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Maa Lakshmi Vrat Katha: शुक्रवार का रखती हैं व्रत तो जरूर पढ़ें ये कथा, होगी मां लक्ष्मी की कृपा

शुक्रवार को मां लक्ष्मी का व्रत रखने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रत के साथ कथा पढ़ना आवश्यक होता है, तभी मां लक्ष्मी की कृपा पूर्ण रूप से मिलती है। कथा में एक साधारण महिला की कहानी है, जो सच्ची आस्था से व्रत करती है और उसके जीवन में सुख-समृद्धि लौट आती है।
Editorial
Updated:- 2025-06-05, 17:23 IST

हिंदू संस्कृति में सप्ताह के प्रत्येक दिन का एक विशेष धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व होता है। ये दिन केवल देवी-देवताओं की आराधना के लिए ही नहीं, बल्कि नवग्रहों से भी गहराई से जुड़े होते हैं, जिससे हर दिन का आध्यात्मिक प्रभाव और भी अधिक शक्तिशाली माना जाता है।

इन्हीं सातों दिनों में शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है। वे देवी जो न केवल धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री हैं, बल्कि सौंदर्य, सुख और समृद्ध जीवन का आशीर्वाद भी देती हैं। इस दिन व्रत रखने और विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन में आर्थिक स्थिरता, पारिवारिक शांति और मानसिक संतुलन की प्राप्ति होती है।

ऐसी मान्यता है कि शुक्रवार का व्रत तब तक पूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसमें मां लक्ष्मी की व्रत कथा का पाठ न किया जाए। यह कथा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भक्ति, विश्वास और आत्मिक जागरूकता का माध्यम है, जो जीवन को सकारात्मक दिशा देने का काम करती है। तो चलिए, ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से जानते हैं शुक्रवार की व्रत कथा के बारे में।

शुक्रवार की व्रत कथा 

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एक बार एक गांव में शीला नाम की पतिव्रता स्त्री रहती थी। वो और उसका पति मां लक्ष्मी के परम भक्त थे। वह रोजाना मंदिर जाया करते थे और मां लक्ष्मी का जोरों शोरों से भजन-पूजन किया करते थे। पूरा गांव उनकी गृहस्थी और उनकी पूजा की सराहना करता था।(मंदिर जाने के लाभ)

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एक बार समय का फेर बदला और शीला का पति बुरी सांगत में पड़ गया। शीला के पति ने मां लक्ष्मी की पूजा छोड़ दी और कुसंगति के कारण अधर्म के मार्ग पर चल पड़ा। अपने पति को धर्म मार्ग से अधर्म के मार्ग पर जाता देख शीला बहुत परेशान होने लगी। 

हालांकि शीला ने कभी भी मां लक्ष्मी की पूजा नहीं छोड़ी और उनपर सब कुछ ठीक हो जाने का विश्वास बनाये रखा। एक बार ऐसा हुआ कि दुखी शीला मां लक्ष्मी की पूजा के लिए नहीं जा पाई और तब उसके घर एक बुजुर्ग माता जी आईं। उन्होंने द्वार खटखटाया। 

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शीला ने जब द्वार खोला तो उन माता जी को देख शीला को शांति का अनुभव हुआ और शीला ने उन्हें अंदर बैठाया। शीला ने उन्हें घर में विराजित कर उनकी सेवा की। बुजुर्ग माता जी ने शीला से प्रेम से जब उसके दुख का कारण पूछा तब शीला रोने लगी। 

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शीला ने बुजुर्ग माता को अपनी व्यथा का कारण बताया और तब वह बुजुर्ग माता अपने मूल स्वरूप में आईं जो कि स्वयं मां लक्ष्मी थीं। उन्होंने शीला को उपाय सुझाया कि वह शुक्रवार का व्रत रखे। शीला ने वैसा ही किया और मां लक्ष्मी की कृपा से शीला की गृहस्थी समृद्ध हो गई।

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आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से शुक्रवार की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से। 

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FAQ
माता लक्ष्मी का मूल मंत्र क्या है?
ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः
मां लक्ष्मी के धन मंत्र क्या हैं?
'ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नमः
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