मुगल साम्राज्य के जमाने में अंग्रेजों को अपना बिजनेस सेट करने के लिए सालों इंतजार करना पड़ा था। मुगल बादशाह जहांगीर से मिलने के लिए सर थॉमस रो (Sir Thomas Roe) को चार साल अपने जूते घिसने पड़े थे, लेकिन उन्होंने ट्रेड रूट की शुरुआत कर ही ली थी।
बात उस समय की है जब यूरोपीय ताकतों ने दुनिया भर में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए थे। ऑटोमन एम्पायर (तुर्क साम्राज्य) और मुगल दो ऐसी ताकतें थीं जिनसे कोई भी यूरोपीय देश भिड़कर मुकाबला नहीं कर सकता था। ऐसे में अंग्रेजों ने बाकी किसी भी यूरोपीय देश की तरह बल नहीं, बल्कि दिमाग से अपनी हुकूमत को आगे बढ़ाया। ऑटोमन एम्पायर के पास व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए लेवांट कंपनी (Levant Company) गई और भारत में मुगलों के पास आई ईस्ट इंडिया कंपनी। उस वक्त अफगानिस्तान तक मुगलों का ही राज था।
ऐसा नहीं था कि अंग्रेजों के लिए यहां आना आसान था। शुरुआत में कई दूत भेजे गए, लेकिन मुगल बादशाह ने मिलने से इंकार कर दिया। 1615 में तत्कालीन ब्रिटिश राजा किंग जेम्स I का लेटर लेकर आए सर थॉमस रो। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गया।
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4 साल तक चली व्यापार की बात
1615 में सर थॉमस आ तो गए थे, लेकिन वो 1619 तक कुछ हासिल नहीं कर पाए थे और ट्रेड अग्रीमेंट उसके बाद ही बन पाया था। मुगल बादशाह जहांगीर को आर्ट और कल्चर का तजुर्बा भी था और उन्हें यह चीजें पसंद भी थीं। British Library यूके में सर थॉमस के कुछ रिकॉर्ड्स भी सुरक्षित रखे गए हैं जिनके अनुसार जहांगीर के लिए कई तोहफे लाए गए थे जिसमें कुछ अंग्रेजी कुत्तों की ब्रीड्स, कुछ बेहतरीन पेंटिंग्स, महंगी वाइन आदि शामिल थी।
रो के रिकॉर्ड्स कई वेबसाइट्स द्वारा डिकोड किए गए हैं जिनके मुताबिक मुगल बादशाह ने एक इंग्लिश घोड़े की भी इच्छा जाहिर की थी। इसके अलावा, जहांगीर को किसी भी तरह के हीरे-जवाहरात में दिलचस्पी नहीं थी, बल्कि उन्हें आर्ट, कल्चर और बियर में इंटरेस्ट था। इसके अलावा, 1616 के एक लेटर का भी रिकॉर्ड मिलता है जिसमें कहा गया है कि भारत में अद्वितीय संपत्ती भी है।
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जहांगीर ने दिया था व्यापार करने का हक
आखिर 4 साल तक इंतजार करने के बाद सर थॉमस लौट गए थे, लेकिन उन्होंने मुगल सल्तनत को अपनी परख करवा दी थी। उस दौर में गोवा में पुर्तगालियों का राज था और कोलकता (तब कलकत्ता) पर भी पुर्तगालियों ने हमला शुरू कर दिया था। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी से व्यापारिक रिश्तों को बढ़ावा दिया गया। इस बार जहांगीर के लिए उसकी पसंद के तोहफे आए थे। जहांगिर वैसे तो अक्लमंद शासक था, लेकिन उसे विदेशी नीतियों की समझ नहीं थी। उस दौरान यूरोपीय ताकतें जिस तरह पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व बैठा रही थीं भारत उनके लिए सोने की चिड़िया बन गया। धीरे-धीरे जो व्यापार मसालों से शुरू हुआ था वह अफीम और गांजे तक आ पहुंचा।
इस तरह से शुरू हुआ था ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापार। इतिहास में बहुत किंतु-परंतु शामिल हैं, लेकिन एक बात निश्चित है कि सर थॉमस ने जिस तरह से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और आगरा पहुंचे वह अंग्रेजों की सोच को दर्शाता है।
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