जब घर में एक बच्चा होता है तो सिर्फ माता-पिता ही नहीं, बल्कि घर के हर सदस्य का ध्यान उसी की ओर होता है। बच्चे की छोटी-छोटी शैतानियां हर किसी के मन को लुभाती हैं। लेकिन जब उसी घर में एक और नया मेहमान आने वाला होता है, तो सभी सदस्य उस मेहमान की तैयारियों में जुट जाते हैं। उसके लिए कपड़े लेने से लेकर खिलौने व अन्य जरूरत की सभी चीजों के बारे में पहले से ही ध्यान दिया जाता है। ऐसे में बड़े बच्चे को समझ नहीं आता कि वह नए मेहमान के आने से खुश हो या परेशान, क्योंकि अब उसकी शरारतों से ज्यादा नन्हें शिशु का ध्यान रखा जाएगा। अब तक जहां वह मम्मी पापा के साथ बेड पर सोता था, वहीं अब छोटा बेबी उनके साथ सोएगा। इस तरह की कई बातें बच्चे को परेशान करती हैं। इस असमंजस की स्थिति से बच्चे को बाहर निकालने के लिए माता-पिता को दूसरे बच्चे के जन्म से पहले ही बड़े बच्चे को तैयार करना बेहद जरूरी है।
करवाएं दोस्ती
रिलेशनशिप काउंसलर रजनी शर्मा कहती है कि बड़े बच्चे की गर्भस्थ शिशु से दोस्ती करवाने का काम केवल एक मां ही कर सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि आप गर्भावस्था में ही बच्चे को यह समझाएं कि आने वाला बच्चा उसका ही भाई या बहन है और उसे इससे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। बच्चे की नन्हें गर्भस्थ शिशु से दोस्ती करवाने के कई तरीके हो सकते हैं, जैसे जब आप गर्भस्थ शिशु के लिए खरीदारी करें तो बड़े बच्चे को अपने साथ रखें और उसे कहें कि वह ही अपने आने वाले भाई के लिए शॉपिंग करें। इसके अतिरिक्त आप उसे कुछ वीडियोज व कहानी के जरिए भाई-बहन के आपसी प्रेम का महत्व समझा सकती हैं। वहीं जब बच्चा जन्म ले ले तो उसके छोटे-मोटे काम बड़े बच्चे से ही करवाएं। इससे भी दोनों की दोस्ती आसानी से हो जाती है। साथ ही ऐसा करने से बड़ा बच्चा खुद को अधिक समझदार व बड़ा समझने लगता है, जिससे उसके मन में कभी भी नन्हें शिशु के ईष्र्याभाव उत्पन्न नहीं होता।
पहले से ही शुरूआत
नन्हें बच्चे के जन्म के बाद घर की स्थिति में होने वाले बदलावों को बड़ा बच्चा जल्दी से स्वीकार नहीं करता और उसके लिए वह शिशु को ही दोषी मानता है। इसलिए यह जरूरी है कि आप बच्चे को पहले से ही बदलावों के लिए तैयार करें। मसलन, बच्चे के जन्म के बाद अगर आप बड़े बच्चे के लिए अलग से बेड तैयार करने वाली है तो इसकी शुरूआत पहले से ही कर दें। चूंकि बच्चे के जन्म के बाद आपके लिए बड़े बच्चे पर बहुत अधिक ध्यान देना संभव नहीं होगा, इसलिए बच्चे को पहले से ही थोड़ा आत्मनिर्भर बनाना शुरू करें। जैसे वह स्कूल से आकर अपना बैग, कपड़े, जूते आदि स्थान पर रखें या अपने कपड़े खुद बदलने की आदत डाले। इस तरह छोटी-छोटी चीजें जब वह पहले से ही खुद करने लगेगा तो बच्चे के जन्म के बाद उसे ऐसा नहीं लगेगा कि उसके मम्मी-पापा का सारा ध्यान व प्यार सिर्फ नन्हें शिशु के लिए ही है।
मनःस्थिति को समझना जरूरी
कहते हैं कि एक बच्चे को उसकी मां से बेहतर और कोई नहीं समझ सकता। एक मां ही होती है, जो बच्चे के बिना बोले ही उसकी जरूरतों को जान जाती है। इसलिए गर्भस्थ शिशु के जन्म से पहले बड़े बच्चे से खुलकर अवश्य बात करें। आप बच्चे की कोमल मनः स्थिति को समझने का प्रयास करें। यह सच है कि नन्हें शिशु को अतिरिक्त केयर की जरूरत होगी, इसलिए आप बच्चे को बताएं कि आने वाला मेहमान बेहद नाजुक है और वह अपनी हर जरूरत के लिए मां पर निर्भर है, इसलिए उसे अधिक समय देना पड़ेगा, लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप उससे प्यार नहीं करतीं या फिर कम करती हैं। इस बात को समझाने के लिए आप किसी खिलौने आदि का सहारा भी ले सकती हैं।
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छोटी-छोटी बातें
बच्चे के मन से किसी भी गलतफहमी दूर करने और उसे यह बताने के लिए आप दोनों को बराबर प्यार करती है, आपको छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना होगा। जैसे जब बड़ा बच्चा नन्हें शिशु के बाद आपसे हॉस्पिटल में मिलने आए तो आपकी गोद में नन्हा शिशु न हो, बल्कि पहले आप बड़े बच्चे के सिर पर हाथ फेंरे और उसे प्यार से पुचकारें। इसी तरह, दिन का एक समय ऐसा अवश्य हो, जब आप तीनों आपस में मिलकर कुछ अच्छा वक्त साथ बिताएं। इसके अतिरिक्त बच्चे के साथ एक एक्टिविटी ऐसी अवश्य करें, जिसमें वह आपसे भरपूर प्रेम प्राप्त कर सके। मसलन, अगर आप नन्हें शिशु के जन्म से पहले बच्चे को रात में कहानी सुनाती थीं, तो उस रूटीन को बिल्कुल न तोड़ें। आप दोनों बच्चों या सिर्फ बड़े बच्चे को गोद में लेकर कहानी सुना सकती हैं। इस तरह की एक्टिविटी से बच्चे को अहसास होता है कि नन्हे शिशु के जन्म के बाद भी आप उससे उतना ही प्यार करती हैं और उसके प्रति आपका प्यार कोई भी नहीं छीन सकता।
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