मां की डांट को आज भी याद करती हैं ‘छोटी बहू’ रुबीना दिलैक

मदर्स डे पर ‘छोटी बहू’ रुबीना ने कहा कि आज मैं जो भी हूँ उसका पूरा श्रेय मेरी माँ को ही जाता है। रुबीना से हुई खास बातचीत के कुछ अंश पेश हैं। 

  • Shikha Sharma
  • Her Zindagi Editorial
  • Updated - 2018-05-13, 11:11 IST
Rubina Dilaik talking about mothers day ()

“माँ को स्पेशल फील कराने के लिए किसी ख़ास दिन की ज़रूरत नहीं है हाँ मगर, एक दिन ऐसा ज़रूर होना चाहिए जिस दिन वो रोज़ के मुकाबले अपने आपको और ज्यादा ख़ास समझें।” जानते हैं ये किसने कहा है? शो ‘छोटी बहू’ की फेम रुबीना दिलैक ने। फिलहाल शो ‘शक्ति... अस्तित्व के एहसास की’ में सौम्या का किरदार निभा रहीं रुबीना का मानना है कि मदर्स डे मनाना अच्छी बात है मगर, बाकी के दिन भी उन्हें स्पेशल फील करना चाहिए।

रुबीना ने कहा कि वो हर साल मदर्स डे का दिन याद रखती हैं और उन्हें याद है कि इस साल मदर्स डे 13 मई को आ रहा है। वो अपनी माँ से बेहद प्यार करती हैं और वो चाहती हैं कि वो अपनी माँ से कभी दूर ना हों। आइये जानते हैं और क्या क्या कहा रुबीना ने!

Rubina Dilaik talking about mothers day ()

छोटी छोटी चीज़ें करके भी रोज़ मना सकते हैं मदर्स डे

रुबीना ने कहा कि हमें रोज़ मदर्स डे मनाना चाहिए। जैसे कि रोज़ छोटा सा सही मगर, एक काम ऐसा करो जिससे आपकी माँ खुश हो जाए, उनके चेहरे पर हंसी आए। कभी अचानक उन्हें ‘मिस यू’ का मैसेज भेजना, उनके किसी काम में हाथ बंटा लेना या उनके लिए उनके पसंद की कोई चीज़ ला देना। इससे आपको भी अच्छा फील होगा। याद रहे कि माँ हैं तो आप हैं।

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Rubina Dilaik talking about mothers day ()

माँ के लिए चाहती हूँ सिर्फ अच्छा स्वास्थ्य

रुबीना ने आगे कहा कि आज मैं जो भी हूँ उसका पूरा श्रेय मेरी माँ को ही जाता है। उन्होंने मेरे लिए बहुत कुछ किया है और मैं भी कोशिश करती हूँ कि उन्हें सारी खुशियाँ दूं। हालाँकि, मैं उनका क़र्ज़ कभी नहीं चुका सकती मगर इसकी कोशिश मैं लगातार करती रहती हूँ। उनकी पसंद, नापसंद, उनकी ज़रूरतों का ख़याल तो मैं रखती ही हूँ पर मैं चाहती हूँ कि भगवान उन्हें अच्छी स्वास्थ्य दें जिससे वो हमेशा खुश रहें और अपनी ज़िन्दगी को खुलकर एन्जॉय कर सकें।

Rubina Dilaik talking about mothers day ()

बचपन की डांट का मतलब अब समझ में आ रहा है

रुबीना ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि मुझे याद है कि मेरी माँ मेरी ग़लतियों पर बहुत डांटा करती थीं। मेरी छोटी सी भी ग़लती को वो सुधारने में लगी रहती थीं और मुझे अब रियलाइज होता है कि वो ऐसा क्यूँ करती थीं। अब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो उन दिनों को बहुत मिस करती हूँ। मुझे लगता है कि सभी का बचपन ऐसा ही गुज़रा है, हमें लगता है कि हमारे पेरेंट्स हमें समझ नहीं रहे लेकीन, असल में सिर्फ वही हैं जो हमें अच्छी तरह समझते हैं।

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