केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए आईआईटी दिल्ली से मिलाया हाथ

महिलाओं का सफर सुरक्षित बनाने के लिए केंद्र सरकार ने की नई पहल, आई-आईटी दिल्ली के साथ मिलकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट में पैनिक बटन इंस्टॉल कराने की हो रही तैयारी।

panic button women

रेप और यौन हिंसा के बढ़ते मामलों पर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और सरकार ने महिलाओं और बच्चियों के लिए एक सुरक्षित माहौल मुहैया कराए जाने की गुहार लगाई जा रही है। इसी के मद्देनजर केंद्र सरकार ने एक बेहतर समाधान के लिए तकनीक का सहारा लेने का फैसला किया है। मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड आईटी ने आईआईटी के साथ साझेदारी में कार और बसों के लिए एक स्विच आधारित डिवाइस तैयार किया है। अगर यह प्रोजेक्ट कामयाब रहता है तो इससे महिलाओं की सुरक्षा को मजबूत बनाने में काफी मदद मिलेगी। महिलाओं के लिए सड़कों पर सफर अक्सर काफी चुनौती भरा होता है। अनजान रास्तों पर उनका सामना किस तरह के लोगों से होगा, यह सोचकर महिलाएं अक्सर आशंकित रहती हैं। सड़क पर अक्सर अराजक तत्व महिलाओं के साथ छेड़खानी करते हैं। वहीं चलती कार में रेप और यौन हिंसा के कई मामले भी सामने आते हैं। अगर पैनिक बटन का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल संभव हो पाया तो निश्चित रूप से इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा और सफर में होने वाली अनहोनी में भी कमी आएगी।

panic button inside

केंद्र सरकार के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, 'हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट में किसी भी तरह की मदद की जरूरत के लिए टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं। प्रस्तावित पैनिक बटन दबाए जाने पर काफी तेज शोर करेगा, जिससे आसपास के लोगों का ध्यान उस पर जाएगा। यह पैनिक बटन उस गाड़ी की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के सर्वर तक भेज देगा ताकि जरूरी मदद मुहैया कराई जा सके।'

इस सिस्टम में ड्राइवर के ऑथेंटिकेशन और कैमरा इंटरफेस जैसी सुविधाएं भी दी जाएंगी। अधिकारियों का कहना है कि यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि पैनिक बटन के ठीक के काम करने की प्रक्रिया को संचालित किया जा सके और इसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न हो। इस सिस्टम के बीटा वर्जन के लिए फील्ड ट्रायल शुरू हो गया है और उम्मीद है कि मंत्रालय इसका फाइनल वर्जन अगले महीने जारी कर देगा। इसके पहले वर्जन का परीक्षण किया जा चुका है। कारों के लिए फाइनल वर्जन मई में आ जाने की उम्मीद है, वहीं बसों के लिए अगस्त तक इंतजार करना होगा।

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यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद के लिए वन स्टॉप सेंटर्स लॉन्च किए गए थे। मैप में देखा जा सकता है कि निर्भया स्कीम के तहत राज्यों के ओएससी को रकम का आबंटन किया गया। इसके तहत फंड एलोकेशन के मामले में हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर हैं।

निर्भया फंड से विकसित किया जा रहा है प्रोजेक्ट

आईआईटी-दिल्ली की तरफ से विकसित इस प्रोजेक्ट के लिए रकम निर्भया फंड से दी जा रही है। यह फंड साल 2013 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा को बेहतर बनाना था। हालांकि इस फंडा का पूरा उपयोग न किए जाने के लिए सरकार की आलोचना हो रही है।

महिलाओं के खिलाफ होने वाले हिंसा के मामले में साल 2014, 2015 और 2016 के मिले-जुले आंकड़े हैं। सरकारी डाटा के अनुसार साल 2014, 2015 और 2016 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले हिंसा के मामले क्रमश: 3,39,457, 3,29,243 और 3,38954 थे, जिन्हें देखने से स्पष्ट होता है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा में कोई विशेष कमी देखने को नहीं मिल रही।

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