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मंगल पर बस्ती बसाने के सपने...लेकिन रात को अकेले घर लौटने वाली लड़की के लिए आज भी सुरक्षा एक सवाल? खैर, आजादी मुबारक!

'आजादी मुबारक! बस महिलाओं को छोड़कर…' क्योंकि हमारी आजादी तो अभी भी सेंसर है। काफी दुखद और सोचनीय है कि मुझे आजादी के 79 साल बाद भी ऐसा लिखना पड़ रहा है। लेकिन, क्या सच नहीं है?
Editorial
Updated:- 2025-08-15, 11:17 IST

अरे...हैप्पी इंडिपेंडेंस डे! कितनी खुशी की बात है न आज हम आपका 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। इतने सालों में हमारा देश लगातार तरक्की की राह पर आगे बढ़ रहा है, हर क्षेत्र में खुद को साबित कर रहा है और दुनियाभर में अपनी विजय का परचम लहरा रहा है। हमारा देश जो ऋषियों की भूमि भी है और वीर जवानों की धरती भी, जहां शास्त्रों से लेकर शस्त्रों तक का ज्ञान है, जहां रिश्ते हैं...प्यार है और आगे बढ़ने के ख्वाब भी।
भारत मां, अपने पल्लू के एक सिरे में परम्पराएं तो एक में प्रगति को बांधकर लगातार आगे बढ़ रही हैं। जरा सोचिए...उस देश से महिलाओं के सम्मान, उनके हक की हिफाजत, उनकी आजादी और उनकी तरक्की की कितनी उम्मीद की जाती होगी, जिस देश को ही 'मां' का संबोधन मिला हो। लेकिन, क्या वाकई हमारे देश में महिलाओं को ये सब मिल पा रहा है? 
यूं तो आजादी को आज 79 साल हो चुके हैं और आजाद भारत लगातार जवां हो रहा है। लेकिन, क्या महिलाओं के हिस्से अभी भी आई है आजादी? अगर यह सवाल मुझसे पूछा जाए, तो एक लड़की होने के नाते मेरा जवाब ना हो और ये ना बस यूं ही नहीं है। इस ना के पीछे कई ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब मैं दिल से जानना चाहती हूं।

सड़क पर रात में सेफ्टी के साथ घर पहुंचना एक लग्जरी है...क्या यह मेरी आजादी है?

हमारा देश चांद और मंगल तक पहुंच चुका है लेकिन माफ कीजिएगा, मुझे तो रात को ऑफिस से घर तक अकेले पहुंचने में डर लगता है। कभी घरवालों को अपनी लोकेशन भेजती हूं तो कभी फोन पर किसी से बात करने की एक्टिंग करती हूं और अगर ड्राइवर कोई अनजाना टर्न ले ले, तो मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगती हैं।

happy independence except for women

रात को घर आते वक्त कभी किसी की घूरती नजरें डरा देती हैं, तो कभी कैब या ऑटो न मिलने पर किसी अनहोनी के अंदेशे से मेरा दिल डर जाता है। न जाने कितनी बार रात के अंधेरे में घर लौटते वक्त मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ है कि जिसकी बारे में बात करते हुए भी मैं घबरा जाती हूं। सड़क पर रात में सेफ्टी के साथ घर पहुंचना मेरे लिए लग्जरी से कम नहीं है....क्या यह मेरी आजादी है?

हर 20 मिनट में 1 रेप...क्या यह मेरी आजादी है?

दिल्ली में 9 साल की 2 बच्चियों से गैंगरेप...
बलरामपुर में मूक-बधिर लड़कियों से गैंगरेप...
लखनऊ में 4 साल की बच्ची से रेप...

Rape data in india
अखबार के पन्नों में मैं आए दिन ऐसी हेडलाइन्स से दो-चार होती हैं और होंगी भी क्यों नहीं, आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर मिनट में 1 रेप होता है। सोशल मीडिया स्क्रॉल करते वक्त या टीवी देखते हुए...जब भी मेरी आंखों के आगे ऐसी खबरें आती हैं, तो मेरे मन में यही सवाल उठता है कि क्या यही मेरी आजादी है?

