दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाएगी सरकार, स्पेशली चैलेंज्ड के लिए बढ़ेंगी सहूलियतें

दिव्यांग बच्चों की किताबों, यूनिफॉर्म और ट्रांसपोर्ट का खर्च अब सरकार उठाएगी। सरकार ने कहा है कि स्पेशली चैलेंज्ड लोगों को शैक्षणिक संस्थानों में न्यूनतम 5 फीसदी एडमिशन दिया जाएगा।

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डिसेबिलिटी होना कोई अपराध नहीं है। स्पेशली चैंलेंज्ड लोगों की शारीरिक रूप से काम करने में कुछ अक्षमताएं जरूर होती हैं, लेकिन वहीं दूसरी तरफ वे कुछ अन्य काम इतनी बेहतरीन तरीके से कर लेते हैं, जो पूरी तरह से सामान्य लोग भी नहीं कर पाते। लेकिन यह बहुत दुखद है कि स्पेशली चैलेंज्ड बच्चों से लेकर बड़ों तक को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

International Disability Day के मौके पर एचआरडी राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने हेलेन केलर अवॉर्ड्स 2018 के मौके पर कहा, 'देश में लगभग 12 मिलियन लोग स्पेशली चैलेंज्ड हैं, जबकि स्कूलों के लिए इस मद में सिर्फ 1 फीसदी खर्च किया जाता है। स्पेशली चैलेंज्ड लोगों को सिर्फ दया और सम्मान ही नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें वास्तविक सशक्तीकरण भी चाहिए, जो शिक्षा के जरिए ही संभव है। इसे कैसे संभव बनाया जाए, यही सबसे बड़ी चुनौती है।' हेलेन केलर अमेरिकी लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता और टीचर थीं, जो ग्रेजुएशन पाने वाली पहली बधिर और दृष्टिहीन थीं। उन्हीं के सम्मान में हर साल हेलेन केलर अवॉर्ड्स दिए जाते हैं।

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राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने कहा, 'स्पेशली चैलेंज्ड बच्चों के लिए किताबों, यूनिफॉर्म और आवाजाही पर होने वाले खर्च का भार सरकार उठाएगी। साथ ही स्पेशली चैलेंज्ड बच्चियों के लिए 200 रुपये हर महीने दिए जाएंगे। साथ ही इस एकेडमिक सेशन से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी शैक्षणिक संस्थाओं में स्पेशली चैलेंज्ड लोगों को न्यूनतम 5 फीसदी एडमिशन दिया जाए। यह हमारी सरकार की प्राथमिकता है कि स्पेशली चैलेंज्ड लोगों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो।'

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सरकार की तरफ से स्पेशली चैलेंज्ड लोगों के हितों की सुरक्षा की दिशा में बढ़ाया गया यह कदम सराहनीय है क्योंकि देश में ऐसे लोगों के साथ ज्यादती होने के बहुत ज्यादा मामले सामने आते हैं। हाल ही में ह्युमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में अलग-अलग दिव्यांगता वाली लड़कियों और महिलाओं के यौन हिंसा का शिकार होने की आशंका बहुत ज्यादा होती है। सीमित स्तर पर आवाजाही की वजह से उनके लिए ऐसी मुश्किल स्थितियों से बाहर निकलने का रास्ता भी बहुत कठिन होता है। 'Invisible Victims of Sexual Violence: Access to Justice for Women and Girls with Disabilities in India’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया कि specially challenged लड़कियां और महिलाएं, विशेष रूप से जो इंटेलेक्चुअल और साइकोलॉजिकल डिसेबिलिटी की शिकार होने वाली लड़कियों को शायद इस बात की जानकारी नहीं होती कि सहमति के बिना किए गए सेक्शुअल एक्ट अपराध की श्रेणी में आते हैं।' रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसी लड़कियों और महिलाओ की विशिष्ट जरूरतों की बात करना तो दूर, उनके खिलाफ होने वाली हिंसा के मामले रजिस्टर करने के लिए भी सरकार ने कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं की है। बच्चियों के साथ होने वाले यौन अपराध के लिए लाया गया साल 2013 का संशोधन और पॉक्सो एक्ट, 2012 में इस तरह की प्रक्रिया अपनाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन अभी भी ऐसी व्यवस्था देश में उपलब्ध नहीं है।

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मामलों से निपटने के लिए पुलिस भी प्रशिक्षित नहीं

रिपोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी और कहा था कि ज्यादातर मामलों में पुलिस ill-equipped होती है और उसके पास ऐसे मामलों से निपटने के लिए ट्रेनिंग या एक्सपर्ट सपोर्ट नहीं होता। इस रिपोर्ट में, जो मोटे तौर पर physically challenged महिलाओं की बात करती है, में देशभर की 17 रेप पीड़ितों की बात की गई, जो अलग-अलग तरह की दिव्यांगता की शिकार थीं। इस रिपोर्ट में पाया गया कि क्रिमिनल लॉ (Amendment) Act, 2013 के लागू होने के पांच साल बाद भी लड़कियों और महिलाओं को इंसाफ मिलने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।

अपनी पिछली रिपोर्ट ‘Everyone Blames Me: Barriers to Justice and Support Services for Sexual Assault Survivors in India’, जो नवंबर 2017 में प्रकाशित हुई थी, में HRW ने कहा था कि रेप पीड़ितों को मदद और इंसाफ मिलने में अब भी कई तरह की अड़चनों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि इससे जुड़े legal reforms अब भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सके हैं।

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