Same Sex Marriage Verdict: समलैंगिक विवाह को वैद्य मानने से सुप्रीम कोर्ट का इंकार, कहा यह नहीं है मौलिक अधिकार

समलैंगिक विवाह मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इस साल अप्रैल में सुनवाई की थी और अब इस मामले में अहम फैसला सामने आ चुका है।

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समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मांग ठुकरा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे मौलिक अधिकार मानने से इंकार किया है और इसे विधायिका का अधिकार क्षेत्र बताया है। समलैंगिक शादियों पर संविधान पीठ में 3-2 से यह फैसला सुनाया गया है।

बता दें कि पांच जजों की बेंच ने अप्रैल में समलैंगिक विवाह मामले पर सुनवाई की थी और आज यानी 17 अक्टूबर 2023 को इसका जजमेंट आना था। चलिए आपको बताते हैं कि आज सुनवाई में क्या हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया और यह पूरा मामला क्या था? इस मामले में मुख्य न्यायाधीश ने फैसला पढ़ना शुरू कर दिया है। समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता मिलेगी या फिर नहीं, इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामने आ चुका है। चीफ जस्टिव डी वाई चंद्रचूड़ अपना फैसला पढ़ चुके हैं और उन्होंने केंद्र सरकार को समलैंगिक शादी को कई अधिकार देने का आदेश दिया। वहीं, जस्टिस संजय कौशल ने समलैंगिक जोड़े को स्पेशनल मैरिज एक्ट के तहत शादी रजिस्टर कराने की बात कही है।

Same Sex Marriage में क्या आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

इस मामले में फैसला सुनाते हुए सीजेआई धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट कोई कानून नहीं बना सकता है, केवल कानूनों की व्याख्या कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि सभी को अपना पार्टनर चुनने का अधिकार है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 में सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार, सभी का एक मौलिक अधिकार है। विवाह को कानूनी दर्जा दिया गया है, लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार नहीं है।

Same Sex Marriage- जानें क्या था पूरा मामला?

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सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की की पीठ ने मई में सेम सेक्स मैरिज मामले में अप्रैल महीने में सुनवाई की थी और 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि इस संबंध में 20 याचिकाएं दी गईं थी, जिन पर सुनवाई के बाद यह फैसला लिया गया है। इस मामले की सुनवाई के लिए बनी 5 जजों की पीठ में मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवीन्द्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा शामिल हैं।

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क्या थे केंद्र सरकार के तर्क?

  • इस मामले में केंद्र सरकार शुरू से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में नहीं है।
  • केन्द्र सरकार ने कहा था कि ऐसा करना न केवल देश की परंपरा के खिलाफ है, बल्कि ऐसा करने के लिए कई कानूनों, प्रावधानों में बदलाव करना होगा।
  • इतना ही नहीं, कुछ पर्सनल लॉ के साथ भी छेड़छाड़ करनी होगी।
  • हालांकि, सुनवाई के दौरान जजों की पीठ की तरफ से यह भी कहा गया कि सरकार भले ही कानूनी मान्यता देने के पक्ष में नहीं है लेकिन इसके बिना सरकार इन लोगों के लिए क्या कर सकती है, उस पर विचार किया जा सकता है।
  • सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए बैंक अकाउंट, लेगेसी, बीमा पॉलिसी और बेबी अडॉप्ट करने से जुड़ी चीजों के लिए संसद में कुछ करने के बारे में प्रयास कर सकती है।
  • सेम सेक्स मैरिज हमारे देश की सांस्कृतिक और नैतिक अवधारणा से मेल नहीं खाती है।
  • इस विवाद को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी संवैधानिक घोषणा करना इतना आसान नहीं है।
  • इसके लिए संविधान और कई कानूनों के प्रावधानों में संशोधन करने होंगे।
  • सरकार, इन जोड़ों की शादी को मान्यता देने से जुड़े कानूनों में बदलाव करने को लेकर कई पहलुओं पर विचार कर रही थी, हालांकि ह्यूमन ग्राउंड्स पर सरकार इन जोड़ों की परेशानियों का हल करना चाहती थी।

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