बंगाली शादी में उलूलूध्वनि का क्या है महत्व, जानें

आज हम आपको बताएंगे की बंगाली शादी में उलूलूध्वनि का महत्व क्या है। तो चलिए जानते हैं इस बारे में।

 

  • Hema Pant
  • Editorial
  • Updated - 2022-02-03, 19:43 IST
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भारत विविधताओं का देश है। इस देश में हर चीज को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। त्योहार से लेकर शादी तक हर रीति -रिवाज और परंपरा को पूरी तरह से निभाया जाता है। भारत में कन्या कुमारी से लेकर कश्मीर तक शादियां अलग अलग रीति- रिवाजों से होती है।

ऐसे में हम सभी ने बंगाली शादी देखी या उसके बारे में जरूर सुना होगा और बंगाली शादी की बात सबसे खास और अलग बनाती है वह है शादी में महिलाओं द्वारा उलूलूध्वनि निकालना। अन्य सभी क्षेत्रीय शादियों की तरह, बंगाली शादियां भी रीति-रिवाजों का एक समामेलन हैं, जिसका आध्यात्मिक महत्व समृद्ध है। ऐबुरोभट, दोधी मंगल, नंदी मुख, गए होलुद, शंख पौला, बोर बोरॉन, सात पाक, सुभो दृष्टि, संप्रदाय, सप्तपदी या सिंदूर दान हो, बंगाली शादियों में कई रीति-रिवाज हैं, जिनका अपना महत्व है। एक परंपरा जिसे बंगाली बहुत शुभ मानते हैं वह एक गूंजती हुई ध्वनि है जिसे उलूलू ध्वनि के नाम से भी जाना जाता है।

लेकिन क्या आपने यह जानने की कोशिश की है की बंगाली शादी में ऐसा कुछ किया जाता है। इसके पीछे क्या कारण है। शायद नहीं तो आज हम आपको बताएंगे कि बंगाली शादी में उलूलूध्वनि का क्या महत्व होता है। चलिए जानते हैं इस बारे में।

उलूलूध्वनि क्या है?

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बंगाल की दुर्गा पूजा का जश्न बेहद ही शानदार तरीके से होता है। ऐसे ही शादियां भी भव्य तरीके से की जाती हैं। हम सभी ने बंगाली शादी के दौरान एक आवाज जरूर सुनी होगी। लेकिन क्या आपने सोचा है कि वह आवाज क्यों निकली जाती है। शायद नहीं तो बता दें कि किसी भी शुभ अवसर पर या शादी के दिन बंगाली महिलाएं उलूलूध्वनि निकलती हैं। यह बोंग होता है जो हूंटिग साउंड क्रिएट करता है।

बता दें कि केवल बंगाल में ही नहीं बल्कि बंगाल, असम और ओडिशा में भी यह परंपरा निभाई जाती है। जहां विवाहित महिलाएं 'उलूलू' नामक ध्वनि उत्पन्न करती हैं।

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उलूलूध्वनि का महत्व

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बता दें कि यह ध्वनि उत्सव और समृद्धि से संबंधित है। बंगाली शादी में जब दुल्हा आता है और शुभोद्रष्टि के समय जब दुल्हन अंत में अपने चेहरे से पत्ते हटाती है और उनकी आंखें मिलती हैं तो महिलाओं द्वारा ये ध्वनि निकाली जाती है।

वहीं कुछ अन्य लोगों का मानना है कि इस ध्वनि से नकारामत्मक ऊर्जा दूर होती है। इसलिए किसी भी पवित्र अवसर की शुरुआत या अंत के दौरान ही यह आवाज निकाली जाती है। यह एक ऐसी कला है जिसमें सभी बंगाली महिलाएं महारत हासिल करती हैं। यह आमतौर पर शंख की तुरही से पहले होता है।

इसके साथ ही कहा जाता है कि सभी महिलाओं का एक साथ होकर यह ध्वनि उतपन्न करना वातावरण को सौम्य बनाता है। हालांकि, यह एक ऐसा अभ्यास है जिसे करना आसान लग सकता है, लेकिन इसके लिए बहुत अधिक अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इस ध्वनि को शुभ माना जाता है।

बंगाली शादी की अन्य रस्म

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आदान- प्रदान रस्म

आदान- प्रदान रस्म से शादी की शुरुआत होती है। लेकिन, यहां आदान- प्रदान का मतलब एक दूसरे के परिवार को उपहार या पैसा देने के बारे में नहीं है। बल्कि इसका मतलब है कि शादी से पहले दुल्हा और दुल्हन की सहमति लेना।

आशीर्वाद रस्म

बंगाली लोगों में सगाई की रस्म को आशीर्वाद कहा जाता है। आशीर्वाद की रस्म शादी के वास्तविक दिन से दो या तीन दिन पहले आयोजित की जाती है। हालांकि, दोनों परिवारों की इच्छा के अनुसार समय अलग-अलग भी हो सकता है।

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आई बुडो भात रस्म

इस रस्म में दूल्हा और दुल्हन द्वारा खाने का आनंद लिया जाता है। आई बुडो भात के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि दूल्हा या दुल्हन को परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या है। आई बुडो भात पर परोसा जाने वाला भोजन काफी शानदार होता है और इसमें दुल्हन की पसंद के अनुसार बंगाल के कई शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजन शामिल होते हैं।

वृद्धि रस्म

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यह बंगाली शादियों के दौरान निभाए जाने वाला सदियों पुराना रिवाज है। इस रस्म के दौरान दुल्हन और दूल्हे दोनों के परिवारों के बुजुर्ग लोग पूजा करते हैं। जहां वे दोनों परिवारों के पूर्वजों की पूजा करते हैं और नए जोड़े के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

डोढ़ी मंगल रस्म

यह शादी के दिन निभाई जाने वाली रस्म है। इस दिन दुल्हन को सुबह-सुबह लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी (बंगालियों में बहुत लोकप्रिय) पहनने के लिए दी जाती है और साथ में 'दोधी' और 'खोई' के नाम से जाना जाने वाला भोजन परोसा जाता है, जो क्रमशः दही और मुरमुरे का बंगाली नाम है।

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