जब आप कोई घर या जमीन खरीदते हैं, तो सबसे पहला और जरूरी कदम होता है उसकी रजिस्ट्री कराना। रजिस्ट्री से उस सौदे को कानूनी मान्यता मिलती है, जिससे यह साबित होता है कि प्रॉपर्टी का ट्रांसफर एक कानूनी प्रक्रिया के तहत हुआ है। कई लोग यह समझते हैं कि रजिस्ट्री हो जाने के बाद वे पूरी तरह से मालिक बन चुके हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। प्रॉपर्टी पर पूरा अधिकार साबित करने के लिए कुछ और जरूरी डॉक्यूमेंट्स और प्रोसेस सो होकर गुजरना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि रजिस्ट्री केवल यह साबित करती है कि संपत्ति का लेन-देन कानून के तहत हुआ है और यह दस्तावेज सिर्फ खरीदार और बेचने वाले के अधिकारों की रक्षा करता है। इसका मतलब यह नहीं कि रजिस्ट्री के आधार पर आप प्रॉपर्टी के मालिक बन चुके हैं।
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भारत में कानूनी रूप से प्रॉपर्टी का मालिक बनने के लिए नीचे दिए गए डॉक्यूमेंट्स का होना बेहद जरूरी है-
यह सबसे अहम कागजात है, जो बताता है कि प्रॉपर्टी को सेलर से बायर को बेचा गया है। यह गैर-न्यायिक स्टाम्प पेपर पर तैयार होता है और इसे स्थानीय रजिस्ट्रार ऑफिस में रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है। इसमें प्रॉपर्टी की कीमत, उसकी स्थिति, शर्तें और दोनों पक्षों के नाम दर्ज होते हैं।
यह सर्टिफिकेट यह बताता है कि प्रॉपर्टी पर कोई लोन, बकाया या कानूनी विवाद नहीं है। इसे सब-रजिस्ट्रार ऑफिस से प्राप्त किया जाता है। यह यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति पर कोई कानूनी विवाद नहीं है और इसका टाइटल स्पष्ट है।
यह सर्टिफिकेट लोकल नगरपालिका द्वारा जारी किया जाता है और इसमें प्रॉपर्टी का टैक्स रिकॉर्ड दर्ज होता है। यह प्रमाणपत्र बिल्डिंग परमिट, बिजली-पानी के कनेक्शन आदि के लिए जरूरी होता है और यह साबित करता है कि संपत्ति का रिकॉर्ड नगरपालिका में भी दर्ज है।
म्यूटेशन प्रोसेस में प्रॉपर्टी के ओनरशिप में बदलाव को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है। इससे पता चलता है कि खरीदी गई संपत्ति अब कानूनी रूप से आपके नाम पर है और राजस्व विभाग में दर्ज हो चुकी है।
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अगर आप समय पर property tax का भुगतान कर रहे हैं और आपके पास उसकी रसीदें हैं, तो यह दिखाता है कि आप उस संपत्ति कानूनी तौर पर मालिक हैं।
अगर आपने नया फ्लैट या मकान खरीदा है, तो यह दो सर्टिफिकेट बेहद जरूरी होते हैं।
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