करवा चौथ का व्रत हर सुहागन महिला अपने पति की लम्बी आयु के लिए रखती है। पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देने के बाद पति के हाथों से ही जल और भोजन ग्रहण करती है। ऐसे में हर महिला को करवाचौथ व्रत से जुड़ी कुछ बातों के बारे में जरूर जाना चाहिए। आइए आपको बताते हैं वो ख़ास बातें -
सरगी मुख्य रूप से सास अपनी बहु को देती है। यह एक मिट्टी का बर्तन है जो खाद्य पदार्थों से भरा होता है और सभी विवाहित महिलाओं को उनकी सास द्वारा प्रेम स्वरुप दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसमें जो भी खाने की चीज़ें होती हैं वो महिलाएं कहती हैं जिससे उन्हें व्रत करने की शक्ति मिलती है। विशेष रूप से, बर्तन पूरे दिन के उपवास के लिए महिला को मजबूत बनाने के लिए सूखे फल, दूध-आधारित मिठाई, फल, मेथी, मठरी, तले हुए आलू आदि से भरा होता है। कहा जाता है कि सुबह होने से पहले ही इसका सेवन करना चाहिए जिससे शक्ति मिले। खाने के सामान के अलावा इसमें श्रृंगार का पूरा सामान भी होता है जो सास की तरफ से बहू को दी जाने वाली खूबसूरत भेंट होता है।
करवा चौथ में चन्द्रमा को अर्ध्य देने का विशेष महत्त्व है। करवा चौथ में हरेक महिला पति की लम्बी आयु की कामना करती है और पूरे दिन निर्जला व्रत करती है इसके बाद चाँद निकलने पर चन्द्रमा को अर्ध्य देती है। मान्यतानुसार नाक में पहनी जाने वाली नाथ को छूते हुए चन्द्रमा को अर्ध्य दिया जाता है और पति की लम्भी आयु के लिए कामना की जाती है।
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इस दिन महिलाओं को अपने सुहाग की लम्बी उम्र की कामना के साथ सोलह श्रृंगार करके चन्द्रमा को अर्ध्य देना चाहिए। सुहागन महिला के लिए सोलह श्रृंगार का अलग ही महत्त्व है। करवा चौथ में महिलाओं का सोलह श्रृंगार करना बहुत जरूरी समझा जाता है क्योंकि मान्यता है कि सोलह श्रृगांर करने से न केवल खूबसूरती बढ़ती है बल्कि भाग्य भी अच्छा होता है, साथ ही पति को लम्बी आयु मिलती है। सोलह श्रृंगार में मुख्य रूप से बिंदी, चूड़ी, मेहंदी , सिन्दूर ,बिछिया , पायल ,लाल जोड़ा , काजल,गजरा , मांग टीका आदि शामिल होते हैं।
हमेशा जब भी कोई महिला करवाचौथ का व्रत प्रारम्भ करती है तो उसे थोड़ा जल पान के साथ अनाज भी खा लेना चाहिए। मान्यता है कि यदि पहले करवाचौथ व्रत में थोड़ा सा अनाज नहीं खाया गया तो कभी भी करवाचौथ व्रत के दिन कुछ खाया या पिया नहीं जा सकता है। भले ही वह प्रग्नेंट क्यों न हो लेकिन उसे निर्जला व्रत ही रखना पड़ता है। इसलिए यदि आप करवा चौथ व्रत के दौरान कुछ खाना या पीना चाहती हैं जैसे चाय, दूध या जूस तो पहली बार व्रत रखने पर ही लें जिससे आप कभी भी कुछ खा या पि सकती हैं।
कहा जाता है कि करवा चौथ व्रत में कथा सुनने और सुनाने का विशेष ही महत्त्व है। इस व्रत के दौरान महिलाएं एक साथ बैठकर कथा सुनती और सुनाती हैं। इस व्रत कथा को सुनने पर ही पूजा का सम्पूर्ण फल मिलता है और पूजा सफल मानी जाती है।
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करवा चौथ विशेष रूप से सुहागिन महिलाओं का व्रत होता है। इस व्रत में हरेक सुहागन अपने पति की लम्बी उम्र की कामना मन में लिए हुए व्रत उपवास करती है। इसलिए इस दिन ख़ास तौर पर पति को सम्मान देना चाहिए। हर महिला को पूजा और चन्द्रमा को अर्ध्य देने के बाद पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए और पति के हाथों से ही जल ग्रहण करना चाहिए।
दिनभर व्रत रखने के बाद, दिन में पूजा और कथा सुनने के बाद शाम को जब महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, तो उनकी पूजा की थाली में ये चीज़ें ज़रूर होनी चाहिए छलनी, आटे का दीपक ,फल, ड्राईफ्रूट, मिठाई और दो पानी के लोटे- एक चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए और दूसरा वो जिससे आप पहले पति के हाथों से पानी पीती हैं। मान्यतानुसार पति को पहले पानी पिलाया जाता है क्योंकि पति को परमेश्वर स्वरुप माना जाता है। इसलिए पहले पति को पानी पिलाएं फिर उनके हाथों से पानी और भोग ग्रहण करें। अर्घ्य वाले लोटे का पानी न पिएं क्योंकि इसका इस्तेमाल चन्द्रमा को भोग लगाने में होता है।
इन बातों को ध्यान में रखकर ही करवा चौथ का व्रत रखना चाहिए जिससे उन्हें व्रत का सम्पूर्ण फल मिलता है।
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