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india rape cases statistics in past  years

हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार...कानून बदलने के बाद भी नहीं बदले हालात, महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान हैं ये आंकडे़

कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई रेप और हत्या ने पूरे देश को सदमे में डाल दिया। सभी न्याय की मांग कर रहे हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हमारे देश में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार हो रही हैं। 
Editorial
Updated:- 2024-09-05, 16:10 IST

हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार...

10 सालों में रेप के 3.6 लाख केस...

99 प्रतिशत रेप के मामले नहीं हो पाते दर्ज...

100 में से सिर्फ 27 दोषियों को सजा...

साल 2022 में प्रेग्नेंट महिलाओं के साथ रेप के 34 मामले...

ये पंक्तियां बेशक आपके रोंगटे खड़े कर सकती हैं। लेकिन, यह हम नहीं कह रहे हैं। यह जो भी अभी आपने पढ़ा, यह आंकड़ों और रिपोर्ट्स के आधार पर है। हाल ही में कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुए रेप और हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इसके बाद, पिछले कुछ दिनों में और भी कई रेप के मामले सामने आए हैं। इससे पहले साल 2012 में निर्भया के साथ चलती बस में हुई दरिंदगी ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। ये कुछ ऐसे मामले हैं, जो चर्चा में आए और पूरे देश में इनके खिलाफ रोष साफ नजर आया। लेकिन, असल में आंकड़े और भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं। जी हां, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) का डाटा बताता है कि महिलाओं के साथ हो रहे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। पिछले कुछ सालों में न जाने कितने रेप के मामले सामने आए हैं...कितने मामले रिपोर्ट ही नहीं हो पाए हैं...कितने मामलों में आज तक पीड़िता इंसाफ का इंतजार कर रही हैं और कितने मामलों में उन्हें इंसाफ की गुहार लगाने से भी रोका गया। चलिए, नजर डालते हैं इन आंकड़ों पर।

साल 2012 से 2022 के बीच में रेप के इतने मामले दर्ज

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साल 2012 में निर्भया केस के बाद, रेप के मामलों में कई कानून बदले गए। इस दिल-दहलाने वाले मामले के बाद, कानून कड़े हुए और सुनवाई भी जल्दी करने पर जोर दिया गया। सभी को लगा कि शायद कड़े कानूनों के बाद, अब रेप के मामले कम होंगे। लेकिन, यह कहने में मेरा दिल भी टूट रहा है कि रेप के मामले कम नहीं हुए, बल्कि और बढ़ते गए। साल 2013 में ही रेप के 33,707 मामले दर्ज किए गए। बाकी सभी आंकड़े आप ऊपर देख सकते हैं। एनसीआरबी के डाटा के अनुसार, हर एक घंटे में 3-4 महिलाएं रेप का शिकार हो रही हैं।

साल 2020 से 2022 के आंकड़े हैं चौंकाने वाले 

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साल 2022 में महिलाओं के साथ हुए अपराध के आंकड़े आप ऊपर देख सकते हैं। ये आंकड़े बेशक चौंकाने वाले हैं। इसके अलावा, आपको जानकार हैरानी होगी कि साल 2020 और साल 2021 में रेप के अलावा, महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिहाज से किए गए हमलों के मामले भी बहुत हैं। साल 2020 में ये 85,392 थे। वहीं, साल 2021 में ये 89,200 थे। इसके अलावा, पॉक्सो एक्ट में भी दोनों साल लगभग 50,000 मामले दर्ज हुए हैं। महिलाओं के साथ पति और रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के मामले साल 2020 में 111,594 और साल 2021 में 136,234 थे। साल 2020 से साल 2022 के बीच, उत्तप्रदेश में महिलाओं के साथ रेप के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं। दुख की बात यह है कि ये आंकड़े लगातार बढ़े हैं।

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100 में से केवल 27 आरोपियों को ही मिलती है सजा

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यहां सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि रेप के 100 मामलों में से केवल 27 आरोपियों को ही सजा मिल पाती है। बाकी मामलों में दोष साबित नहीं हो पाता है और आरोपी को बरी कर दिया जाता है। पिछले 10 सालों में रेप के लगभग साढ़े तीन लाख मामले दर्ज किए गए हैं। सोचने की बात यह भी है कि बलात्कार के साथ हत्या के कई मामले साक्ष्य न मिल पाने के कारण बंद कर दिए गए।  साल 2021 में रेप के मामलों में करीब 58 लाख से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था। एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि रेप के ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आ पाते हैं और इनमें केस दर्ज नहीं हो पाता है। कई बार इसके पीछे समाज का दबाव, बदनामी का डर और भी कई कारण होते हैं। साल 2022 के आखिर तक देश की अदालतों में रेप के करीब दो लाख से भी ज्यादा मामले पेंडिंग थे। 

