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हिंदू शादियों में क्यों होती है सिंदूरदान की रस्म, जानें महत्व

Significance Of Sindoor Daan: हिन्दू शादियों की एक प्रमुख रस्म है सिंदूरदान की रस्म। इसे विवाह के लिए क्यों शुभ माना जाता है। आइए जानें इसके कारण और महत्व के बारे में। 
Editorial
Updated:- 2023-06-12, 14:04 IST

हिन्दू शादियों की कई रस्में हैं जिनका पालन हम सदियों से करते चले आ रहे हैं। सगाई से लेकर तिलक तक, जयमाला से लेकर फेरों तक, मेहंदी और हल्दी से लेकर सिंदूर दान तक ऐसी कई रस्में हैं जिनके बिना शादियां अधूरी मानी जाती हैं।

जिस तरह सभी रस्में प्रमुख होती हैं उसी तरह सिंदूर दान को भी विशेष माना जाता है। हिन्दू शादियों में फेरों के बाद दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर लगाता है तभी शादी की रस्म को पूर्ण माना जाता है।

हिन्दू धर्म शास्त्रों की मानें तो सिंदूर को विवाह का प्रतीक माना जाता है। इसी वजह से सिन्दूर दान के बाद विवाहित स्त्रियां अपने बालों में माथे के बिंदु से लेकर सिर तक सिंदूर लगाती हैं। मान्यता है कि इससे उनका सौभाग्य बना रहता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें शादी में सिंदूरदान की रस्म का महत्व। 

क्या है सिंदूरदान की रस्म 

sindoor daan ki rasm

हिंदू धर्म में सिंदूरदान विवाह की सबसे महत्वपूर्ण रस्म मानी जाती है। इस रस्म में पहली बार दुल्हन की मांग में दूल्हा एक सिक्के या अंगूठी से सिंदूर लगाता है। ऐसा कहा जाता है कि सिंदूर दान के बाद ही एक लड़की सही मायने में विवाहित मानी जाती है। सिंदूर सबसे पहले शादी वाले दिन ही लगाया जाता है और उसके बाद ये दैनिक श्रृंगार का हिस्सा बन जाता है। 

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सिंदूर दान का महत्व 

हिंदू धर्म में किसी भी दान का विशेष  महत्व है। उसी प्रकार शादी -विवाह के दौरान सिंदूरदान की रस्म को विशेष माना जाता है। हिंदू विवाह से जुड़ी परंपरा में कन्यादान के बाद सिंदूरदान को सर्वश्रेष्ठ संस्कार माना जाता है।

इससे पति-पत्नी का संबंध जीवन भर के लिए मजबूत होता है और उन्हें एक बंधन में बांधे रखता है। विवाह के दौरान जब वर वधू की मांग भरकर इस पंरपरा को निभाता है तब विवाह को पूर्ण स्वीकृति मिलती है।

सिंदूर दान के साथ फेरों और तेल चढ़ाने की रस्म भी निभाई जाती है और शादी के दौरान वधु वर के दाहिनी तरफ बैठती है। जैसे ही सिंदूरदान और फेरे पूरे हो जाते हैं दुल्हन दूल्हे के बाईं और आ जाती है क्योंकि पत्नी को वामांगी भी कहा जाता है। 

मांग में सिंदूर लगाने का महत्व 

sindoor dan ka mahatva

ऐसी मान्यता है कि सिंदूर लगाने से न केवल विवाहित महिला के पति की रक्षा होती है बल्कि उसे बुराइयों से भी बचाया जा सकता है। सिन्दूर के महत्व का उल्लेख पुराणों और ललिता सहस्रनामम में भी बताया गया है।

मान्यता है कि विवाह के बाद यदि शादीशुदा स्त्रियां मांग में सिन्दूर लगाती हैं तो उनका सौभाग्य बना रहता है और उनके सौंदर्य में भी निखार आता है। इसके साथ ही सिंदूर का रंग लाल होता है जिसे प्रेम और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। शास्त्रों में इसे रिश्ते की मजबूती का प्रतीक माना जाता है। यह भी माना जाता है कि इससे वैवाहिक रिश्ता मजबूत होता है। 

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सिंदूर से जुड़ी पौराणिक कथा 

एक पौराणिक कथा के अनुसार रामायण काल में जब हनुमान जी ने एक बार माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देखा तो उनसे यह प्रश्न किया कि वो मांग में सिन्दूर क्यों लगाती हैं। उस समय माता सीता ने बताया कि यह प्रभु श्री राम के प्रति उनके प्रेम को दिखाता है। उस समय हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर का लेप कर लिया जिससे उनका प्रेम भी प्रभु सही राम तक पहुंचे।  

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन मांग भरना अखंड सुहाग का प्रतीक होता है। शास्त्रों के अनुसार जो सुहागिन स्त्री हमेशा अपने सिर के बीचो-बीच मांग में सिंदूर भरती है, उसके पति के जीवन की रक्षा स्वयं मां सीता करती है।

 

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