जब बात प्रेम की होती हैं तो सबसे पहले जहन में भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम प्रसंगों की गाथा का चित्र उभर आता है। दोनों की प्रेम कहानी को इस दुनिया में सदा के लिए लोग स्मरण रखेंगे। इनकी प्रेम गाथा थी ही इतनी अलौकिक। वैसे तो राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से जुड़े कई तथ्य मिलते हैं। यहां तक कि उत्तर प्रदेश के गांव बरसाना और वृंदावन की गली-गली में आज भी केवल राधा और कृष्ण के प्रेम के चर्चे होतें।
ऐसे मान्यता है कि जहां कृष्ण गोकुल के एक ग्वाले थे वहीं राधा बरसाना के मुखिया बृजभान जी की पुत्री थीं। दोनों ही बचपन से ही एक दूसरे के बहुत अच्छे मित्र थे। मगर एक ग्वाले और मुखिया की बेटी के बीच की दोस्ती के चर्चे पूरे गांव भर होते। मगर, इन सब का न तो राधा पर कोई असर होता न ही कृष्ण पर। मगर कथा के अनुसार भगवान कृष्ण को जब बरसाना छोड़ कर मथुरा जाना पड़ा तो अपने जाने से पूर्व उन्होंने अपनी माया से राधा को बरसाने की रानी बना दिया।
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लोग अब तक यही जानते हैं मगर, इसके पीछे की रोचक कथा बहुत कम लोगों को ही पता है। लोकप्रिय टीवी सीरियल राधाकृष्ण के अनुसार राधा बरसाने के रानी कैसे बनी आइए हम आपको बताते हैं।
राधा और कृष्ण के मध्य के प्रेम को पूरा वृंदावन और बरसाना समझता था। यहां तक कि दोनों के घर वाले उनका विवाह करवाना चाहते थे। मगर, नियति के अनुसार राधा को यह श्राप मिला था कि वह 100 वर्षों तक अपने प्रेमी भगवान कृष्ण के साथ नहीं रह पाएंगी। जब राधा और कृष्ण ने पृथ्वी लोक पर अवतार लिया तो हुआ भी ऐसा।
दोनों का विवाह नहीं हो पाया। राधा का विवाह अयान से हो गया जो बरसाना के महा पंडित उग्रपत का पुत्र था। राधा की सास जटीला और नंद जटीला दोनों ही राधा से जलन की भावना रखती थीं वहीं पति अयान के साथ भी राधा के संबंध अच्छे नहीं थे। राधा और कृष्ण के प्रेम के कारण राधा को अपने ससुराल में कई दुखा भोगने पड़े।
ससुराल में राधा को बेटी समझता तो वह थे उसके ससुर उग्रपत। जब कंस की मृत्यु का वक्त आया तो भगवान कृष्ण को वृंदावन और बरसाना छोड़ मथुरा जाना पड़ा। जाने से पहले राधा ने यह चुनौती स्वीकार की थी कि भगवान कृष्ण कंस का वध कर देंगे। वहीं राधा के ससुराल वालों का मत था कि कृष्ण कंस को कभी नहीं हरा पाएंगे। तब राधा ने इस चुनौती को स्वकार किया और इस बात की प्रतिज्ञा ली कि यदि कृष्ण हार गए तो वह हमेशा के लिए वनवास चली जाएंगी और अगर कृष्ण जीत गए तो बरसाना वाले उन्हें वहां की रानी बना देंगे।
जब कृष्ण ने कंस का वध कर दिया तो राधा रानी के ससुर ने भरी सभा में उन्हें बरसाना की रानी घोषित कर दिया। मगर राधा रानी ने 64 दिन तक रानी के पद को स्वीकार नहीं किया। कारण था कि कंस के वध के बाद कृष्ण और बलराम को गुरु गर्ग के साथ ऋषि संदीपनी के आश्रम शिक्षा ग्रहण करने जाना पड़ा जहां 7 वर्ष तक उन्हें योगी का जीवन बिताना था।
ऐसे में राधा को बरसाना की रानी बनना स्वीकार न हुआ। जब इस बात का आभास श्री कृष्ण को हुआ तो जो 64 कलाएं उन्हें 7 वर्षों में सीखनी थीं वह उन्होंने बिना सोए 64 दिनों में ही सीख लीं। जब वह मथुरा लौटे तो कंस के ससुर जरासंध के आक्रमण से मथुरा के उपर खतरा मंडराने लगा।
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इस खतरे से बरसाना और उसके आसपास के गांव की प्रजा को बचाने के लिए श्री कृष्ण को बरसाना लौटना पड़ा। मुखिया के अभाव में बरसाना पहले से ही परेशान ऐसे में श्री कृष्ण ने सबसे पहले राधा को बरसाने की रानी घोषित किया और फिर बरसाना की प्रजा को बचाने के लिए उन्हें किसी और नगर में भेजा गया। इस तरह राधा रानी बरसाने की रानी बन गईं। आज भी बरसाना में राधा रानी का महल है जहां वह भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी की तरह पूजी जाती हैं।
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