हर उम्र की महिलाएं हो रही हैं रेप का शिकार

अक्सर रेप को लेकर महिलाओं के कपड़ों, बाहर आने-जाने या अन्य कई कारणों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन, अगर साल 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि बच्चे से लेकर बूढ़ी तक, हर उम्र की महिलाएं रेप का शिकार हो रही हैं। साल 2021 में 6 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ रेप के 53 मामले दर्ज किए गए थे। वहीं, 12 से 16 साल की बच्चियों के साथ रेप के 1030 मामले रिपोर्ट हुए थे। इतना ही नहीं, 60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के साथ भी रेप के लगभग 80 मामले दर्ज हुए थे।

देश की राजधानी दिल्ली का यह है हाल

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तमाम दावों के बाद भी  दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध कम नहीं हुए हैं, बल्कि बढ़े हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दिल्ली भी महिलाओं के साथ अपराध के मामले में पीछे नहीं है।

साल 2020 में दिल्ली पुलिस ने बताया था यह आंकड़ा

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आप जिस आंकड़े पर नजर डाल रहे हैं, वह साल 2020 में दिल्ली पुलिस ने दिया था। इसके अनुसार, रेप के मामलों में ज्यादातर आरोपी, महिला की जान-पहचान में ही थे।

साल 2012 के बाद कानून में क्या हुए थे बदलाव?

साल 2012 के बाद, रेप के मामलों में कानून और कड़े कर दिए गए थे। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में रेप की परिभाषा को और डिटेल्ड कर दिया गया था। रेप के मामलों को बढ़ता देख, मिनिमम सजा को बढ़ाकर 7 साल से 10 साल कर दिया गया था। अगर पीड़िता की मौत हो जाती है, तो अधिकतम सजा को 20 साल कर दिया गया था। इन मामलों में एफआईआर दर्ज होने, मेडिकल जांच के बाद और पीड़िता का बयान दर्ज होने के बाद, प्री-ट्रायल शुरू होता है और इसमें लगभग 2-3 महीने का वक्त लगता है। आरोप पत्र दाखिल होने के बाद 60 दिनों के अंदर अदालत को प्रक्रिया पूरी करनी होती है। हालांकि, हमारी अदालतों में रेप के अभी कई लाख मामले लंबित हैं, जो अपने-आप में एक सवाल है।

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कड़े कानूनों के बाद भी क्यों नहीं रुक रहे हैं रेप केसेज?

रेप के मामलों में बेशक अब कानून और भी कड़े हो गए हैं। सोशल मीडिया, प्रेस और भी कई वजहों से अगर कोई मामला चर्चा में आ जाता है, तो उसे लेकर देश का रोष भी साफ दिखाई देता है। लेकिन, फिर भी आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे में कहीं न कहीं यह सवाल उठता है कि आखिर ये घटनाएं कैसे रुकेंगी? इन मामलों में बेशक सजा जरूरी है पर उससे कहीं ज्यादा जरूरी समाज की सोच बदलना है। महिलाओं के खिलाफ इन तरह के अपराध तब ही रुकेंगे, जब हम महिलाओं का सम्मान करना सीखेंगे। शायद सच्ची आजादी भी वही होगी, जब महिलाएं बिना डर और रोक-टोक के बेबाक अपनी जिंदगी जी पाएंगी।

 

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 महिलाओं के खिलाफ रेप के ये आंकड़े कहीं न कहीं समाज की सच्चाई दिखाते हैं। विडंबना यह भी है कि न जाने कितने मामले दर्ज भी नहीं हो पाते हैं और महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं... कितने मामले अदालत में सालों तक चलते रहते हैं और इंसाफ की राह तकते हुए पीड़िता की आंखें थक जाती हैं। इन मामलों में कड़ी सजा तो जरूरी है ही, लेकिन असल में ये मामले सिर्फ तब रुकेंगे, जब हमारी सोच बदलेगी। यकीन मानिए. इन आंकड़ों को देखकर और इस विषय पर लिखते हुए, मैं ऐसे समाज का हिस्सा होने पर शर्मिंदगी महसूस कर रही हूं। आप इस बारे में क्या सोचते हैं, हमें कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं।

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