मदर्स डे आने वाला है। आपने भी तैयारी कर ली होगी न मां को तरह-तरह के सरप्राइज देने की। यह दिन है ही इतना खास! हमारे दुख में हमेशा खड़ी रहने वाली। हमारी परेशानी में खुद न सोने वाली। जिसकी दुनिया हमारे इर्द-गिर्द घूमती है, अब उसके लिए इतना करना तो बनता ही है। मगर इसके बाद क्या? मां के दिन को खास बनाने के लिए क्या एक दिन काफी है?
बिल्कुल नहीं! अगर मां के लिए कुछ करना है, तो सबसे पहले उसे हर बात का गुनेहगार बनाना बंद करना होगा। जी हां, हम सब यह करते हैं। गलती किसी की भी हो, उसका ठीकरा मां पर फूट जाता है। मां की परवरिश कितनी खराब है, उस पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
आज समाज के जटिल ताने-बाने का एक परेशान करने वाला पहलू यह है कि चीजें गलत होते ही सारा इल्जाम हम मां के मत्थे पर मढ़ देते हैं। बच्चे ने अच्छा काम किया तो वह घर के नाम को रौशन कर देता है, लेकिन वह स्कूल में फेल हो जाए या करियर गलत चुन लें, तो ऐसे में अक्सर मम्मी को आलोचना का सामना करना पड़ता है।
समाज की सोच को बदलना है और इसलिए हम हरजिंदगी के कैम्पेन 'Maa Beyond Stereotypes' में उन स्टीरियोटाइप्स की बात करेंगे जिसने मां के कंधों को हमेशा बोझिल करके रखा।
क्या मेटरन्ल रिस्पॉन्सिबिलिटी है इसका कारण?
हम बार-बार अपनी मम्मी के ऊपर जो दोष मढ़ते हैं, उसका एक बड़ा कारण मेटरन्ल रिस्पॉन्सिबिलिटी है। छोटी उम्र से ही, हमारे अंदर यह बिल्ट कर दिया जाता है कि मां ही बच्चों की भलाई और विकास के लिए जिम्मेदार होती है। यह फिजूल की अपेक्षाएं मां पर भारी बोझ डालती है। इसी के चलते उनसे अवास्तविक उम्मीद लगाई जाती हैं।
इसे भी पढ़ें: Mother's Day Special: अपनी मां से सीखे मैंने छोटी-सी जिंदगी के 10 बड़े Lessons!
बस करो मां को त्याग की मूरत बनाना
"मां तो ममता की देवी और त्याग की मूरत होती है"... जितने लोग भी यह कहते हैं मेरी उनसे प्रार्थना है कि ऐसा कहना बंद कर दो। मां सबसे पहले एक इंसान है। हमारे समाज ने मां के लिए हमेशा से ऐसे असंभव मानक तैयार किए हैं कि उनकी बराबरी के चलते उसे अपने सपने भी मार देने पड़ते हैं। उन्हें इंसान नहीं, रोबोट समझा जाता है। अपेक्षा की जाती है कि वह एक साथ सारे फील्ड में बेमिसाल काम करे। वह घर भी संभाले, बच्चे भी देखे, बाहर का काम भी कर लें और यह सब करते हुए उसके चेहरे पर एक शिकन तक न दिखे। अगर वह ऐसा नहीं करती, तो उसकी कठोर निंदा की जाती है। समाज की नजरों में वह गुनेहगार हो जाती है।
लैंगिक भेदभाव के कारण मां को किया जाता है ब्लेम
कितना आसान होता है न हमारे लिए महिलाओं को, मांओं को बलि का बकरा बनाना। इसके पीछे एक और कारण है, जिसे हम लैंगिक भेदभाव कहते हैं। हमारे समाज में अपने गहरी जड़ें जमा चुके पितृसत्तात्मक नॉर्म्स ही यह तय करते हैं कि महिलाएं पोषण और देखभाल के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसा एक पुरुष नहीं करता। उसे तो घर की तमाम जिम्मेदार से मुक्त कर दिया जाता है। क्यों? क्योंकि वह बाहर जाकर पैसे कमाता है। यह डबल स्टैंडर्ड ही है, जो इस बात को स्थापित कर देता है कि घर में कुछ भी गड़बड़ हो रहा है, तो उसकी दोषी हमारी मां ही है, क्योंकि घर तो वही संभाल रही है न!
टीवी और फिल्मों की मदर्स भी हैं इसकी जिम्मेदार
टीवी और फिल्में ऐसा माध्यम हैं, जो समाज की नींव को मजबूत और कमजोर बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। पुरानी फिल्मों में मां के किरदार भी एक बड़ा कारण हैं। हमारी पुरानी फिल्मों में हमने मां को हमेशा लाचार और मजबूर देखा और सोचा लिया कि मां ऐसी ही तो होती है। टीवी में या तो मां भोली-भाली और हमेशा रोनी वाली मिलेगी या फिर कपटी। क्या इसके अलावा हम किसी और सांचे में मां को ढलता नहीं देख सकते हैं? मां अगर कामकाजी है, तो वह इररिस्पॉन्सिबल कैसे हो सकती है? छोटी सोच दिखाने वाले इन किरदारों ने कहीं न कहीं इस नोशन को हवा दी है। मां के ऐसे लाचार किरदारों ने इस धारणा को मजबूत किया है कि किसी भी परिवार या बच्चे की विफलता के लिए मां ही पूरी तरह से जिम्मेदार होती है।
इसे भी पढ़ें: Mothers Day Special: मां हो या अनुपमा... आखिर क्यों सिर्फ खाना बनाने पर ही दिखता है मम्मी का प्यार?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बच्चे की परवरिश में मां का बड़ा इंफ्लूएंस होता है, लेकिन समाज यह कभी स्वीकार क्यों नहीं करता है कि पिता का इंफ्लूंस भी उस पर उतना ही होता है। जब बच्चे के साथ कुछ गलत होता है, तो दोष हमेशा असमान रूप से मां पर मढ़ दिया जाता है। मां घर पर रहकर बच्चे क साथ ज्यादा समय बिताती है, तो क्या बस इस तर्क से मम्मियों पर गलती का ठीकरा फूटना सही है?
इस पितृसत्तामक सोच को बदलना हमारे लिए जरूरी है। अगली बार, जब आपके परिवार में किसी से गलती हो तो उसका दोष किसी महिला पर न मढ़ें।
मदर्स डे 2024: इस मदर्स डे को स्पेशल बनाने के लिए आप अपनी मां के दिन उनकी पसंदीदा मूवी या सॉन्ग को देखकर और सुनकर खास बना सकते हैं। Herzindagi के कैंपेन 'Maa Beyond Stereotypes' से जुड़ें और हमारे साथ सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी सोच को बदलें।
इस बारे में आपके क्या विचार हैं, उन्हें हमारे आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताएं। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा, तो इसे लाइक करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों