तू कितनी अच्छी है, तू कितनी भोली है, प्यारी प्यारी है...... ओ मां, ओ मां....गाने की ये पंक्तियां न जाने क्यों बचपन से लेकर अभी तक मां के साथ बिताए हर एक पल को याद दिला देता है। मां का वो रातों को जागना कि हमें अच्छी नींद आ जाए। खुद अपनी खुराक से कम खाना कि कहीं हमारे लिए कुछ काम न पड़ जाए। ये सब सोचकर आंखें नाम तो जरूर होती होंगी। फिर मां इतनी ही जरूरी है तो क्यों आज इतने वृद्धाश्रम खोले जा रहे हैं और बच्चे बड़े होने के बाद उस मां की देखभाल नहीं कर पा रहे हैं? हमारे विकासशील भारत में न जाने कितनी माताएं वृद्धाश्रम की शरण लेती हैं और न जाने कितनी बेटे बहू के ऊपर दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं।
आखिर क्यों बहू अपनी सास की सेवा करने को बोझ मानती है? आखिर क्यों सास की कोई भी बात रोक-टोक लगती है और धीरे-धीरे एकल फैमिली का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है और बेटे बहू अपने माता-पिता के साथ न रहकर अलग रखना पसंद करते हैं?
हाल ही में झारखंड हाईकोर्ट ने एक बहू की इस अपील को खारिज कर दिया है कि वो पति और उसके परिवार के साथ नहीं रहेगी और उसे अपने बच्चे के पालन पोषण के लिए एक उपयुक्त धन राशि चाहिए। यही नहीं हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सास और पति की दादी की सेवा करना बहू के लिए जरूरी बताया है। आइए इसके बारे में जानें पूरी बात।
झारखंड हाईकोर्ट ने बहू के लिए कही ये बात
झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने एक पारिवारिक मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि बुजुर्ग सास और दादी सास की सेवा करना एक विवाहित महिला का कर्तव्य है।
एक महिला अपने पति के ऊपर इस बात का दबाव नहीं बना सकती है कि वो अपनी मां से अलग रहे। यही नहीं रुद्र नारायण राय बनाम पियाली राय चटर्जी मामले में अदालत ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के आदेश को निरस्त कर दिया।
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए कि 'बुजुर्गों की सेवा करना' भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और पति की मां या दादी की सेवा करना 'पत्नी के लिए अनिवार्य है' और एक महिला अपने ससुराल से अलग रहने की अनुचित मांग न करे, झारखंड उच्च न्यायालय ने इसे अस्वीकार कर दिया।
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झारखंड हाईकोर्ट ने क्यों लिया यह निर्णय
झारखण्ड की एक महिला पियाली राय चटर्जी ने अपने ससुराल पक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उनके पति और ससुराल के लोगों ने उसके साथ क्रूरता की है और दहेज के लिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था।
जबकि उनके पति रुद्र नारायण राय का आरोप है कि पत्नी उनकी मां और दादी से अलग रहने का दबाव डालती थी। रूद्र ने बताया कि पत्नी उनके घर में मां और दादी के साथ अक्सर झगड़ा करती थीं और उनकी इजाजत के बिना ही घर से बाहर या मायके चली जाती थीं।
झारखंड हाई कोर्ट का मानना है कि रिकॉर्ड में मिलने वाले सबूतों से संकेत मिलता है कि पत्नी बिना किसी कारण के पति पर उसकी मां और दादी से अलग रहने के लिए दबाव डाल रही थी। दरअसल पत्नी अपनी वृद्ध सास और दादी सास की सेवा नहीं करना चाहती है।
झारखंड हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के इस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें पत्नी को गुजारा भत्ता देने की अनुमति दी गई थी। पति पेशे से एक सहायक प्रोफेसर हैं और उन्होंने झारखंड उच्च न्यायालय में दुमका के एक फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है जिसमें दावा किया गया कि निचली अदालत उसकी पत्नी, जो एक डॉक्टर हैं, उनके गलत व्यवहार के बारे में सही से अनुमान नहीं लगा सकी।
झारखंड हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को 30,000 रुपये और अपने नाबालिग बेटे के भरण-पोषण के लिए 15,000 रुपये देने के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर आदेश पारित किया है।
क्या है पूरा मामला
अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार इस शादी-शुदा जोड़े की शादी साल 2013 में हुई थी। पत्नी कथित तौर पर अपने ससुराल वालों के साथ नहीं रहना चाहती थी और यह भी आरोप लगाया कि उसके पति की ओर से दहेज की मांग की गई थी।
झारखंड उच्च न्यायालय ने दो मुद्दों पर विचार किया। पहला, क्या पत्नी ने बिना किसी पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इनकार कर दिया था और दूसरा पति की आय और देनदारी को देखते हुए दिया गया गुजारा भत्ता अनुपातहीन है।
कई दलीलों से गुजरने के बाद, झारखंड उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला ने अपनी मर्जी से अपना ससुराल छोड़ा था क्योंकि वह अपनी बूढ़ी सास और दादी सास की सेवा नहीं करना चाहती थी।
अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने अपने पति पर अपने परिवार से अलग रहने का दबाव बनाया, जो पति को मंजूर नहीं था। अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार साल 2018 में पत्नी अपने ससुराल से अलग रहने लगी।
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संविधान में बताए गए हैं ये मौलिक अधिकार
भारत के संविधान में भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों की बात की गई है...यह 'हमारी समग्र संस्कृति की समृद्ध विरासत को महत्व देने और संरक्षित करने' का प्रावधान है। इस संस्कृति को बनाए रखने के लिए पत्नी द्वारा बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना जरूरी है।
पत्नी के लिए यह अनिवार्य था कि वह अपने पति की मां और दादी की सेवा करे और उसकी बूढ़ी सास और दादी सास से अलग रहने की अनुचित मांग पर ज़ोर न दे। यह निर्णय झारखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुभाष चंद ने सुनाया।
जस्टिस सुभाष चंद ने इस मामले में दिया मनुस्मृति का हवाला
जस्टिस सुभाष चंद ने रुद्र नारायण राय बनाम पियाली राय चटर्जी राय केस में फैसला सुनाते हुए भारत के संविधान में अनुच्छेद 51-ए के साथ उन्होंने पौराणिक ग्रंथों, शास्त्रों और यजुर्वेद के साथ मनुस्मृति का भी हवाला दिया। न्यायाधीश ने यजुर्वेद के श्लोक का जिक्र भी किया।
जहां एक तरफ वृद्धाश्रम में माताओं को परेशान देखकर आंखें भर आती हैं, वहीं झारखंड हाईकोर्ट का फैसला बूढ़ी माताओं के लिए आशा की एक किरण है।
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