हिन्दू धर्म के अनुसार नागपंचमी का पर्व विशेष महत्व रखता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी मनाया जाता है। इसमें विशेष रूप से नागों की पूजा का विधान है। इसमें लोग नाग का चित्र घर में बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।
इस बार ये पर्व 2 अगस्त, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। आप सभी के मन में ये ख्याल जरूर आता होगा, लेकिन आपमें से शायद ही कुछ लोग ये बात जानते होंगे कि इस पर्व के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जो वास्तव में अचंभे में भी डाल सकती हैं।
आइए ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु विशेषज्ञ डॉ आरती दहिया जी से जानें नागपंचमी से जुड़ी कुछ ऐसी ही रोचक कथाओं के बारे में जिसमें नाग माता के अपने ही बच्चों को भस्म होने का श्राप देने की कहानी भी है।
क्या आपके मन में ऐसे ख्याल आते हैं कि आखिर नागों की उत्पत्ति कैसे हुई? दरअसल इस बात का जवाब हमें धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज भी नागलोक धरती के भीतर है और वहां नागों का वास है।
वहीं शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने ऊपर धारण कर रखा है। लेकिन जब बात नागों की उत्पत्ति की आती है तो इस बात का जिक्र महाभारत में है। इस ग्रन्थ के अनुसार महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थीं, जिनमें से एक का नाम कद्रू था।
एक बार प्रसन्न होकर एक बार महर्षि कश्यप ने कद्रू को एक हजार तेजस्वी नागों की माता होने का वरदान दे दिया। उसी वरदान के परिणाम से नाग वंश की उत्पत्ति हुई।
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महर्षि कश्यप की दूसरी पत्नी विनता थीं और पक्षीराज गरुण उनके पुत्र थे। एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़े को देखकर शर्त लगाई जिसमें कद्रू ने कहा इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि यह सफेद है।
शर्त जीतने के लिए कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा करके घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली दिखे। लेकिन नाग माता के पुत्रों ने ऐसा करने से मना कर दिया और क्रोधित नाग माता ने पुत्रों को भस्म होने का अभिशाप दिया। श्राप के से डर से कुछ नागपुत्र घोड़े की पूंछ में लिपट गए और घोड़े की पूंछ काली दिखने की वजह से विनता शर्त हार गई।
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नाग माता के श्राप से मुक्ति के लिए नाग पुत्र वासुकी नाग के साथ ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उन नागों को आश्वासन दिया कि आगे चलकर तुम्हारी एक बहन होगी जिसका विवाह जरत्कारु नाम के ऋषि से ही होगा। इन दोनों से आस्तिक नामक पुत्र उत्पन्न होगा।
वह इस यज्ञ को रोकेगा और नागों की रक्षा करेगा। इसके पश्चात समय आने पर राजा जनमेजय ने राजा परीक्षित की सर्प द्वारा मृत्यु होने पर नाग वंश का नाश करने के लिए सर्प मेध यज्ञ का आयोजन किया।
इस यज्ञ में अनेकों नाग जलकर भस्म होने लगे जब आस्तिक मुनि वहां पहुंचे और उन्होंने नाग यज्ञ को रुकवाया और नागों के ऊपर ठंडा दूध डाला। दूध के प्रभाव से नागों की जीवन बच गया और नागों की अस्तित्व धरती पर बना रहा। जिस दिन ब्रह्मा जी ने नागों को श्राप मुक्त करवाया था उस दिन सावन के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि थी। इसलिए उस दिन से नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा होने लगी।
इस प्रकार पौराणिक कथाओं के कारण ही नागपंचमी का [पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाने लगा। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें। इसी तरह के अन्य रोचक लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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