समाज के रिस्पेक्टेड मेंबर्स,
उम्मीद है आप अच्छे ही होंगे। आज जिस बात को कहने के लिए यह खत लिखा जा रहा है, वो बहुत ही जरूरी है। हालांकि, आपको इसके बारे में ना जाने कितनी बार बताया गया होगा, लेकिन एक बार फिर बात दोहराने से कोई दिक्कत नहीं है। भारत की सभी महिलाओं की तरफ से मैं आपको यह कहती हूं कि हम सुरक्षित नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि हमारे देश में किसी को भी आंकड़े दोहराने की जरूरत है फिर भी आपकी खुशी के लिए बता देती हूं कि भारत में हर 16 मिनट में किसी ना किसी लड़की का रेप हो रहा है।
हो सकता है आपको यह सुनने की आदत हो गई हो, लेकिन समस्या जितनी समझ आ रही है, उससे ज्यादा खराब है। हम सुरक्षित नहीं हैं। इसे लेकर आप कितने भी तर्क दे दें, लेकिन हम सुरक्षित नहीं हैं। बचपन से लेकर आज तक यही सुना है कि लड़के और लड़की में फर्क होता है, लेकिन एक चीज जो बड़े होने के बाद समझ आई वह यही है कि लड़कियों को हमारे देश में लड़कों के बराबर कभी देखा ही नहीं जा सकता है।
बचपन में लड़कों को बाहर जाने की इजाजत मिल जाती थी और हमें चाचा, काका, फूफा जैसे रिश्तेदारों के सामने खुलकर हंसने से भी मना किया जाता था। घर-घर खेल में भी हमें बस चूल्हा-चौका करने को ही कहा जाता था। भाई को डॉक्टर सेट तो हमें खिलौनों में भी किचन सेट दिया जाता था। जिंदगी में ऐसे कई पड़ाव आए हैं जब भारत में लड़की और लड़के का फर्क समझ आया है, लेकिन इसकी क्रूर सच्चाई से आज आपको अवगत करवाना भी जरूरी है।
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बचपन में जब अंग बने भी नहीं थे, तब से यह समझ आ गया कि ऐसे अंग हैं जिन्हें भीड़ में लोग छूने की कोशिश करते हैं। साथ में बड़े होते भाई को कभी यह नहीं समझाया गया कि जिंदगी में उन्हें किसी आती-जाती लड़की को नहीं देखना है। पर हमें जरूर यह समझाया गया कि आते-जाते आंखें नीची करनी हैं और जितना हो सके घर के अंदर रहना है। जब बात घर के अंदर भी खराब हो गई, तो यह समझाया गया कि घर की बात घर में ही रखनी चाहिए।
इंसान के लिए बाहर वालों से लड़ना आसान है, लेकिन भारत की बेटियों को अन्याय की जंग अपने घर में ही लड़नी पड़ती है। जैसे सिर्फ नियमों में ऊंच-नीच काफी नहीं थी, लड़कियों को हर दिन बस यही समझाया जाता है कि उन्हें खुद को बचाना है।
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ये तो शायद कुछ उदाहरण होंगे, लेकिन ऐसे कई हैं जिन्हें रोजाना सुना, देखा और महसूस किया जाता है। हमारे मन में बचपन से ही यह डाल दिया जाता है कि हम लड़कों से अलग हैं। हमें बचपन से ही डर कर रहने की ट्रेनिंग दी जाती है, लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि लड़कों को ट्रेनिंग दी जाए हमें बराबर महसूस करने की?
देश के किसी हिस्से में एक विभत्स्य घटना हो जाती है और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम चुप रहें, हमें अल्टीमेटम दिया जाता है कि हम आगे कुछ ना बोलें। कोलकाता की घटना के बाद लड़कियों की नाइट शिफ्ट हटाने की बात की गई। स्कूल बसों में लड़कियों को पीछे की सीट पर बैठाने की बात की गई। सुरक्षा के नाम पर लड़कियों को और नियमों से लाद दिया गया। क्या यही है सुरक्षा का उदाहरण? क्या यही है हमारे लिए सुरक्षा?
अगर लड़कियों के लिए नियम बनाने से कुछ हल हो पाता, तो फिर इतनी बड़ी समस्या ना पैदा होती। आप किसी लड़की को पिंजरे में रखें और कहें कि इससे उसकी सुरक्षा हो रही है, तो फिर यह तो गलत होगा ना। खुद सोचिए कि आप लड़कियों से कह रहे हैं कि बंद रहो, अपने करियर का नुकसान कर दो, अपनी पसंद के कपड़े ना पहनो, अपने घर के अंदर भी डर कर रहो, तभी सुरक्षा मिलेगी।
जेल और सजा तो अपराधियों के लिए बनी है फिर क्यों समाज में यही समझा जाता है कि लड़कियों पर बंदिशे लगाने से वो सुरक्षित रहेंगी। हम अभी भी मुख्य समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। समाज का हिस्सा होते हुए आपको यह समझने की जरूरत है कि यहां क्या गलत है। अगर हर एक व्यक्ति यही समझने लगे कि गलत क्या है, तो शायद हम लड़कियों के लिए यह देश सुरक्षित बना पाएंगे।
समाज का हिस्सा, एक लड़की
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