हिंदू धर्म में करवा चौथ का बहुत अधिक महत्व होता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। सुआगिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत और उपवास करती हैं और सच्चे मन से पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस त्योहार पर मिट्टी केबर्तन यानी करवे का विशेष महत्व होता है। महिलाएं मिट्टी के करवे में पानी भरती हैं और व्रत खोलने से पहले चंद्रमा को जल का अर्ध्य देती हैं।
सुहागिन स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत ही खास होता है। इस व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रहकर चौथ माता की पूजा करती हैं। यही नहीं इस दिन शाम के समय महिलाएं सोलह श्रंगार करती हैं, मुख्य रूप से मेहंदी लगवाती हैं। मान्यता है कि यदि करवाचौथ की मेहंदी गहरी रची हो तो पति का पूर्ण स्नेह मिलता है और साथ ही मेहंदी का गहरा रंग पति की सुखद उम्र और स्वास्थ्य को भी दर्शाता है। रिवाजों के अनुसार करवा चौथ में चद्रंमा निकलने के बाद दर्शन करके अर्घ्य दिया जाता है और इसके बाद करवा चौथ के व्रत का पारण अपने जीवनसाथी के हाथों से जल पीकर किया जाता है। तो चलिए जानते हैं इस बार कब है करवा चौथ, इसका क्या है महत्व और व्रत पूजन विधि क्या है।
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करवा चौथ व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन का आग्रह किया । इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही वो आज भोजन कर सकती है।
सभी भाई अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन को भूखा देखकर वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा-अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
बहन ने भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में व्यय हो गया। साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया। तभी से करवा चौथ की ये व्रत कथा प्रचलित है, जिसे व्रती महिलाएं आज भी व्रत के दौरान पढ़ती और सुनती हैं।
महाभारत में करवाचौथ के महात्म्य पर एक कथा का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ के व्रत के बारे में बताया था।श्री कृष्ण ने बताया कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्तदुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य तथा धन धान्य की प्राप्ति होने लगती है। यह सब सुन कर द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा जिसके प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की थी।वास्तव में, करवा चौथ के व्रत करने से पति - पत्नी के बीच मधुर संबंध स्थापित होते हैं और उनके जीवन में खुशहाली आती है। माता पार्वती के आशीर्वाद से जीवन में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। इस व्रत को करने से पति को दीर्घायु मिलती है। पति-पत्नी के बीच के रिश्ते मजबूत होते हैं और दोनो एक स्वस्थ्य जीवन व्यतीत करते हैं।
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उपर्युक्त तरीके से करवा चौथ का व्रत और उपवास करने से निश्चित ही पति -पत्नी के बीच के संबंधों में मधुरता आएगी और आपसी सामंजस्य बना रहेगा।
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