आखिर क्यों और कब तक ..... सच कहूं तो जब मैंने महाराष्ट्र के पालघर की ये खबर सुनी कि लिव-इन-पार्टनर ने अपनी गर्लफ्रेंड को मारकर उसके शव को गद्दे में ठूंस दिया तो मुझे कोई अचंभा नहीं हुआ क्योंकि ये आए दिन की बात हो गई है। लेकिन मुझे ऐसा लगा कि आखिर इसका कारण क्या हो सकता है कि आए दिन हम ऐसी खबरें सुन रहे हैं।
मेरे मन में ऐसे कई सवाल थे कि आखिर उस लड़की की गलती क्या थी? क्या प्यार करना गलत है? क्या किसी पर विश्वास करना अपराध है? क्या प्यार सच में अंधा होता है जो अपने पार्टनर की मंसा भी न समझ सके? क्या एक लड़की न तो अपने परिवार में और न ही समाज में कहीं भी सुरक्षित है?
आखिर क्यों लड़कियों के साथ ऐसा होना आम हो गया है कि कोई भी उनकी जान ले सके? आखिर क्यों और कब तक......कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब जानने के लिए मैंने क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट, एडवोकेट और सोशल एक्टिविस्ट अनुजा कपूर जी से बात की और उन्होंने इसके कई कारण बताए जो आपको भी जान लेने चाहिए।
क्या लड़कियां कोई ऐसा सामान हैं जिनका इस्तेमाल करके फेंक दिया जाए?
हो सकता है कि सुनने में थोड़ा अजीब लगे कि लोगों की शायद यही मानसिकता बनती जा रही है कि लड़कियां तो एक ऐसे यूज़ एंड थ्रो सामान हैं और उनका चाहे जैसे भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यही नहीं उनके जीवन की भी कोई कीमत नहीं है।
मैं ऐसा इसलिए बोल रही हूं क्योंकि महाराष्ट्र के पालघर में एक बार फिर एक लड़की अपने ही प्रेमी की हैवानियत का शिकार हो गई। पालघर में किराए के मकान में रहने वाली मेघा शाह के लिव इन पार्टनर ने उसे मारा और उसके शव को गद्दे में छिपा दिया। यही नहीं ऐसी ख़बरें जिसमें हत्या करना और लड़की के शव को टुकड़ों में काटकर कभी फ्रिज में तो कभी बेडबॉक्स में छिपाकर रखना तो समझो आजकल आम हो गया है।
अभी हम श्रद्धा मर्डर केस को भूल भी नहीं पाए थे और कुछ दिनों बाद ही निक्की यादव नाम की लड़की का मर्डर हो गया था, जिसमें भी उसके ही प्रेमी ने हत्या करके शव को टुकड़ों में काटकर ढाबे के फ्रिज में छिपा दिया था।
अब ये महाराष्ट्र में एक नया मामला सामने आया। वास्तव में ऐसी ख़बरें आए दिन हमारे सामने आती हैं और हम उन्हें एक आम बात समझकर आगे बढ़ जाते हैं। यूं कहा जाए कि आजकल ये ट्रेंड बनता जा रहा है और वास्तव में किसी की जान की भी शायद कोई कीमत नहीं रही है। प्यार, इश्क और फिर मर्डर......अब तो ये खबर सुनकर रोंगटे भी नहीं खड़े होते हैं और आरोपी शायद इतने बेफिक्र होकर आगे बढ़ जाते हैं कि शायद दुनिया को जब तक पता चलेगा तब तक कोई उनका कुछ कर ही नहीं पाएगा।
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क्यों आम होती जा रही हैं गर्लफ्रेंड के मर्डर जैसी ख़बरें
जब हम बात करते हैं ऐसी खबरों की तो कई बार ख्याल आता है कि कहीं ऐसी घटना के पीछे का कारण ये तो नहीं है कि किसी भी मर्डर केस को इतना हाइलाइट कर दिया जाता है कि कुछ खराब मानसिकता के लोग इसी से प्रेरित होकर ऐसा कदम उठा लेते हैं।
अगर आपको भी ऐसा लगता है तो मैं आपको बता दूं कि आपका ये सोचना गलत है। क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट अनुजा कपूर बताती हैं कि किसी भी घटना के पीछे सोची समझी चाल होती है और ये सिर्फ एक दिन की सोच नहीं होती है बल्कि कई दिन तक दिमाग में आने वाले नकारात्मक ख्यालों का नतीजा होता है।
