छठ पूजा का पर्व लोक मान्यता का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व के दौरान महिलाएं 36 घंटे का व्रत रखती हैं और सूर्य भगवान की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा का व्रत रखने से संतान की उन्नति होती है और सूर्य सा भाग्य संतान का चमक उठता है। छठ साल में दो बार मनाई जाती है, एक कार्तिक माह में और दूसरी चैत्र के महीने में। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि कार्तिक माह में पड़ने वाली छठ पूजा चैती छठ यानी कि चैत्र माह की छठ पूजा से कैसे अलग है और किन नियमों का पूजा के दौरान पालन करना चाहिए।
कार्तिक और चैती छठ कैसे अलग-अलग हैं? (Kartik Aur Chaiti Chhath Kaise Alag Alag Hain?)
कार्तिक माह में पड़ने वाली छठ पूजा में माता पार्वती की पूजा का विधान है। वहीं, चैत्र माह में पड़ने वाली छठ पूजा में माता सीता की पूजा की जाती है।
कार्तिक माह में जो छठ पूजा आती है उस दौरान नहाय-खाय का महत्व बहुत अधिक होता है। वहीं, चैती छठ में नहाय-खाय को सामान्य पूजा में गिनते हैं।
कार्तिक माह को सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक माह की छठ पूजा में भगवान सूर्य के साथ उषा देवी की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
चैत्र माह में पड़ने वाली छठ पूजा के दौरान भगवान सूर्य के साथ छठी मैया की आराधना करने का विधान है। इस दौरान उषा देवी की पूजा नहीं होती है।
यूं तो चैत्र और कार्तिक दोनों महीनों में पड़ने वाली छठ पूजा बहुत विशेष है और दोनों में ही ठेकुआ, मिठाई, फल आदि प्रसाद में वितरित किये जाते हैं।
हां, मगर दोनों छठ पर्वों में महीने का और सूर्य भगवान के साथ अलग-अलग देवी की पूजा का अंतर जरूर है। लेकिन दोनों छठ संतान के लिए होती है।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर कार्तिक छठ और चैती छठ में क्या है अंतर और दोनों पर्वों में पूजा के दौरान किन नियमों का पालन करना चाहिए।
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