भारत में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है और यहां पर शादी के बाद तलाक लेने के बारे में सोचना काफी मुश्किल होता है। हालांकि, हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, वह लगातार बदल रही है। लोग अब समाज की बेड़ियों को तोड़कर आजाद जीने लगे हैं। पिछले कुछ सालों में महिलाओं को बेहतर शिक्षा, मौलिक अधिकारों के बारे में जागरूकता और वित्तीय, मानसिक और शारीरिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्त हुई है, जिसकी वजह से अधिकाधिक महिलाएं अपने हक और आत्म-सम्मान के लिए आवाज उठाने में समर्थ हो रही हैं। जब उनके साथ विवाह के बाद बुरा बर्ताव होता है, तो वह तलाक लेना ही बेहतर समझती हैं।
हालांकि, तलाक के बाद महिला कानूनी रूप से अपने पति से गुजारा भत्ता लेने की भी हकदार होती है, जिसे हम एलिमनी कहते हैं।
जब पति-पत्नी तलाक लेते हैं, तो कोर्ट पति से पत्नी के भरण-पोषण के लिए भुगतान करने का निर्देश दे सकता है, जिसे एलिमनी कहा जाता है। एलिमनी, हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत सूचीबद्ध प्रावधानों द्वारा लागू होता है। ये एलिमनी पेमेंट कोर्ट के निर्देश के आधार पर या दोनों पक्षों के बीच हुए आपसी समझौते के आधार पर भी किया जा सकता है। एलिमनी के प्रकार का निर्धारण करते समय कोर्ट विभिन्न पैरामीटर्स को ध्यान में रखता है।
इन सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए ही कोर्ट द्वारा एलिमनी अमाउंट को तय किया जाता है। आपको बता दें कि एलिमनी के भी कई प्रकार की होती हैं, जिसके बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।
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इस मामले में तलाक नहीं होता है, केवल पति-पत्नी अलग रहने लगते हैं। इस सैपरेशन के दौरान, अगर कोई पार्टनर जॉब नहीं करता है, तो कोर्ट Separation Alimony पेमेंट करने का आदेश दे सकता है। यदि कभी कपल्स के बीच मामला सुलझ जाता है, तो यह एलिमनी बंद हो जाती है।
अगर पार्टनर शादी के बाद एक गृहिणी की भूमिका निभाता है और वह आत्मनिर्भर बनने में असमर्थ है, तो कोर्ट Permanent Alimony पेमेंट करने के आदेश दे सकता है। यह पेमेंट तब तक किया जाता है, जब तक पति-पत्नी में से कोई दुबारा शादी नहीं कर लेता है या मर नहीं जाता है।
यह एलिमनी तब दी जाती है, जब पति या पत्नी आत्मनिर्भर नहीं बन जाता है। जब तक वह खुद अपने बच्चों की देखभाल का साधन नहीं जुटा पाता है। आमतौर पर, बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा के लिए यह गुजारा भत्ता दिया जाता है।
जब पति या पत्नी को कॉलेज या उसकी पढ़ाई के लिए पैसे खर्च किए गए हों, जिसके परिणामस्वरूप पति या पत्नी नौकरी करने लगा हो और उसकी इनकम में वृद्धि हुई हो, तो कोर्ट खर्च की राशि का आधा या पूरा हिस्सा देने का आदेश दे सकता है।
यह एकमुश्त पेमेंट होती है। एलिमनी अमाउंट कपल द्वारा जमा की गई संपत्ति या किसी अन्य संपत्ति के बदले में एक बार में ही चुकाई जाती है।
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इनकम टैक्स एक्ट 1961 में एलिमनी की टैक्सेबिलिटी को कंट्रोल करने वाला कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है। एलिमनी पर टैक्स लगना इस बात पर निर्भर करता है कि पेमेंट कैसे किया जाता है।
जब एलिमनी हर महीने दी जाती है, तो इसे इनकम माना जाता है। इनकम का मतलब केवल काम करके, इन्वेस्ट करके मिलने वाला पैसा नहीं है, बल्कि स्वेच्छा से या कोर्ट के आदेश से मिलने वाला पैसा भी इसमें शामिल होता है। चूंकि, मंथली एलिमनी एक तय इनकम सोर्स है, तो इसे इनकम माना जाता है और इस पर टैक्स लग सकता है।
अगर एलिमनी की रकम को एक बार में ही दे दिया जाता है, तो यह कैपिटल गेन मानी जाएगी। एकमुश्त रकम को मंथली या एनुअल पेमेंट नहीं माना जा सकता है, जब तक कि पहले से ही ऐसे नियमित भुगतानों का कानूनी अधिकार न हो, जिसे बाद में बदला गया हो। हालांकि, अगर पहले एलिमनी मंथली मिलती थी और बाद में इसे एकमुश्त दे दिया गया है, तो यह इनकम मानी जाएगी और इस पर टैक्स लगेगा।
आपको सरल शब्दों में बता देते हैं कि अगर तलाक के बाद आपको हर महीने एलिमनी मिलती है, तो इसे इनकम माना जाएगा और इस पर टैक्स लगेगा। आपको ITR फाइल करते समय इसे दिखाने की जरूरत होगी। लेकिन, अगर एलिमनी की रकम को एक बार में ही चुका दिया जाता है, तो इसे कैपिटल गेन माना जाएगा और इस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
इसके अलावा, अगर तलाक से पहले किसी संपत्ति के जरिए एलिमनी का भुगतान किया जाता है, तो इसे टैक्स फ्री माना जाएगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह संपत्ति रिश्तेदार से मिले गिफ्ट की तरह मानी जाती है और इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 56(ii) के तहत टैक्स से छूट मिल जाती है। लेकिन, तलाक के बाद अगर कोई संपत्ति दी जाती है, तो इसे गिफ्ट नहीं माना जाएगा और इस तरह के लेन-देन पर टैक्स लगाया जा सकता है।
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