आपको शायद इसके बारे में पता ना हो, लेकिन दक्षिण भारत के कई राज्यों में पीरियड्स से जुड़े अलग-अलग रीति-रिवाज निभाए जाते हैं। इन रिवाजों को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। कोई इन्हें बहुत अच्छा मानता है, तो किसी को ये रिवाज पितृसत्तात्मक लग सकते हैं। हालांकि, ये रिवाज अपने आप में बहुत ही यूनिक हैं। पीरियड्स को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए 28 मई को मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है।
मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे के मौके पर हम आपको बताने जा रहे हैं दक्षिण भारत से जुड़े कुछ ऐसे रिवाजों के बारे में जो लड़कियों की प्यूबर्टी के समय निभाए जाते हैं।
आखिर क्यों मनाए जाते हैं ऐसे रिवाज?
यह प्रथा पुराने समय से चली आ रही है। इसका एक तर्क यह हो सकता है कि दुनिया को अपनी बेटी के वयस्क होने के बारे में जानकारी दी जाती थी, ताकि उसकी शादी के बारे में सोचा जा सके। हालांकि, प्यूबर्टी और पीरियड्स अभी भी शर्म की बात मानी जाती है और दक्षिण भारत के जिन इलाकों में इस तरह के रिवाज हैं, वहीं पर पीरियड्स के दौरान लड़कियों के साथ भेदभाव भी होता है।
पीरियड फंक्शन्स तभी किए जाते हैं जब लड़की का पहला पीरियड खत्म हो जाए। पीरियड्स के दौरान कई घरों में अभी भी लड़कियों को अलग सोने और एकांत में रहने को कहा जाता है।
पूरे दक्षिण भारत में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है और इसे रितु कला संस्कारम कहा जाता है। इसे रितुसुद्धि भी कहा जाता है।
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तमिलनाडु
तमिलनाडु का मंजल नीपाट्टू विजा (Manjal Neerattu Vizha) पूरी दुनिया में फेमस है। इसे पावा दाई धवानी (Pavadai Dhavani) भी कहा जाता है। इस रिवाज के दौरान नारियल, आम और नीम की पत्तियों से एक झोपड़ी भी बनाई जाती है, जिसे कुदिसाई (Kudisai) कहा जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस नाम पर तमिलनाडु में 1979 में क्राउडफंडिंग से एक फिल्म भी बन चुकी है।
इस झोपड़ी में जाने से पहले लड़की को हल्दी के पानी से नहलाया जाता है और यहां पुरुषों का जाना वर्जित है। इसे पीरियड्स के 9वें, 11वें और 15वें दिन किया जाता है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों ही राज्यों में एक जैसे रिवाज निभाए जाते हैं। तेलंगाना पहले आंध्र प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था और यही कारण है कि रिवाजों में इसकी झलक दिखती है।
यहां निभाए जाने वाले रिवाज को पेड्डा मानिशी पांड्गा (Peddamanishi Pandaga) कहा जाता है। यहां पीरियड के पहले दिन ही लड़की को नहलाने वाला रिवाज फॉलो किया जाता है। यहां पांच स्त्रियां लड़की को पहले नहलाती हैं। इसके बाद, पांचवें दिन लड़की को सुनहरी और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है।
इस रिवाज के दौरान तेलुगु भाषा के लोक गीत गाए जाते हैं।
कर्नाटक
कर्नाटक के पीरियड से जुड़े रिवाज को लंगा देवानी (Langa Davani) कहा जाता है। इस रिवाज में लड़कियों को साड़ी और आभूषण दिए जाते हैं और लड़की हाफ साड़ी (ऊंची साड़ी) पहन कर सामने आती है। पुराने जमाने में लड़की इसी तरह की हाफ साड़ी अपनी शादी तक पहना करती थी। शादी के बाद ही फुल साड़ी पहनी जाती थी।
जिस साड़ी का इस्तेमाल इस रिवाज में होता है, वो मामा द्वारा गिफ्ट की जाती है। अब हाफ साड़ी की जगह लांगा वोनी (एक तरह का लहंगा चोली जो दक्षिण भारत में प्रचलित है) ने ले ली है। यहां लड़की को नहलाने, पूजा करने और भात खिलाने जैसी कई रस्में की जाती हैं।
केरल
केरल पीरियड्स को लेकर बहुत ही प्रोग्रेसिव माना जाता है। यहां कुछ दिनों पहले पीरियड लीव्स का प्रावधान भी लागू किया गया है। केरल में इस रिवाज को थिरंतु कल्याणम (Thirandu Kalyanam) कहा जाता है। यह चार से पांच दिन चलता है और प्राचीन समय में यह बहुत महत्वपूर्ण रिवाज माना जाता था, लेकिन अब धीरे-धीरे यह कम हो रहा है।
मलयालम भाषा में कल्याणम का मतलब है शादी। यह रिवाज भी इसी लिए किया जाता था, ताकि लोगों को यह बताया जा सके कि उनकी बेटी शादी के लायक हो गई है। यहां पीरियड्स के दौरान सिर्फ घर की महिलाएं ही लड़की से मिल सकती हैं। उसे खाना भी अलग प्लेट में दिया जाता है और उसे कुछ छूने को भी मना किया जाता है। इसके अलावा, उसे एक निश्चित डाइट फॉलो करनी होती है। चौथे दिन उसे मंदिर के तालाब में नहाना होता है और उस दिन उसे दुल्हन की तरह सजाया जाता है, उसे गहने और कपड़े दिए जाते हैं।
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लड़कियों को बाहर घूमने की नहीं होती इजाजत
पहले पीरियड्स से लेकर इन सभी रिवाजों के दौरान अधिकतर जगहों पर लड़कियों को बाहर घूमने की इजाजत नहीं होती है। इन रिवाजों को अलग-अलग घरों में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कई जगहों पर लड़कियों का एकांत में रहना जरूरी माना जाता है।
हालांकि, ये सभी प्राचीन रिवाज हैं। अब अगर मॉर्डन जगहों पर देखें, तो हैदराबाद, बेंगलुरु, त्रिवेंद्रम, चेन्नई जैसे शहरों में ये ना के बराबर देखने को मिलेंगे। क्या आपने देखा है इस तरह का कोई रिवाज? हमें अपने जवाब कमेंट बॉक्स में बताएं। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
नोट: यह जानकारी International Journal of History के एक रिसर्च डॉक्युमेंट से ली गई है।
Image Credit: Pixcy/Shutterstock/Wikipedia
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