भारतीय पुराणों और महाकाव्यों में महिलाओं को बहुत ही अनोखे तरीके से दिखाया गया है। उनका चित्रण एक योद्धा के रूप में भी देखने को मिलता है और एक प्रभावशाली स्त्री के रूप में भी। महाभारत वैसे तो भारतीय इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण महाकाव्य के रूप में देखा जाता है। जिसमें धर्म और अधर्म का चित्रण किया गया है।
महाभारत की कुछ महिलाएं ऐसी भी रही हैं जिनके नाम पर पूरा महाकाव्य लिखा गया, लेकिन कुछ ऐसी भी थीं जिन्होंने अपने धर्म को तो निभाया, लेकिन उनका चित्रण बहुत महत्वपूर्ण तरीके से नहीं किया गया। आज हम ऐसी ही महिलाओं के बारे में बात करने जा रहे हैं। ये वो महिलाएं थीं जिन्होंने महाभारत में अपना रोल बखूबी निभाया और अपनी बुद्धिमत्ता और शौर्य का परिचय दिया।
1. अहिलावती
घटोत्कच की पत्नी
अहिलावती का जिक्र शायद आपको किसी भी महाभारत सीरीज में नहीं मिलेगा, लेकिन टीवी सीरियल से परे अहिलावती की कहानियां महाकाव्य में जरूर मौजूद हैं। घटोत्कच के बेटे बर्बरीक को भी महाभारत में लड़ाई के लिए भेजा गया था। ये भीम का पोता था और इसे मां अहिलावती ने ही लड़ना सिखाया था। बर्बरीक के पास वाल्मीकि के दिए हुए तीन तीर भी थे जो अपने सामने आने वाली हर चीज को खत्म कर सकते थे। पर अहिलावती ने बर्बरीक से वचन लिया था कि वो सिर्फ कमजोर पक्ष के साथ ही लड़ेगा।
कृष्ण ने यह सोचा कि बर्बरीक को हराना मुमकिन नहीं है, लेकिन वो जिस पक्ष के विरुद्ध होगा वही कमजोर हो जाएगा जिससे उसे छोड़कर युद्ध में सभी का विनाश हो सकता है। इसलिए कृष्ण ने दान में बर्बरीक का सिर ही मांग लिया और युद्ध में वह जा नहीं पाया।
अहिलावती ने इस तरह का वचन विनाश को रोकने के लिए लिया था और नागों की नगरी से आई अहिलावती ने जनकल्याण के लिए अपने बेटे की बलि दे दी थी।
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2. राधा
कर्ण को पालने वाली मां
जब भी श्री कृष्ण की बात होती है, तो उनकी दोनों माताओं का जिक्र होता है। ऐसा ही हाल कर्ण का भी है। अगर राधा ने अपने बेटे की तरह कर्ण को ना पाला होता, तो महाभारत का युद्ध एकपक्षीय ही होता। कर्ण को दानवीर कर्ण बनाने का जिम्मेदार भी राधा को ही माना जाता है।
राधा ने कर्ण को धर्म का परिचय दिया था और यही कारण है कि कर्ण धर्म को मानने वाले योद्धा बने।
3. दुशला
गांधारी और धृतराष्ट्र की इकलौती बेटी
जब भी गांधारी का जिक्र होता है, तो हमेशा उसके 100 पुत्रों को याद किया जाता है, लेकिन धृतराष्ट्र और गांधारी की एक बेटी भी थी जिसका नाम था दुशला। इसके बारे में आपको एकता कपूर वाली महाभारत में थोड़ी सी जानकारी मिल जाएगी। दुशला का विवाह दुर्योधन के दोस्त जयद्रथ से हुआ था। दुशला का चरित्र बहुत ही सधा हुआ माना जाता है और महाकाव्य में उसके किरदार को हमेशा संघर्ष करते देखा गया है।
दुशला के पति की मृत्यु भी महाभारत के युद्ध में हो गई थी।
4. चित्रांगदा
अर्जुन की पत्नी
अर्जुन की पत्नी के रूप में सुभद्रा और द्रौपदी का ही नाम सामने आता है, लेकिन अर्जुन की और पत्नियां भी थीं। चित्रांगदा मणिपुर की राजकुमारी थीं और अर्जुन के वनवास के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी। चित्रांगदा पहले पुरुष के भेष में थीं और वो इतनी कुशल थीं कि उनकी धर्नुरविद्या देख अर्जुन प्रभावित हुए थे।
जब उन्होंने अर्जुन को देखा, तो वो भी मोहित हो गईं और कामदेव और रूप की रानी रति से वरदान मांगा कि वो बहुत ही सुंदर हो जाएं। उन्हें देख अर्जुन भी मोहित हो गए और मणिपुर के राजा से उनका हाथ मांगा। हालांकि, शादी के लिए उन्होंने एक शर्त रखी कि उनकी जो भी संतान होगी, वो मणिपुर में ही रहेगी। अर्जुन ने यह बात मान ली और वो तीन साल तक चित्रांगदा के साथ रहे। उनका बेटा बब्रुवाहन मणिपुर का अगला राजा बना और उसने अपनी मां चित्रांगदा से ही युद्ध विद्या ली।
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5. सत्यवती
राजा शांतनु की पत्नी
सत्यवती ही वो महिला थीं जिन्होंने महाभारत के युद्ध की नींव रखी थी। महाभारत में भीष्म के राज्याभिषेक के बाद सत्यवती ने उन्हें राजा नहीं बनने दिया। सत्यवती मत्यकन्या थीं और राजा शांतनु अपनी पत्नी गंगा के जाने के बाद हस्थिनापुर की रानी खोज रहे थे। उन्हें सत्यवती से प्रेम हो गया था, लेकिन भीष्म के आने के बाद सत्यवती ने शादी के लिए शर्त रखी थी कि उनकी संतान को ही राज्य मिले। सत्यवती की वजह से ही भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का संकल्प किया था ताकि शांतनु और सत्यवती के पुत्रों को राज्य मिल सके। एक तरह से देखा जाए, तो सत्यवती ही महाभारत के युद्ध की जड़ थीं।
जब सत्यवती के दोनों पुत्रों की मौत हो गई, तब अंबिका और अंबालिका दोनों को ऋषि व्यास से गर्भवति करवाया। तभी पांडु और धृतराष्ट्र का जन्म हुआ था। सत्यवती ने ये सब कुछ सिर्फ अपने बेटे और उनके बेटों को राजा बनाने के लिए किया था।
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