हर बार मेरी ओर उठती उंगलियां...क्या यह मेरी आजादी है?

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शादी न करूं तो गलत...शादी की और तलाक हो गया तो गलत...पति का किसी और के साथ अफेयर लेकिन मैं गलत...अपने पैरों पर खड़ी हुई तो गलत...यहां तक कि अगर रेप हो जाए, तो भी मैं ही गलत...सोशल मीडिया पर एक्टिव होना गलत...अपना ओपिनियन रखना गलत... आखिर, ये हर बार सवालों से भरी उंगलियां और नजरें मेरी तरफ ही क्यों उठती हैं। क्यों आजादी के 79 साल बाद भी बात कपड़ों से शुरू होकर मेरे चरित्र तक पहुंच जाती है। हर मोड़ पर खुद को साबित करना और उन सवालों को खुद की तरफ आते देखना, जो जायज भी नहीं हैं, क्या यह मेरी आजादी है?

कभी दहेज...तो कभी घरेलू हिंसा की बलि चढ़ती मैं...क्या यही मेरी आजादी है?

आज यूं तो हम तरक्की की नई कहानियां लिख रहे हैं लेकिन मेरी लड़की होने का खामियाजा मुझे गाहे-बगाहे मिल ही जाता है। शादी में दहेज की मांग हो या उस मांग के पूरा होने पर घरेलू हिंसा, ये बातें आज भी कहां बदली हैं। खुद मुझे समझ नहीं आता है कि आखिर शादी जिसमें मुझे बराबरी का हक मिलना चाहिए, उसके लिए दहेज देना और दहेज देते वक्त मेरे पापा की गर्दन का जरा झुका सा होना...क्या यह मेरी आजादी है?

सम्मान और बराबरी का हक...लेकिन भीख में, क्या यह मेरी आजादी है?

लोग कहते हैं कि आजकल की लड़कियां हर बात पर फेमिनिज्म का झंडा उठा लेती हैं..आखिर तु्म्हें सब तो दे दिया गया है। उनसे मैं दो बातें कहना चाहूंगी पहली तो यह कि वो सब कुछ जिसकी मैं हकदार हूं, वो अभी तक मुझे मिला ही नहीं है और दूसरी यह कि जो मिला भी है, उस पर मेरा हक है। लेकिन, यहां तो अपना हक भी भीख की तरह मिल रहा है, क्या यह मेरी आजादी है?
इस बराबरी और सम्मान की लड़ाई को तो न जाने अभी मुझे कितना और लड़ना है...न जाने कब अपने हक के फैसले लेने के लिए मुझे किसी से इजाजत नहीं लेनी पड़ेगी...न जाने कब पत्नी, बेटी, बहू या मां बनकर मुझे अपनी ख्वाहिशों की कुर्बानी नहीं देनी पड़ेगी और न जाने कब मुझे मेरा ही हक देने को एहसान नहीं बताया जाएगा।

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आखिर कब मिलेगी मुझे मेरे हिस्से की आजादी?

when women will get freedom
आजाद भारत में सांस लेने का, आजाद भारत की नागरिक होने का यकीन मानिये मुझे बहुत गर्व है। जब मेरा भारत दुनिया में अपना नाम ऊंचा करता है, सफलता और सम्मान की नित कई कहानियां लिखता है, तो मेरी आंखों में चमक आ जाती है। लेकिन, फिर अगले ही पल मेरा मन बोझिल हो उठता है और हजारों सवाल मेरी आंखों में तैरने लगते हैं और मेरा मन यह पूछने के लिए बेताब हो जाता है कि आखिर कब मिलेगी मुझे मेरे हिस्से की आजादी? खैर, मेरे लिए तो यह एक सवाल है और पता नहीं इसका जवाब मिलने में मुझे अभी और कितना वक्त लगेगा। तब तक के लिए खैर आप सभी को आजादी मुबारक!

 

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Image Credit: Freepik, Shutterstock

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