India-Pakistan Ceasefire: 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान घर के खिड़की-दरवाजों पर लगाए गए थे काले कागज, मोमबत्‍ती की रोशनी में बनता था खाना और घर से बाहर नहीं खेल पाते थे बच्‍चे, सीजफायर के बाद क्‍या अब ली जा सकती है चैन की सांस?

India-Pakistan Ceasefire: कब होती थी सुबह और कब आती थी रात? 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान कुछ इस तरह रुक गई थी जिंदगी, जानें उस दौरान क्‍या था हाउसवाइफ का हाल। कैसे चलता था घर ? कैसे दुख की घड़ी में सुख के पलों की होती थी तलाश। सीजफायर लगने के बाद क्‍या अब ली जा सकती है चैन की सांस?
India-Pakistan Ceasefire

22 अप्रैल 2025 का दिन भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय की तरह दर्ज हो गया है। इस दिन केवल आतंकवादियों ने मांओं से उनका बेटा और सुहागिनों से केवल उनके मां का सिंदूर ही नहीं छीना बल्कि पूरे राष्ट्र के साहस, सहिष्णुता और मानवता पर हमला किया।इस हमले का जवाब देते हुए भारत सरकार न 6 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्‍तान के 6 से भी ज्‍यादा ठिकानों पर 24 से भी ज्‍यादा हमले कर डाले। जवाबी कार्यवाही में पाकिस्‍तान भी चुप नहीं बैठा, अपने नापक इरादों को और भी ज्‍यादा बुलंद करते हुए उसने भारत की सीमा से जुड़े कुई क्षेत्रों को क्षति पहुंचाने का प्रयास किया। हालांकि, सैनिकों की अपार कोशिशों के बाद भी क्षति पहुंची। जहां कुछ जवान शहीद हो गए, वहीं आम नागरिकों को भी अपनों को खोना पड़ा। किसी का घर टूटा, तो किसी मन में बसी दहशत अभी भी खत्‍म नहीं हुई है। मगर हमारे सैनिकों ने इस बार बीते 3 बार के युद्धों की तरह पाकिस्‍तान को धूल चटाने में कोइ कसर नहीं छोड़ी।

6 मई से सीमा पर शुरू हुआ यह तनाव 10 मई को शांत हुआ। भारत और पाकिस्‍तान दोनों सीजफायर के लिए तैयार हो गए, मगर हमेशा की तरह इस बार भी सीजफायर का उल्‍लंघन करने से पाकिस्‍तान बाज नहीं आया। सवाल यह उठता है क्‍या अब हम चैन की सांस ले सकते हैं? इस केवल युद्ध विराम समझा जाए या युद्ध का अंत। शायद इस सवाल का जवाब अब तक किसी के पास नहीं है। मगर इन 4 दिनों में हम सभी के साथ एक ऐसा मोमेंट आया होगा जब हम फ्लैशबैक में गए होंगे। जब हमने अपनी दादी-नानी से युद्ध के दौरान हुई घटनाओं और माहौल की कहानियां सुनी होंगी।

जी हां, यह पहली बार नहीं जब इंडिया-पाकिस्‍तान के बीच युद्ध जैसी संभावनाएं उत्‍पन्‍न हो गई हों। वर्ष 1965, 1971 और 1999 में इंडिया-पाकिस्‍तान का युद्ध हो भी चुका है। वहीं वर्ष 1965 और 1971 में तो ब्‍लैकआउट और लॉकडाउन जैसी स्थितियां भी बन चुकी हैं। चलिए आज हम आपको बताते हैं, तब देश में क्‍या हालात थे? अपने परिवार के जीवन यापन के लिए महिला को क्‍या संघर्ष करना पड़ा था।

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1965 और 1971 के युद्ध के दौरान महिलाओं की स्थिति जानें

महिलाओं का संघर्ष कभी खत्म नहीं होता है। खासतौर पर युद्ध के दौरान ब्लैकआउट, लॉकडाउन या कर्फ्यू लगने पर यह संघर्ष और अधिक बढ़ जाता है। अपने परिवार के खान-पान से लेकर घर के बचाव तक की जिम्मेदारी उसके कंधे पर आ जाती हैं। वर्ष 1965 युद्ध का अनुभव कर चुकीं कानपुर निवासी मीना गुप्‍ता बताती हैं ,"मैं बहुत छोटी थी। हम एमपी के नौगांव में रहते थे। छोटा जिला होने के बावजूद यहां युद्ध के दौरान पूरी तरह लॉकडाउन लगा दिया गया था। रात होते ही ब्लैकआउट हो जाता था। मुझे याद है मम्मी ने घर के हर खिड़की दरवाजे पर काली पन्नी चिपका दी थी। हफ्ते भर हमने सूरज की दर्शन नहीं किए थे। घर में पढ़ाई से लेकर खाना तक मोमबत्ती की लाइट में बनाया जाता था। उस दौरान घर पर अनाज, सब्जी न होने पर हमने नमक रोटी भी खाई थी।"

वहीं 1971 के युद्ध के दौरान तो देश में इमरजेंसी लगा दी गई थी। तब तो हालात और भी ज्यादा बुरे थे। भोपाल की मीरा गुप्ता बताती हैं, "मैं कॉलेज में पढ़ती थी। घर में हर जगह काले पेपर चढ़े थे। यह गिलेस पेपर हुआ करते थे। थोड़ी सी भी लाइट घर से बाहर नहीं जा सकती थी। सड़कों पर कर्फ्यू लगा हुआ था और पूरे दिन -रात सायरन की आवाज आती रहती थी। यह आवाज कभी धीमी कभी तेज हो जाती थी। घर में हम सब जब साथ बैठते तो ईश्वर के नाम की माला जपते कि युद्ध रुक जाए। एक दिन मैं मोमबत्ती जला कर पढ़ रही थी। तब ही एक सैनिक आया और उसने कहा यह भी बंद कर दो। रात में तो हम एक दूसरे के चेहरे भी नहीं देख पाते थे।"

