राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा तीन क्रिमनल लॉ बिल को मंजूरी दिए जाने के बाद, लोगों की मानें तो भारत की क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है। पुराने आईपीसी, सीआरपीसी और आईईए की जगह लेने वाले तीन नए कानूनों को अब राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है। इन बिलों का मकसद ब्रिटिश शासन या औपनिवेशिक दौर (Colonial System) से चली आ रही क्रिमिनल लॉ में सुधार किया जाना है, जिसमें आतंकवाद, लिंचिंग और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों के लिए दंड बढ़ाने पर गौर किया गया है।
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इस बिल पर हमारे एक्सपर्ट, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट शादाब नकवी बताते हैं कि यह बिल किस तारीख से लागू होगा, इसके बारे में कोई स्पष्टता नहीं आई है। नए कानूनों की प्रोसीजर और फॉर्मेलिटी के संबंध में पुलिस शासन के पास प्रॉपर ट्रेनिंग भी नहीं है।
पुलिस उन प्रावधानों से अनजान है, जो एफआईआर में शामिल होंगे। नए कानूनों और प्रोसीजर को पूरा करने के लिए सीसीटीएनएस (CCTNS) की फाइलिंग सिस्टम को भी बदलने की जरूरत है।
क्रिमनल लॉ बिल में आईपीसी की धारा 377 को हटा दिया गया है। हालांकि, इसका इस्तेमाल पुरुषों द्वारा किसी पुरुष के साथ दबाव बना कर किए गए अननेचुरल रेप का दावा करने के लिए किया जाता था, लेकिन अक्सर मैरिटल रेप के तहत इसका इस्तेमाल कोई पत्नी अपने पति के खिलाफ भी करती थी, क्योंकि बलात्कार का प्रावधान (376 आईपीसी) उसके लिए उपलब्ध नहीं था। क्रिमनल लॉ बिल मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार को सजा देने में विफल है।
आतंकवाद जैसे कुछ अपराधों को दोहराया गया है
यूएपीए (UAPA) के साथ-साथ नए बीएनएस (BNS) में भी दोहराया गया है। यह एसपी यानी पुलिस अधीक्षक को कई स्तर पर यह निर्णय लेने की विवेकाधीन शक्ति (Discretionary Power) भी देता है कि किसी मामले में किस अधिनियम का उपयोग किया जाना है।
नए डिजिटल दौर में वीडियो कांफ्रेंसिंग या वीडियो रिकॉर्डिंग को सशक्त बनाया गया है, लेकिन किसी भी हकीकत नतीजे को देखने से पहले बुनियादी ढांचा और ट्रेनिंग देना होगा। भारत के संविधान के अनुच्छेद 20(1) में कहा गया है कि क्रिमिनल लॉ को बीते हुए कानून पर पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि पुराने अपराधों पर पुराने कानूनों के तहत और नए अपराधों पर नए कानूनों के तहत मुकदमा चलाना होगा, इससे काफी भ्रम पैदा हो सकता है क्योंकि दोनों कानून कई साल तक एक साथ चलेंगे।
इस बिल में सकारात्मक पक्ष यह है कि मॉब लिंचिंग के लिए सजा दी जाएगी और आतंकवाद की परिभाषा को कमजोर कर दिया जाएगा जैसा कि पहले बीएनएस बिल में दिया गया था, जिसे बाद में बदलकर यूएपीए के करीब कर दिया गया। राजद्रोह अब कम कठोर है लेकिन फिर भी इतना बड़ा है कि किसी के आवाज को दबा सकता है।
न्यायालय के फैसले में संभव है कि कई कमियां भर देंगे और आने वाले कई सालों के लिए नई व्याख्या प्रदान करेंगे। मुझे लगता है कि इस तरह के बड़े स्तर पर लागू किए जाने वाले कानून को सामने लाने से पहले इस पर प्रॉपर तरीके से बहस और विचार-विमर्श किया जाना चाहिए था। इसके अलावा तीन नए क्रिमनल बिल में ज्यादातर प्रावधान पिछले कानून जैसे ही हैं, जैसे सरकार निचली न्यायपालिका में खाली पदों को भरने और पुलिस को ट्रेनिंग में खासकर अभियोजन के लिए उपयोग कर सकती है।
ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट और एडवोकेट तूबा खान कहती हैं, "पहले के क्रिमनल लॉ जेंडर के आधार पक कुछ मामलों में पक्षपाती थे, लेकिन नया क्रिमिनल लॉ जेंडर न्यूट्रल साबित हो सकता है। पुराने क्रिमिनल लॉ की कमियों को इस कानून में खत्म कर दिया गया है।
वहीं, शामिल किए गए कई आर्टिकल खास तौर पर यूएपीए और अन्य मौजूदा कानूनों में कुछ भी नया नहीं है, यह पहले जैसा ही है। साथ ही क्राइम के लिए जरूरत थी कि कठोर दण्ड दिये जाए, जो केवल दंड से ही खत्म हो सकते हैं। इसमें कुछ खास बदलाव नहीं आए हैं।
आतंकवाद, मॉब लिंचिंग जैसे अपराध कुछ मायनों आलोचना भरे हो सकते हैं। इन कानूनों से पुलिस की भूमिका मजबूत हो सकती है, लेकिन कहीं न कहीं किसी लोकतांत्रिक देश होने के नाते नागरिक स्वतंत्रता को बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दिया गया है।
