिएटर बनना सही नहीं है। उसे अपनी बातों को रखने और अपने लिए लड़ने के काबिल बनाएं। अगर वो इन चीजों से परेशान होते हैं, तो उन्हें समझाएं कि यह चीजें उन्हें स्ट्रॉन्ग बनाएंगी।
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इकलौते बच्चे की परवरिश के दौरान आपका और उनका एक गहरा रिश्ता बन जाता है। इसी में वो छोटी-छोटी चीजों के लिए भी आप पर निर्भर रहते हैं। अपने होमवर्क, घर के छोटे-मोटे कामों के लिए वे आपको ही ढूंढते हैं और निर्भर रहते हैं। अनजाने में आपसे भी ये चीजें अनदेखी हो जाती हैं। मगर जरूरी है उन्हें जिम्मेदार बनाना। ऐसे में घर के छोटे-मोटे कामों के लिए उन्हें जिम्मेदारी दें। किचन में अपने साथ सब्जी वगैरह धुलवा लें या डस्टिंग करवाएं। ऐसे में वे आत्मनिर्भर होना बचपन से सीखेंगे।
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जब दो या दो से अधिक बच्चे होते हैं, तो उनमें ऑटोमेटिकली शेयरिंग की भावना उत्पन्न होती है। मगर इकलौते बच्चे यह जानते हैं कि सभी चीजें उनके लिए हैं, तो वे अपने दोस्तों या बाकी बच्चों के साथ चीजें शेयर नहीं करते। आपको उन्हें यह बात सिखानी पड़ेगी। आप उनके लिए जो भी लाएं, उनसे उसे अपने और पापा के साथ बांटने को कहें। यह फॉर्मूला उनके काम कितना आएगा इस बारे में उन्हें बताएं।
इकलौते बच्चों कभी-कभी खुद को एडल्ट समझने लगते हैं, इस वजह से कभी वे बड़ों के बीच बोलने लगते हैं। या फिर आप दोनों के बीच दखल देने लगते हैं। आपको उन्हें यह बात समझानी होगी कि उनकी क्या सीमाएं हैं। एक बाउंड्री सेट करके रखें। कुछ फैसले आप ही लेंगे यह बात उन्हें बताएं। इसके अलावा उनको समय देने के साथ ही अपने लिए 'कपल टाइम' निकालें।
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