अगर ये कहा जाए कि अपराधी किसी को देखकर सीखता है कि किसी का मर्डर करके उसके शव को गलत तरीके से छिपाया भी जा सकता है, तो मेरा ये प्रश्न है कि मेरे और आपके जैसे आम लोग ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? दरअसल अपराधी किसी घटना को कैसे अंजाम देना चाहता है ये उसकी खुद की ही सोच होती है।
आखिर क्यों बढ़ रही हैं ऐसी घटनाएं
अनुजा कपूर जी बताती हैं कि अपराध करने वाले दो तरह के लोग हो सकते हैं। पहले जिन्हें साइकोपैथ (Psychopath) कहा जाता है और दूसरे जिन्हें सोशिओपैथ (Sociopath) कहा जाता है।
इनमें से साइकोपैथ वो लोग होते हैं जी किसी की भावनाओं को समझ पाने में अक्षम होते हैं या फिर उनकी किसी की भी भावनाओं की समझने की मानसिकता विकृत होती है। लेकिन ये लोग चिकित्सा और परिवार के सहयोग से ठीक हो सकते हैं।
उनकी मानसिकता कई बार पहले से समझ में आने लगती है और अगर कोई ऐसा व्यक्ति पार्टनर के रूप में साथ रहता है तो उसे जल्द ही इलाज की आवश्यकता है नहीं तो वो आगे चलकर किसी बड़ी घटना को अंजाम दे सकता है।
दूसरे सोशियोपैथ होते हैं जो लोगों के मन में बनी अपनी छवि से हमेशा असंतुष्ट रहते हैं और उन्हें ऐसा लगता है लोग उन्हें उस तरह से नहीं समझते हैं जो वो वास्तव में हैं। ये लोग हमेशा अकेले रहना पसंद करते हैं और ये लोग अगर किसी रिश्ते में बंधते हैं तो बेहतरी से उसे समझ न पाने की वजह से किसी बड़ी घटना को अंजाम देते हैं।
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क्या प्यार और किसी पर विश्वास करना गलत है
अगर इस बारे में मैं अपनी राय बताऊं तो प्यार करना गलत नहीं है और किसी पर विश्वास करना भी गलत नहीं है, लेकिन शायद अंधविश्वास करना और सामने वाले को हर बार सही मान लेना गलत है।
अगर कोई भी पार्टनर के मर्डर जैसा अपराध करता है तो उससे पहले कई दिनों तक वो पार्टनर को पताड़ित करता है। किसी की हत्या करना सिर्फ एक बार की सोच नहीं हो सकती है। अगर श्रद्धा मर्डर केस की बात करें तो उसका प्रेमी आफताब काफी पहले से उसे प्रताड़ित करता था और उसकी श्रद्धा ने कई बार शिकायत भी की थी। शायद उस समय श्रध्दा ने अपने लिव-इन-पार्टनर के लिए कोई ठोस कदम उठाया होता तो स्थिति कुछ और होती।
शायद लड़कियों को जरूरत है और ज्यादा जागरूक होने की, किसी पर भी विश्वास करने की जगह सोच समझकर आगे बढ़ने की, जिससे अब कोई भी लड़की प्रेम के नाम पर मौत को गले न लगाए।
प्यार, इश्क और मर्डर........आखिर क्यों और कब तक
ये एक अहम् सवाल है कि कब तक प्यार के नाम पर बेरहमी होगी? आखिर कब तक एक लड़की अपने आपको घर से लेकर ऑफिस तक और रिश्तेदारों से लेकर प्रेमी के साथ तक असुरक्षित महसूस करेगी? आखिर क्यों हमारे प्रगतिशील भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है कि किसी भी अपराध करने के विचार से ही रूह कांप जाए? आखिर क्यों और कब तक...... ? सवाल बहुत से हैं लेकिन उत्तर अभी भी खोज रही हूं।
वास्तव में शायद समाज की सोच को बदलने में अभी भी काफी समय बाकी है, तभी मर्डर जैसी बड़ी घटनाएं भी हमारे लिए आम होती जा रही हैं।
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