प्रधानमंत्री से लेकर गृह मंत्री और सासंद ने बिल पर क्या कहा?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में आपराधिक विधेयक पेश करते हुए कहा कि एक बार कानून लागू हो जाने पर, "तारीख-पे-तारीख" दौर का अंत हो जाएगा और तीन साल के भीतर न्याय मिलेगा। शाह ने राज्यसभा में विधेयक पेश करते हुए कहा, "मुझे गर्व है कि पहली बार, भारत की संसद देश की आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए कानून बना रही है, जिसमें पूरी तरह से 'भारतीय' आत्मा, शरीर और विचार है।"
आज का दिन देश के लिए ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि आज भारत को अपने नए आपराधिक न्याय कानून मिले हैं। इस गौरवपूर्ण क्षण पर सभी भारतवासियों को बधाई। आज संसद में पारित तीनों विधेयक, अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए कानूनों की जगह लेंगे और एक स्वदेशी न्याय प्रणाली का दशकों पुराना स्वप्न साकार…
— Amit Shah (@AmitShah) December 21, 2023
यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कानूनों की सराहना की और इसे भारत के इतिहास में एक "ऐतिहासिक पल" कहा।
The passage of Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023, Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023 and Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023 is a watershed moment in our history. These Bills mark the end of colonial-era laws. A new era begins with laws centered on public service and welfare.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 21, 2023
वहीं, पूर्व वित्त मंत्री और राज्यसभा सांसद पी.चिदंबरम ने एक्स पर कहा कि नई भारतीय दंड संहिता और भी ज्यादा कठोर साबित होगी। अगर आप यह महसूस करते हैं कि संहिता का इस्तेमाल अक्सर गरीबों, मजदूर वर्ग और कमजोर वर्गों के खिलाफ किया जाता है, तो कानून लोगों के इन वर्गों के खिलाफ उत्पीड़न का एक साधन बन जाएगा। नई आपराधिक प्रक्रिया संहिता में कई प्रावधान शामिल हैं, जो असंवैधानिक हैं और संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन करते हैं।
Just as the Christmas Day celebrations are coming to an end, we hear the news that the President has given her assent to the three criminal law Bills
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) December 25, 2023
The new Indian Penal Code has become more draconian. If you realize that the Code is more often than not used against the poor,…
आइए जानते हैं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत में किन नए तीन आपराधिक बिलों को मंजूरी दिया है।
भारतीय न्याय संहिता (Indian Judicial Code)
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय दंड संहिता को बदलने का प्रस्ताव करती है। यह बिल आतंकवाद, अलगाववाद, सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह यानी Armed Rebellion और देश की संप्रभुता यानी सम्पूर्ण और असीमित सत्ता को चुनौती देने जैसे अपराधों को परिभाषित करता है। यह राजद्रोह के अपराध को भी निरस्त करता है, जिसकी बड़े स्तर पर आलोचना भी की जा रही है कि यह फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के साथ किसी के असहमति पर अंकुश लगाता है। यह मॉब लिंचिंग के लिए ज्यादा से ज्यादा सजा के तौर पर मृत्युदंड का भी प्रावधान करता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Indian Civil Defense Code)
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता दंड प्रक्रिया संहिता को बदलने का प्रस्ताव करती है। यह विधेयक गिरफ्तारी, इल्जाम और जमानत के लिए नए नियम और प्रक्रिया स्थापित करता है। यह आतंकवादियों और अन्य गंभीर अपराधियों को जल्दी से न्याय दिलाने के लिए विशेष अदालतों की स्थापना करने का भी प्रावधान करता है।
भारतीय साक्ष्य संहिता (Indian Evidence Code)
भारतीय साक्ष्य संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम को बदला गया है। यह बिल साक्ष्य यानी Evidence को स्वीकार करने और असेसमेंट के लिए नए नियम और सिद्धांत प्रदान करता है। यह खास तौर पर आतंकवाद और अन्य गंभीर अपराधों के मामलों में साक्ष्य को कड़े तौर पर स्वीकार करता है।
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