भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के बर्फ से ढके हिमालय की गोदी में बसा है, जिसका नाम केदारनाथ धाम है। हर किसी का सपना होता है कि जिंदगी में एक बार केदारनाथ धाम के दर्शन जरूर करने जाए। ऐसा माना जाता है कि केदारनाथ धाम में बाबा केदार के दर्शन करने से ही सारे कष्ट और चिंताएं दूर हो जाती हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा भी प्राप्त होती है।
हर साल की तरह इस साल भी केदारनाथ धाम के कपाट खुलने का भक्त बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। साल 2025 में केदारनाथ मंदिर के कपाट 2 मई को खुलने जा रहे हैं। वहीं, मंदिर के कपाट खुलने से पहले एक खास धार्मिक परंपरा निभाई जाती हैं, जिसे डोली यात्रा कहते हैं। इस यात्रा में भगवान केदार की पंचमुखी मूर्ति को ऊखीमठ से केदारनाथ के लिए रवाना किया जाता है।
आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले हैं कि डोली यात्रा क्या है और इसका धार्मिक महत्व क्या है और यह केदारनाथ यात्रा में इतनी खास क्यों मानी जाती है।
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डोली एक पालकी होती है, जिसमें भगवान शिव की मूर्ति को ऊखीमठ से केदारनाथ धाम लाया जाता है। यह परंपरा हर साल 2 बार निभाई जाती है, जब केदारनाथ धाम के पट खोले जाते हैं और दूसरी बार जब सर्दियों में पट बंद किए जाते हैं। डोली यात्रा में भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति को चांदी की डोली में बिठाकर भक्तों और पुजारियों द्वारा पैदाल ले जाया जाता है। पूरी यात्रा के दौरान, भक्त भजन-कीर्तन करते हुए और भगवान का नाम जपते हुए निकलते हैं। इस यात्रा के दौरान, शंखनाद, ढोल-नगाड़े बजाए जाते हैं, जो इसे और भी खास बना देता है।
हर साल करीब 6 महीने के लिए केदारनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं और करोड़ों की संख्या में भक्त बाबा केदार के दर्शन करने आते हैं। वहीं, दीवाली की भाई दूज के दिन केदारनाथ धाम के कपाट सर्दियों में बंद कर दिए जाते हैं, जिसके बाद बाबा केदार की मूर्ति को डोली में बैठाकर ऊखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। इसे केदारनाथ की शीतकालीन गद्दी कहा जाता है। वहीं, जब केदारनाथ धाम के पट खुलने वाले होते हैं, तो डोली यात्रा के जरिए बाबा केदार की मूर्ति को धाम लेकर जाया जाता है।
डोली यात्रा की शुरुआत आमतौर पर ऊखीमठ में ओंकारेश्वर मंदिर से होती है, जो केदारनाथ धाम से करीबन 30 किलोमीटर दूर है। ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में बाबा केदार सर्दियों में निवास करते हैं और जब गर्मियां आ जाती हैं, तो केदारनाथ धाम के कपाट खुलने वाले होते हैं, तब भगवान शिव की पंचमुखी मूर्ति को ऊखीमठ से डोली यात्रा के जरिए लाकर धाम में स्थापित किया जाता है।
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डोली यात्रा की शुरुआत ऊखीमठ से होती हैं और यहां बाबा केदार की विशेष पूजा के बाद उन्हें पालकी में बैठाया जाता है और भक्तों-पुजारियों का समूह इसे लेकर आगे बढ़ता है।
दूसरे दिन डोली यात्रा फाटा की तरह बढ़ती है और रास्ते में भक्त भजन-कीर्तन करते हुए आगे बढ़ते हैं।
तीसरे दिन डोली यात्रा गौरीकुंड पहुंचती है और इसके बाद से यहां से पैदल चढ़ाई शुरू हो जाती है।
यात्रा का आखिरी पड़ाव केदारनाथ धाम होता है। डोली को भक्त पैदल लेकर मंदिर तक जाते हैं और वहां पर भगवान शिव की मूर्ति की विधिवत पूजा के बाद उसे स्थापित किया जाता है। इसके बाद मंदिर का कपाट खोल दिए जाते हैं।
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Image Credit- freepik, jagran
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