Girl Child: भारत सहित पूरी दुनिया में साइंस को लेकर बहुत तरक्की कर ली गई है और प्रेग्नेंसी से जुड़े कई कॉम्प्लिकेशन कम किए गए हैं, लेकिन वो कहते हैं ना अच्छाई के पीछे बुराई भी कहीं ना कहीं छुपी होती है और ऐसे ही जहां एक ओर प्रेग्नेंसी के कॉम्प्लिकेशन कम करने के लिए तरह-तरह की जांच शुरू की गई है वहीं दूसरी ओर लिंग की जांच कर लड़की को कोख में ही मारने की प्रथा भी जोरों से चली आ रही है।
भारत ही नहीं पूरी दुनिया के रेडियोलॉजिस्ट्स पर इसे लेकर इल्जाम लगते रहते हैं। इसी बाच Indian Radiological & Imaging Association (IRIA) के दिल्ली चैप्टर की तरफ से एक नई पहल की गई है जो समाज के उस तबके के लिए है काम कर रहा है जिन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता।
आजादी के 75 सालों बाद भी ऐसे कितने लोग हैं जो समाज सेवा के बारे में सोचते हैं? ऐसे सवालों के जवाब अधिकतर लोगों के पास नहीं होते, लेकिन IRIA की पहल ये बताती है कि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो समाज के लिए काम कर रहे हैं। इस बारे में जानने के लिए हमने IRIA दिल्ली की दूसरी महिला प्रेसिडेंट शिबानी मेहरा से बात की। उन्होंने हमें IRIA के बारे में कुछ दिलचस्प बातें बताईं।
जवाब: 'पूरी दुनिया में रेडियोलॉजिस्ट्स के ऊपर लिंग जांच करने के इल्जाम लगते रहते हैं और भारत जैसे देश में तो ये बहुत आम है। मैं ये नहीं कह रही कि यहां कोई ब्लैक शीप नहीं है, लेकिन हम धीरे-धीरे इस छवि को तोड़ने की कोशिश तो कर ही सकते हैं।'
'रक्षा ये हमारे असोसीएशन का इनिशटिव है तो 'प्रटेक्ट द गर्ल चाइल्ड' ये रक्षा इनिशटिव का मिशन है। इस महीने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने की शुरुआत हमने रक्षा अभियान से की। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और बेटी की सुरक्षा करो ये हमारा नारा है और इसके तहत हम बेटियों को सशक्त बनाने की कड़ी में आगे बढ़ रहे हैं।'
'क्योंकि मैं IRIA की प्रेसिडेंट हूं तो मुझे लगा कि ये मेरा कर्तव्य है कि गर्ल चाइल्ड को प्रोटेक्ट करने के लिए हमें करना चाहिए। इसे लेकर आगे कदम बढ़ाए गए हैं। इस पहल को लेकर पिछले 5 सालों से काम चल रहा है और करीब 2 साल पहले ही इस अभियान की नींव रखी गई है।'
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जवाब: 'रक्षा अभियान के तहत मैं और मेरे साथी कई एनजीओ से जुड़े हैं जो स्लम एरियाज में लड़कियों को बुनियादी जरूरत की चीज़ें देने का काम करते हैं, जैसे हर महीने सैनिटरी किट्स देना आदि। इसी के साथ, आज़ादी के मौके पर हमने गर्ल्स शेल्टर विजिट किया जिसका नाम था रोज़ उड़ान गर्ल्स होम जहां ऐसी लड़कियां रहती हैं जो या तो सिंगल मदर की बच्चियां थीं, चाइल्ड एब्यूज की शिकार थीं, या जिन्हें अकेला छोड़ दिया गया था।'
'रक्षा बंधन के अवसर पर हमने रोज़ उड़ान गर्ल्स होम की बच्चियों से मुलाकात की। उन्हें स्टोरी बुक्स , कलरिंग बुक्स, स्नैक्स, सैनिटेरी नपकिंस तो बांटे ही साथ में तिरंगा भी दिया। बच्चियों से आज़ादी और देश प्रेम के दीत सुने और उनके सपनों के बारे में चर्चा की। यह जानकर दिल बेहद खुश हुआ कि कुछ डॉक्टर, कुछ पुलीस, कुछ आर्मी ऑफिसर बनना चाहती हैं और देश की सेवा करना चाहती हैं।। हमें लगा कि अगर उनके सपने हो सकते हैं, उनके ड्रीम्स हो सकते हैं तो हमारे क्यों नहीं।'
'ऐसे ही हमने MCD के एक स्कूल को भी विजिट किया और 'हर घर तिरंगा' कैम्पेन के बारे में बात करते हुए झंडे बांटे और उनके साथ समय बिताया। उनसे इस कैंपेन के बारे में पूछा और इसे बेहतर तरीके से समझाने की कोशिश की।'
'हमने ब्लाइंड स्कूल के साथ भी कॉन्टैक्ट किया है जो आगे बढ़ेगा।'
सवाल: 'नहीं ऐसा नहीं हुआ, पिछले दो सालों में हमने कई एनजीओ के जरिए काम किया है और लड़कियों की भलाई के लिए काम किया जा रहा है। हम स्लम एरियाज में ब्रेस्ट कैंसर और मेंस्ट्रुअल अवेयरनेस को लेकर भी काम कर रहे हैं जहां छोटी लड़कियों को ही नहीं बल्कि उनकी माताओं को भी जागरूक किया जा रहा है। अधिकतर लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं, लेकिन हमें इसके बारे में सोचना चाहिए। हां, मैं ये जरूर कहूंगी कि मुझे लगता है इस प्रोग्राम को बड़े पैमाने पर चलाया जाना चाहिए।'
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जवाब: 'इस प्रोग्राम के तहत सबसे अच्छी चीज़ ये लगी कि हम आगे बढ़कर जागरुकता के लिए काम कर रहे हैं। गर्ल चाइल्ड को बचाने और महिलाओं को हाइजीन, प्रेग्नेंसी, बीमारी आदि के बारे में बताते हैं और कहीं ना कहीं हम इससे जुड़ी बातों पर ध्यान दे रहे हैं।'
जवाब: 'अभी हम इसे कमर्शियलाइज नहीं कर रहे हैं। ये बहुत अच्छी पहल है और इसे लेकर हम धीरे-धीरे आगे कदम रखेंगे।'
शिबानी जी की तरह ही कई ऐसे लोग हैं जो अपने काम के जरिए समाज की भलाई करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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