क्या आपको पता है मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह उर्दू के जाने-माने शायर थे?

आज हम आपको मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर के बारे में रोचक तथ्यों के बारे में जानेंगे। 

 
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आज भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें प्राचीन इतिहास को जानना और समझना अच्छा लगता है। कई लोग तो ऐसे होते हैं जो सिर्फ भारतीय राज वंशज पर लिखी किताबों को पढ़ना पसंद करते हैं जैसे- मौर्य साम्राज्य, मुगल साम्राज्य आदि। मुझे तो मुगल साम्राज्य के बारे में पढ़ना काफी अच्छा लगता है।

हालांकि, मुगल साम्राज्य इतना बड़ा है, जिसके बारे में तमाम चीजें पढ़ पाना काफी मुश्किल है, लेकिन इसके बावजूद आए दिन हम आपके लिए कुछ न कुछ लेकर आते हैं और मुगल साम्राज्य से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में बताते हैं। आज इसी कड़ी में हम आपको मुगल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह बहादुर शाह जफर के बारे में बताएंगे।

हालांकि, जितना कोरा झूठ बहादुर शाह जफर को लेकर है। ऐसे में जरूरी है कि शहंशाह को पढ़ा जाना चाहिए। कहा जाता है कि बहादुर शाह जफर को उर्दू शायरी और हिंदुस्तान से उनकी मोहब्बत के लिए याद किया जाता है। मगर इससे पहले थोड़ा मुगल साम्राज्य के इतिहास पर थोड़ी नजर डाल लेते हैं।

मुगल साम्राज्य का संक्षिप्त इतिहास

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भारत में मुगल साम्राज्य की शुरुआत सन 1526 में हुई थी, जिसकी स्थापना बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर की थी। बाबर के बाद कई शक्तिशाली शहंशाह रहे हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है जैसे- हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां आदि।

मगर कई राजा ऐसे भी हैं जिनके नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं, लेकिन उनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कहा जाता है कि यह वो शहंशाह हैं जिन्होंने 1707 से लेकर सन 1857 तक शासन किया था।

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बहादुर शाह जफर के बारे में जानें

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बहादुर शाह जफर ने भारत पर सन 1775 से लेकर सन 1862 तक शासन किया था। इनका जन्म 24 अक्टूबर, 1775 को हुआ था, उनके माता-पिता का नाम अकबर शाह द्वितीय और लाल बाई था। कहा जाता है कि अकबर शाह की मृत्यु के बाद जफर को 28 सितंबर, 1837 में मुगल बादशाह बनाया गया था। हालांकि, बहादुर शाह जफर के शासन तक आते-आते सल्तनत बहुत कमजोर हो गई थी।

स्वतंत्रता संग्राम में थी अहम भूमिका

यह तो हम सभी ने पढ़ा है कि 1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति शुरू हुई थी, तब तमाम सैनिक और राजा-महाराजाओं ने एकजुट होना शुरू कर किया था। हालांकि, इसके बावजूद भी क्रांति को एक दिशा देने के लिए एक केंद्रीय नेतृत्व की जरूरत थी।

ऐसे में राजाओं ने बहादुर शाह जफर से बात की और फिर शहंशाह ने संग्राम का नेतृत्व किया था। (मुगल बादशाह अकबर की बेगमों के नाम)

कैसे हुई शहंशाह की मौत?

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अगर आप थोड़ी बहुत इतिहास की समझ रखते हैं, तो यकीनन आपको पता होगा कि बहादुर शाह जफर मुगल के इकलौते ऐसे राजा थे जिन्हें मरने के बाद कब्र भी नसीब नहीं हुई थी। हालांकि, इनकी कब्र को लेकर कई इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेजों ने छुपा दी थी।

इनका देहांत 6 नवंबर 1862 को लकवे का तीसरा दौरा पड़ने से हुआ था। इसको लेकर ब्रिगेडियर जसवीर सिंह अपनी किताब कॉम्बैट डायरी में लिखते हैं कि शहंशाह की कब्र रंगून में हैं, जहां बहादुर को कैद करके रखा गया था।

उर्दू के थे शायर

आपको यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है कि मुगल बादशाहएक फेमस शायर भी थे। उन्होंने जहां जग भी लड़ीं, तो कई तरह की शायरी भी कहीं। आज इनकी शायरी लोग बढ़ी शौक से पढ़ते हैं जैसे मुझे इनका शेर बहुत पसंद है जैसे- 'तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें....हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।'

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यह शेर जब भी में पढ़ती हूं तो काफी अच्छा लगता है। हालांकि, इनके कई ऐसे शेर हैं जो काफी फेमस हैं। कहा जाता है कि बहादुर शाह जफर को इसका शौक शुरुआत से था, लेकिन अंत में उन्होंने शायरी पर काफी ध्यान दिया।

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Image Credit- (@Freepik)

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