क्या आपने कभी सोचा है कि किसी एक तरह की परिस्थिति में दो लोग अलग-अलग व्यवहार कैसे कर लेते हैं? क्या कभी आपने नोटिस किया है कि आंसू सबसे पहले किस आंख से बहता है? स्वास्थ्य से जुड़ी कई बातें तो हम जानते हैं, लेकिन दिमाग से जुड़ी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। साइकोलॉजी मानती है कि कई बार एक ही इंसान एक जैसी परिस्थिति में ही अलग-अलग तरह से रिएक्ट कर सकता है। साइकोलॉजी से जुड़े फैक्ट्स बहुत ही यूनिक होते हैं जिनके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट की सीनियर चाइल्ड और क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट और हैप्पीनेस स्टूडियो की फाउंडर डॉक्टर भावना बर्मी से हमने कुछ ऐसे साइकोलॉजिकल फैक्ट्स के बारे में जानने की कोशिश की जिन्हें लोग अधिकतर सच नहीं मानते हैं। ये फैक्ट्स भले ही झूठे लगें, लेकिन ये होते बिल्कुल सच हैं।
नहीं-नहीं यहां इमोशन्स का वायरस मतलब कोई सच मुच का वायरस नहीं, बल्कि एक्सप्रेशन का एक तरीका है। जिस तरह से कॉमन कोल्ड जैसी बीमारियां ट्रांसफर हो सकती हैं, वैसा ही हाल इमोशन्स का भी है। दुख, खुशी, स्ट्रेस यहां तक कि एंग्जायटी भी ट्रांसफर हो सकती है। आपके करीबियों को आपके दुख का अहसास हो सकता है। अगर आप सड़क पर किसी बहुत दुखी व्यक्ति को देख लें, तो उसे देखकर आपका मूड भी खराब हो सकता है। सोशल इंटरेक्शन से यह और ज्यादा बढ़ता है। इमोशनल स्ट्रेस अगर बांटा जाए, तो यह दूसरे इंसान को भी हो सकता है।
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इसे 'मोजार्ट इफेक्ट' माना गया था जिसे पहले सच्चाई समझा जाता था। दरअसल, पहले के समय में यह मान्यता थी कि क्लासिकल म्यूजिक जैसे मोजार्ट आदि को सुनने से कुछ समय के लिए आपकी बुद्धिमत्ता बढ़ जाती है। हालांकि, इसके असर को लेकर की गई स्टडीज के मिश्रित परिणाम हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि म्यूजिक दिमाग पर पॉजिटिव इफेक्ट लेकर आता है इसलिए इमोशन्स और दिमाग दोनों लिंक होकर काम करते हैं। शायद इसलिए ही म्यूजिक सुनकर लोग खुद ज्यादा क्रिएटिव महसूस करते हों।
डॉक्टर भावना के अनुसार, कई स्टडीज भी यह मान चुकी हैं कि किसी को गले लगाने से अकेलेपन का अहसास कम हो जाता है। किसी को गले लगाने से शरीर में ऑक्सीटोसिन लेवल बढ़ता है। इसे लव हार्मोन कहा जाता है जिसका असर थोड़ा-थोड़ा वैसा ही होता है जैसे आपने कोई ड्रग ले लिया हो और दिमाग खुश हो गया हो। संजय दत्त की फिल्म 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' वाला जादू की झप्पी का कॉन्सेप्ट यकीनन साइंस के हिसाब से भी सच है।
साइकोलॉजी यह मानती है कि अगर कोई इमरजेंसी आ जाती है, तो लोग मदद करने से कतराते हैं। इस दुखद फैक्ट का सीधा उदाहरण हमने दिल्ली में 16 साल की लड़की की हत्या के तौर पर देखा था जब गली से गुजर रहे लोगों ने लड़की को बचाने की कोशिश नहीं की थी और एक सिरफिरे आशिक ने चाकू मारकर उसकी हत्या कर दी थी। इस इफेक्ट को साइकोलॉजी में "diffusion of responsibility," (उत्तरदायित्वों का बंटवारा) कहा जाता है।
इसका सीधा सा लॉजिक है कि लोग समझते हैं कि उनकी जगह कोई और इस काम को कर देगा। आप अपने ऑफिस में ऐसा उदाहरण रोजमर्रा में देख लेते होंगे जब कोई एक्स्ट्रा काम आने पर लोग बहाने बनाने लगते हैं।
हमारे इमोशन्स और एक्शन्स हमेशा रंगों के जरिए कंट्रोल हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, नीला अक्सर शांति और प्रभावशीलता से जोड़कर देखा जाता है, जबकि लाल भूख और एकाग्रता बढ़ा सकता है। यह दर्शाता है कि रंग जैसी बुनियादी चीज़ भी हमारी भावनाओं और सोच पर कितना बड़ा प्रभाव डाल सकती है।
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इस फैक्ट का उदाहरण आपको ज्यादा देखने को मिलता होगा। हो सकता है कि ऐसा आपके साथ भी हुआ हो। भले ही फोन आपकी जेब में रखा हो और वो बज नहीं रहा हो फिर भी ऐसा लगेगा कि कोई नोटिफिकेशन आया है या फिर फोन की घंटी बज रही है। हम अपने फोन के इतने आदी हो जाते हैं कि हमें इस बारे में सोचकर ही अजीब लगने लगता है कि कहीं फोन की रिंगटोन हमसे मिस ना हो जाए। हम बस उसी फोन के बजने का इंतजार करते रहते हैं।
अगर आप खुश हैं, तो आपका दिमाग भी खुश होगा, लेकिन ऐसा नहीं है कि आपकी जिंदगी में इसका और कोई असर नहीं होता है। इसके कारण एंडोरफिन्स रिलीज होते हैं और शरीर के अंदर फील-गुड केमिकल्स बढ़ जाते हैं। इससे दुख और दर्द दोनों ही कम होते हैं। आपका मूड अच्छा रहता है और अगर आप ज्यादा हंसते हैं, तो आपकी पूरी सेहत अच्छी होती है।
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