एक खबर के अनुसार पता चलता है कि 1971 में जब बांग्लादेश की आजादी के लिए भारत-पाकिस्‍तान में युद्ध हुआ तब गुजरात के भुज इलाके की 300 महिलाओं ने 72 घंटे में भारतीय वायुसेना के लिए एयरस्ट्रिप यानी सड़क बनाई ताकि सेना को पाकिस्तान द्वारा की जा रही बमबारी के खिलाफ कार्रवाई करने में दिक्कत न आए।

इतना ही नहीं, देश के कई इलाकों में महिलाएं घर में मौजूद कपड़ों से पट्टियां और अन्य फस्‍ट एड का सामान तैयार कर किट बना कर सीमावर्ती इलाकों में भेजने लगीं।इतना ही नहीं, उस वक्‍त न तो टीवी-होता था, न मोबाइल। लाइट ही नहीं आती थी, ब्लैकआउट से पहले महिलाएं घर का सारा काम निपटाकर, अपने बच्चों को वीर सैनिकों की कहानियां सुनाया करती थीं, जो उनके लिए मनोरंजन का साधन होती थीं। खुद को मानसिक रूप से मजबूत रखते हुए एक औरत उन परिस्थितियों में भी अपने परिवार को किसी भी तरह के तनाव से बचाने के लिए अपने ही अंदर एक अलग जंग लड़ रही होती थी।

हालांकि, आज वक्‍त बहुत बदल गया है। नई तकनीकों से युद्ध लड़ना आसान हो गया है, मगर जो संघर्ष एक आम जनता, उनके परिवार और एक महिला को करना पड़ता है, वो वैसा ही है। सीजफायर के बाद हम थोड़ी चैन की सांस बेशक ले लें, मगर जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कभी न होन पाने का जो क्रोध हमारे अंदर है, वो शायद ही कभी शांत हो पाएगा।

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क्‍या होता है सीजफायर ?

सीजफायर यानी सीमा पर चल रही गोलेबारी को रोकना। इसका उद्देश्‍य हिंसा को रोकना होता है ताकि जान-माल की हानि से बचा जा सके। दोनों पक्ष आपस में बैठ कर बात कर सकें। युद्ध लड़ना है या फिर कोई संधि करनी है, इस पर फैसला हो सके। भारत और पाकिस्तान के बीच भी वर्ष 2003 में नियंत्रण रेखा (LoC) पर सीजफायर समझौता हुआ था। जिसका उल्‍लंघन पाकिस्‍तान सैकड़ों बार कर चुका है।

सीजफायर कितने प्रकार का होता है?

अब यह समझना आसान है कि सीजफायर का मतलब युद्ध का अंत नहीं युद्ध विराम होता है। ऐसे में सीजफायर भी कई प्रकार के होते हैं:

  1. आंशिक सीजफायर (Partial Ceasefire): यह सीजफायर केवल कुछ क्षेत्रों , जो युद्धग्रस्‍त है, वहां लागू होता है।
  2. पूर्ण सीजफायर (Complete Ceasefire): जो पूरे युद्धक्षेत्र में लागू होता है और दोनों पक्षों द्वारा पूर्ण रूप से गोलीबारी रोकी जाती है।
  3. अस्थायी सीजफायर (Temporary): जब सीमित समय के लिए सीजफायर होता है। जैसे सुबह के समय गोलेबारी रोक दी जाती है और रात होते ही शुरू हो जाती है।
  4. स्थायी सीजफायर (Permanent): जब स्थायी रूप से शांति स्थापित करने का प्रयास होता है, तब दोनों पक्ष लंबे समय के लिए समझौता करते हैं कि उनके द्वारा सीमा के उस पास कोई भी गोलेबारी नहीं की जाएगी।

सीजफायर के दौरान क्‍या होता है?

गोलेबारी बंद हो जाती है और नागरिकों का घर से बाहर निकलना सुरक्षित हो जाता है। वहीं इसे एक सकरात्‍मक कदम भी बोल सकते हैं, जिसके तहत तनाव को खत्‍म करने के लिए दोनों देशों के अफसरों और मंत्रियों के मध्‍य बातचीत होती है। लेकिन पाकिस्‍तान हमेशा से सीजफायर का उल्‍लंघन करते हुए आया है। वर्ष 2003 में सीजफायर समझौते के बाद लंबे समय तक शांति बनी रही मगर रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में पाकिस्‍तान ने 860 बार, 2018 में 1600 बार 2019 में 3200 से भी ज्‍यादा बार और 2020 में 5100 से भी ज्‍यादा बार सीजफायर समझौते की धज्जियां उड़ा दी। इसके बाद 2021 के बाद से सीमाओं पर थोड़ी शांति थी, मगर एक बार फिर पाकिस्‍तान ने अपनी आदतों से मजबूर होकर भारत को मौका दिया है कि वो उस पर कड़ी कारवाई करें। भारत इस बात की चेतावनी पाकिस्‍तान को पहले ही दे चुका है कि कोई भी आतंकी गतिविधि या सीजफायर का उल्‍लंघन होने पर अब युद्ध का ऐलान कर दिया जाएगा। मगर युद्ध होने के नाम से ही हम सभी जहन डर से सिहर उठता है और पुराने युद्ध के दिनों की याद आ जाती है।

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Image Credit: shutterstock

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