13 जनवरी 2024 से प्रयागराज में शुरू हुए महाकुंभ का आधा समय निकल चुका है। महाकुंभ के शाही स्नान की शुरुआत मकर संक्रांति से हुई थी और महाशिवरात्रि यानी 26 फरवरी 2025 को आखिरी शाही स्नान होने वाला है। कहा जाता है कि जो इंसान कुंभ में स्नान करता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं। अभी महाकुंभ 2025 के दो शाही स्नान बाकी हैं, जो 12 फरवरी माघ पूर्णिमा के दिन होगा और अंतिम महाशिवरात्रि के दिन शाही स्नान होकर महाकुंभ खत्म हो जाएगा।
महाकुंभ के दौरान, कई तरह के किस्से और कहानियां हमें सुनने को मिली हैं। हर बार कुंभ पिछले से अलग रहा है, इतिहास के पन्नों को पलटने पर पता चलता है कि कुछ ऐसे भी कुंभ मेले हुए थे, जहां सन्नाटा पसरा रहा था। भले ही, आज कुंभ में जाने के लिए किसी भी तरह की एंट्री फीस नहीं लगती है, लेकिन एक समय ऐसा था जब कुंभ मेले में शिरकत करने के लिए टैक्स भरना पड़ता था। आइए आज हम आपको इतिहासकारों के मुताबिक, कुंभ से जुड़े कुछ किस्से और कहानियों के बारे में बताने वाले हैं।
अकबर ने लगाया था कुंभ मेले पर टैक्स
किताब ‘खुलासत-उत-तवारीख’ में दिल्ली पर राज करने वाले मुगल शासकों का जिक्र किया गया है और इसमें मेले का भी उल्लेख है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में दिल्ली की गद्दी पर मुगल बादशाह अकबर का कब्जा था। उन्होंने गैर-मुसलमानों पर लगने वाले जजिया कर को खत्म किया था, लेकिन उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान आयोजित किए गए कुंभ मेले पर टैक्स लगाने की शुरुआत की थी। ‘भारत में कुंभ’ किताब में लिखा हुआ है कि पहली बार अकबर ने कुंभ मेले के आयोजन पर टैक्स लगाया था। हालांकि बाद में हिंदुओं ने मुगल शासक से टैक्स हटाने का अनुरोध किया और अकबर ने टैक्स खत्म कर दिया था।
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शाह आलम ने लूटा था कुंभ मेला
वहीं, 1608 में यूरोपियन यात्री टॉम कारियट का कुंभ विवरण पढ़कर 1620 में मुगल शासक जहांगीर हरिद्वार में आयोजित कुंभ मेला गया था। वहां पर उसे ज्यादा अच्छा नहीं लगा, तो वह कांगड़ा चला गया। 1776 में मुगल शासक शाह आलम ने कुंभ मेले को लूटा था, जिसका जिक्र इतिहासकार जमीयत खान ने अपनी किताब ‘जमीयतनामा’ में किया है।
अंग्रेजों ने कुंभ मेले से राजस्व कमाया
भले ही, अकबर ने कुंभ मेले पर टैक्स खत्म कर दिया था, लेकिन 1857 की क्रांति को देखने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने घबराकर कुंभ मेले में शामिल होने पर सवा रुपये का टैक्स लगा दिया था। उस समय सवा रुपए का टैक्स आमजनता के लिए मुमकिन नहीं था और इसी वजह से उस साल कुंभ मेले में सन्नाटा छाया रहा था। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने कुंभ मेले के दौरान कल्पवास करने आए लोगों से हलफनामा लिया था। ब्रिटिश शासनकाल में माघ मेले और कुंभ मेले पर टैक्स लगा दिया गया था और इससे राजस्व कमाया जाता था। जब अंग्रेजी हुकूमत ने देखा कि राजस्व कमाई अच्छी हो रही है, तो उन्होंने 1870 में कुंभ मेले की कमान अपने हाथों में ले ली थी। साल 1882 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले के दौरान अंग्रेजों ने करीब 20 हजार रुपये खर्च किए थे, जबकि टैक्स से कुल कमाई 49 हजार रुपये के आसपास हुई थी।
महाराजा लोग करते थे संपत्ति दान
7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्यून त्सांग ने भारत भ्रमण किया था और भारतीय परंरपराओं के बारे में उन्होंने लिखा भी था। वहीं, टी. वाटर्स की किताब ‘बुद्धिस्ट रिकॉर्ड्स ऑफ वेस्टर्न वर्ल्ड’ में ह्यून त्सांग के हवाले से लिखा गया है कि हर 5 साल में कन्नौज का राजा हर्षवर्धन माघ के महीने में प्रयागराज के संगम पर अपनी संपत्ति का दान किया करता था। किताब में कपीस और मालवा के राजाओं के भी दान करने के बारे में लिखा गया है। हालांकि, किताब में कहीं भी कुंभ मेले का जिक्र नहीं किया गया है, लेकिन माघ के महीने में इलाहाबाद के संगम पर धार्मिक आयोजन के बारे में लिखा गया है।
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नागा-बैरागियों में हो गया था युद्ध
जादूनाथ सरकार की किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ दसनामी नागा संन्यासीज’ में लिखा है कि 1253 में हरिद्वार में हुए कुंभ मेले के दौरान शैव नागा संन्यासियों और वैष्णव बैरागी संन्यासियों के बीच युद्ध हुआ था, जिसमें नागा संन्यासियों की जीत हुई थी। डॉक्टर डी.पी. दुबे की किताब ‘कुंभ मेला: पिलिग्रिमेज’ में लिखा गया है कि 1514 ईस्वी में चैतन्य महाप्रभु ने प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले के दौरान संगम स्नान किया था।
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Image Credit - herzindagi
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