कर्नाटक हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, 'शादी के बाद भी बेटी का अधिकार उतना ही होता है जितना बेटे का...'

कर्नाटक हाईकोर्ट ने लिंगभेद को लेकर बहुत ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि शादी के बाद बेटी का भी बराबर का अधिकार होता है। 

How to overcome gender discrimination issues

हमारे देश में बेटियों को पराया धन मानने का नियम है। लड़कियां जब अपने घरों में रहती हैं तो उन्हें ये समझाया जाता है कि उन्हें तो पराए घर जाना है। इतना ही नहीं शादी के बाद तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है। शादी होने के बाद जैसे बेटियां पराई हो जाती हैं। पर ऐसा होना तो नहीं चाहिए क्योंकि शादी के बाद बेटों को तो पराया नहीं किया जाता है। एक शादीशुदा लड़की पराई हो जाती है, लेकिन लड़का नहीं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में इसी दोगले व्यवहार को खराब बताया है।

एक केस की सुनवाई करते समय कर्नाटक हाईकोर्ट ने ये स्टेटमेंट दिया कि जब शादी के बाद बेटों का स्टेटस नहीं बदलता है तो फिर बेटियों का क्यों? बेटी शादी के बाद पराई क्यों हो जाती है? ये केस था सैनिक वेलफेयर बोर्ड की गाइडलाइन्स को लेकर जिनके हिसाब से शादी के बाद बेटी का पिता की सुविधाओं पर हक नहीं होता है।

क्या है वो केस जिस पर सुनाया गया है ये ऐतिहासिक फैसला?

कर्नाटक हाईकोर्ट में जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने ये फैसला सुनाया है। उनके सामने 31 साल की एक बेटी का केस आया जो शहीद सूबेदार रमेश खंडप्पा पाटिल की बेटी हैं। सूबेदार रमेश 2001 में ऑपरेशन पराक्रम के दौरान लैंड माइन्स साफ करते समय मारे गए थे। प्रियंका पाटिल सूबेदार रमेश की बेटी हैं जो हादसे के वक्त 10 साल की थीं। प्रियंका को डिपेंडेंट कार्ड देने से मना कर दिया गया। कर्नाटक सरकार एक्स सर्विसमैन के परिवार को 10% का रिजर्वेशन देती है और उसके लिए ही प्रियंका ने अर्जी दी थी। सैनिक वेलफेयर असोसिएशन का नियम ये मानता है कि शादी के बाद बेटी को डिपेंडेंट कार्ड नहीं मिलना चाहिए।

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कर्नाटक हाई कोर्ट ने पूरा मामला सुनने के बाद ये बताया कि भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 का ये उल्लंघन है जो ये बताता है कि जेंडर के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

इस मामले में अगर सैनिक वेलफेयर असोसिएशन के नियमों को देखें तो आप पाएंगे कि अगर एक्स सर्विसमैन के बेटे होते तो उनकी शादी हुई है या नहीं हुई है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। पर सिर्फ इसलिए कि एक्स सर्विसमैन की बेटी को ये अधिकार चाहिए था उसका मैरिटल स्टेटस पूछा जा रहा है तो ये गलत है।

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सिर्फ इसलिए कि लड़की की शादी हो चुकी है उसे पिता के अधिकारों से वंछित रखना बिल्कुल सही नहीं है। डिपेंडेंट्स को आईडी कार्ड इशू करना पर उनके मैरिटल स्टेटस और जेंडर के कारण उन्हें अलग कर देना सही नहीं है।

कोर्ट ने इस बात को भी आगे बताया कि एक्स सर्विसमैन शब्द में मैन भी पितृसत्ता को ही दिखाता है।

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2023 में भी इस मामले में बहस क्यों?

माना कानूनी प्रक्रिया धीमी होती है, लेकिन शादी के बाद भी बेटी का उतना ही अधिकार होता है जितना बेटे का ये फैसला कोर्ट को 2 जनवरी 2023 को सुनना पड़ रहा है। कई कानूनी नियम अभी भी ये मानते हैं कि शादी के बाद बेटी का कोई ज्यादा अधिकार नहीं होता है। कई ऐसे नियम समझाते हैं कि लड़कियां शादी के बाद पराई हो जाती हैं। शादी के बाद बेटी को नए घर में एडजस्टमेंट सिखाए जाते हैं, लेकिन उसके अधिकारों के साथ भी एडजस्टमेंट ही होता है।

सवाल सिर्फ इतना सा है कि बेटियों का हक उनका अपना क्यों नहीं? इस जैसे नियमों को आखिर कितने सालों तक झेलना पड़ेगा? ये सोचने वाली बात है कि हम एक तरफ तो कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले की सराहना कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ ये नहीं समझ पा रहे हैं कि इस तरह के फैसलों की जरूरत काफी पहले से है और अभी तक इन पर बहस ही चल रही है।

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