एक लड़की अपनी शादी के लिए न जाने कितने सपने सजाती है। अपने पार्टनर से उसे कितनी सारी उम्मीदें होती हैं। जीवन का नया अध्याय शुरू करने वाली हर लड़की के ख्वाब होते हैं। मगर सोचिए अगर नया अध्याय शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाए, तो उसके अरमान कितने सारे टुकड़ों में टूटते होंगे।
जीवनभर का साथ निभाने का वादा जिस शख्स ने किया था, वही अगर साथ छोड़ जाए, लड़की तो बिखर ही जाएगी। ऐसा ही हुआ केरल के तिरुवनंतपुरम की 26 वर्षीय डॉक्टर शहाना के साथ। वह अंदर से इतना टूट चुकी थीं कि उनके पास अपनी जान लेने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा।
एक बार फिर दहेज की सूली एक मासूम को चढ़नी पड़ी। उसके परिवार वालों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस बेटी की डोली उठने के सपने वो सजा रहे हैं, एक दिन उसकी अर्थी उठानी पड़ेगी। हर बार की तरह एक सवाल फिर से खड़ा हो उठा है कि आखिर कब तक महिलाएं दहेज की मांग पूरी न करने या होने के चलते अपनी जिंदगी को दांव पर लगाएंगी।
सवाल है कि आखिर क्यों डॉ. शहाना को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। आखिर कब तक दहेज के नाम पर शादियां टूटेंगी और लड़कियां शर्मिंदा होंगी? दहेज से जुड़े नियम हमारे देश में बने हैं, लेकिन इसके बाद भी ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। आखिर कब हम ऐसे मामलों से सीख लेंगे?
डॉक्टर शहाना तिरुवनंतपुरम के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पीजी कोर्स कर रही थीं। वह एक रेजिडेंट ट्रेनी थीं और अपने ही इंस्टीट्यूट में काम कर रहे दूसरे डॉक्टर के साथ उनकी शादी तय हुई थी।
लड़के के घरवालों ने शहाना और उसके परिवार वालों के आगे दहेज की शर्त रखी। उन्होंने दहेज में सोना, जमीन और एक बीएमडब्ल्यू कार की मांग की। जब शहाना का परिवार मांगों को पूरा करने में असमर्थ था, तो उसके प्रेमी ने शादी के लिए मना कर दिया। शादी टूटने के गम में डूबी शहाना को अपनी जान लेना सही लगा और उन्होंने सुसाइड कर लिया।
शहाना के कमरे से पुलिस को सुसाइड नोट भी मिला, जिसमें उन्होंने अपनी शादी टूटने का दर्द बयां किया है। पुलिस ने शहाना के प्रेमी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने और दहेज रोकथाम कानून के तहत मामला दर्ज करके उन्हें हिरासत में लिया है।
हालांकि, इससे शायद शहाना के परिवार में कुछ बदलाव नहीं होगा। उनकी बेटी वापस लौटकर नहीं आएगी।
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ऐसी न जाने कितनी शहाना हैं, जिनके केसेस के बारे में हम पढ़ते आए हैं। दहेज की मांगों का जारी रहना और उससे जुड़ा सामाजिक दबाव वास्तव में एक चिंताजनक मुद्दा है। भारत सहित कई देशों में दहेज के खिलाफ कानूनी प्रावधानों के बावजूद, जहां दहेज निषेध अधिनियम के तहत दहेज की मांग अवैध है, कुछ समुदायों में यह प्रथा आज भी जारी है। इसे जुड़ी कई चुनौतियां आज भी हमारे सामने आती हैं। अगर आपको लगता है कि यह सिर्फ गांव और देहात का मुद्दा है, तो ऐसा नहीं है।
शहाना के मामले ने एक बार फिर यह दर्शाया है कि शिक्षित और पेशेवर महिलाओं को भी दहेज संबंधी दबावों का सामना करना पड़ सकता है, जो इस धारणा को कड़ी चुनौती देता है कि केवल शिक्षा ही ऐसी प्रथाओं को खत्म कर सकती है। यह एक सामाजिक कलंक बन चुका है, क्योंकि दहेज की मांग पूरी न कर पाने से जुड़ी शर्मिंदगी के कारण अक्सर दुल्हन और उसके परिवार पर भारी दबाव पड़ता है।
इतना ही नहीं, सामाजिक आलोचना और बहिष्कार के डर से लोगों के लिए ऐसी प्रथाओं के खिलाफ बोलना मुश्किल हो सकता है। हमारे देश में दहेज विरोधी कानून तो हैं, लेकिन कानूनी जटिलताओं के कारण इसे लागू करना एक अन्य चुनौती है (महिलाओं के लीगल राइट्स)।
दहेज की प्रथा को रोकने के मकसद से इस अधिनियम को लाया गया था। इसके 2 सेक्शन आते हैं। सेक्शन 3 और सेक्शन 4। सेक्शन 3 के तहत दहेज लेना और देना दोनों अपराध माने जाते हैं और इसमें 15 हजार रुपये तक का जुर्माना और 5 साल की सजा सुनाई जा सकती है। सेक्शन 4 तहत दहेज की मांग करने पर 6 महीने से 2 साल तक की सजा हो सकती है।
अगर आपसे किसी ने दहेज की मांग की है, तो आप उसके खिलाफ एफआईआर करवा सकते हैं। एफआईआर दर्ज होने पर सेक्शन 498 A लगता है। इसमें पति के अलावा परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ भी एक्शन लिया जाता है। दहेज की मांग से जुड़े मामले पर दोषी पाए जाने पर 3 साल की सजा सुनाई जा सकती है। यह सेक्शन किसी भी तरह की क्रूरता के लिए बनाया गया है। हालांकि, इसी के तहत दहेज के मामलों पर भी एक्शन लिया जा सकता है।
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यदि दहेज की मांग से पीड़ित महिला की मौत हो जाती है, तब इन मामलों को आईपीसी की धारा 304 बी के तहत लिया जाता है। दोषी पाए जाने वालों को 7 साल से लेकर जीवनभर के लिए सजा सुनाई जा सकती है।
इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम सभी पहले अपने घर से शुरुआत करें। साथ ही जरूरी है कि महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने में प्रोत्साहित करें, ताकि वह दहेज संबंधी दबावों के प्रति कम संवेदनशील बन सकें।
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