कितने सालों बाद भारत को आजादी मिली थी, जिसे दिलाने के लिए कई सेनानियों ने मेहनत की और अपनी जान देकर आजाद हिंदुस्तान की नींव रखी। इतिहास कहा है कि भारत को आजादी दिलाने के लिए कैसे सब अपने क्षेत्रों, मतभेदों को भुला कर सभी वर्ग चाहे वह अमीर या गरीब, महिलाएं हों या पुरुष, बच्चे हों या फिर बुजुर्ग सभी एकजुट हुए थे और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था।
आजादी के लिए लोगों में इतना साहस पैदा करने के लिए महात्मा गांधी ने अहम भूमिका निभाई थी। हमने उसे जुड़ी सम्मान, साहस और देशभक्ति की कहानियां काफी सुनी है, जिसे हम आज भी कही ना कही सुनते और पढ़ते रहते हैं। इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी ने समय-समय पर अपनी बहादुरी और साहस का प्रयोग कर किया है, जिसमें उनका काफी साथ लाठी ने दिया है।
हमने जब भी गांधी की तस्वीरें देखी हैं, वो हमेशा लाठी में ही नजर आए हैं। ऐसे में ये सवाल आपके मन में जरूर आए होंगे कि यह लाठी कैसे और कब उनके पास आई, ये किसने दी थी और अब यह कहां है? अगर आपके मन में भी ऐसे ही सवाल आ रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। तो देर किस बात की आइए विस्तार से जानते हैं-
कहां से आई महात्मा गांधी की लाठी?
पहला सवाल हमारे मन में आता है कि यह लाठी आखिर आई कहां से और पहली बार इसे कहां देखा गया? बता दें कि पहली बार इस लाठी को दांडी मार्च में देखा गया था। साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक चली इस दांडी यात्रा के बारे में आपने पढ़ा ही होगा।
इस यात्रा में सब 400 किलोमीटर की लंबी निकली थी, जिसमें सब पैदल चले थे। तब इस लाठी ने गांधी जी को सहारा दिया था। इस यात्रा के बाद महात्मा गांधी हर जगह लाठी लेकर जाया करते थे।
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गांधी से पहले किसके पास थी लाठी?
इतिहास के मुताबिक महात्मा की लाठी पहले भी किसी ने इसका इस्तेमाल किया था। यह लाठी कई हाथों से होकर गांधी के पास पहुंची थी। इस लाठी का इस्तेमाल प्रसिद्ध कन्नड़ कवि एम गोविंद पई करते थे। बता दें पई कर्नाटक में मंगलुरु के पास मंजेश्वर गांव में रहते थे। वो एक कट्टर राष्ट्रवादी थे, जो अपने लेखनी की वजह से लोगों को जागरूक करने का काम करते थे।
बेहद खास लकड़ी से बनी हुई थी लाठी
आपको जानकर हैरानी होगी कि लाठी एक खास तरीके की लकड़ी से बनाई गई थी, जो आसानी से नहीं मिलती। यह लकड़ी कर्नाटक के समुद्री तट पर ही मिलती है, खासकर मलाड इलाके में। यह लाठी बेहद मजबूत है, जिसे अंग्रेजों के विरोध इस्तेमाल किया गया था।
इसके अलावा, गांधी जी को बिहार के मुंगेर जिले के घोरघाट गांव से भी एक विशेष प्रकार की लाठी भी भेंट में मिली थी, जो गांधी के पास जीवन भर रही। कहा जाता है कि गांधी जी को लाठी 1934 में भेंट की गई थी, तब गांधी जी अपनी बिहार के दौरे पर थे।
अब कहां है महात्मा गांधी की लाठी?
कहा जाता है कि महात्मा गांधी की लाठी अब राजघाट में स्थित गांधी के संग्रहालय में रखी गई है। इससे पहले कई बार लाठी को महात्मा गांधी के सामान के साथ नीलाम किया गया था। इससे पहले लाठी को गुजरात में रखा गया था, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। कहा जाता है कि यह लाठी गांधी जी के लिए काफी लकी मानी जाती है।
गांधीजी ने इन आंदोलन से देश को दिलाई हिम्मत
गांधी जी ने नमक पर ब्रिटिश हुकूमत के एकाधिकार के खिलाफ 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह चलाया, जिसमें वे अहमदाबाद के पास स्थित साबरमती आश्रम से दांडी गांव तक 24 दिनों तक पैदल मार्च निकाला। देश की आजादी के लिए 'दलित आंदोलन', 'असहयोग आंदोलन', 'नागरिक अवज्ञा आंदोलन', 'दांडी यात्रा' और 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू किए थे।
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गांधी जी से प्रभावित थे कई लोग
महात्मा गांधी के नोबल कार्यों को इस बात से समझा जा सकता है कि जिस देश से भारत को आजादी दिलाने के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी और उसी ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया। यही वजह है कि महात्मा गांधी से मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला जैसे नेता भी प्रभावित हुए।
उन्होंने अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी और महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन भी बापू से प्रभावित थे और महात्मा गांधी को 5 बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था।
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Image Credit- (@Freepik)
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