बच्चे जब खेलते-कूदते हैं और तरह-तरह की शरारतें करते हैं तो घर-परिवार में हर किसी का अच्छा खासा मनोरंजन होता है। लेकिन कभी-कभार बच्चों की शरारतें बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं, जिन्हें संभालना पेरेंट्स के लिए मुश्किल हो जाता है। कई बार बच्चे खुद को नोटिस कराने के लिए चिल्लाते हैं तो कभी बहुत जिद करते हैं वहीं कभी-कभी बच्चे बहुत ज्यादा रोते भी हैं। अगर ऐसी चीजें बच्चे की आदत में शुमार हो जाए तो पेरेंट्स गुस्से में बच्चों को पीट देते हैं या बुरा-भला कह देते हैं, लेकिन इसका असर बच्चों पर अच्छा नहीं होता। ऐसे में बच्चों से समझदारी से डील करना बहुत अहम हो जाता है। आइए जानते हैं कि बच्चे इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं और ऐसे व्यवहार से पेरेंट्स को कैसे डील करना चाहिए।
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इन चीजों का बच्चों पर पड़ता है असर
- बच्चों के जीवन में आने वाले परवर्तन का उन पर गहरा असर होता है। घर में छोटे भाई-बहन का आना, घर शिफ्ट करना, प्ले ग्रुप में जाना, किसी नए बच्चे के संपर्क में आना, परिवार के सदस्यों के साथ व्यवहार, ये सभी चीजें बच्चों के व्यवहार पर असर डालती हैं।
- कई बार पेरेंट्स अपने चैलेंजेस में इतनी बुरी तरह उलझ जाते हैं कि उसका असर बच्चे भी महसूस करते हैं। बच्चों पर पेरेंट्स का नाहक नाराज होना उन्हें गुस्सैल और चिड़चिड़ा बना देता है।
- कई बार पेरेंट्स के बच्चों के साथ बहुत ज्यादा सख्ती से पेश आने की वजह से भी बच्चे पेरेंट्स के प्रति नाराजगी रखते हैं और रिएक्ट करते हैं, ऐसे में पेरेंट्स को अपने व्यवहार के प्रति बहुत सजग रहने की जरूरत होती है।
- बच्चे पेरेंट्स से अटेंशन चाहते हैं और इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। अगर बच्चे थोड़ी-बहुत शरारत कर रहे हैं और शालीनता से पेश आ रहे हैं तो उन्हें प्यार से समझाया जा सकता है और अगर वे थोड़ी ज्यादा शरारत करें तो उनकी हर बात को मानना बहुत जरूरी नहीं है।
बच्चों से डील करते हुए वही करें जो सही हो
कई बार बच्चे पेरेंट्स पर प्रेशर डालकर उनसे कोई बात मनवाना चाहते हैं। मसलन वे अपनी पसंद का सामान खरीदना चाहते हैं, किसी एक्टिविटी में जाना चाहते हैं, टीवी देखना चाहते हैं या अपनी पसंद का कोई और काम करना चाहते हैं। इसमें ये देखना जरूरी है कि बच्चे की बात किस हद तक मानी जा सकती है। अगर बच्चे की बात कुछ हद तक मानी जा सकती है तो उसे इस बारे में स्पष्ट बताएं और अपनी स्थिति भी उसके सामने साफ कर दें। अगर बच्चे की परीक्षाएं हैं और वह अनुशासित नहीं है तो उसके नखरे उठाने के बजाय थोड़ा सख्ती से पेशा आना बच्चे के हित में है। अगर बच्चा बड़े खर्च करने के लिए प्रेशराइज करे तो सिर्फ उसकी बात रखने के लिए उसकी इच्छाएं पूरी करना सही नहीं है।
बच्चे के सामने हार ना माने
कई बार बच्चे अपनी बात मनवाने के लिए बहुत आक्रामकता से पेश आते हैं। जोर-जोर से चिल्लाना, सिर पटकना, कूद-फांद मचाना, घर-भर में दौड़ लगाना जैसी एक्टिविटीज करके बच्चे चाहते हैं कि उनकी बात फौरन मान ली जाए। ऐसी स्थिति में आप बच्चे को इंस्पायर करें कि वह अपनी बात आपसे प्यार से कहे। आप उसकी बात संजीदगी से सुनें और प्यार से उससे बात करें, लेकिन अगर उसकी बात वाजिब नहीं है तो आप अपनी बात पर कायम रहें। बच्चा एक-दो बार जिद करता है, लेकिन जब उसे पेरेंट्स के व्यवहार में कंसिस्टेंसी दिखती है तो वह मान जाता है।
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पेरेंट्स के गुस्सा करने पर बच्चे भी होते हैं चिड़चिड़े
अगर बच्चे किसी बात से नाराज होकर चिल्लाते हैं और जिद करते हैं और आप भी उसी तरह से व्यवहार करते हैं तो उनका व्यवहार हमेशा के लिए ऐसी ही बन सकता है। अगर आप शांत भाव से बच्चे से बात करती हैं तो आप बच्चे को ज्यादा बेहतर तरीके से कन्विंस कर सकती हैं। साथ ही आपके धैर्य से बात करने से धीरे-धीरे बच्चे का गुस्सा भी शांत हो जाता है और वह रिलैक्स होकर आपसे बात करने लगता है।
बच्चों को समय देना है जरूरी
कई बार पेरेंट्स के बिजी होने पर बच्चे अकेला महसूस करते हैं और अपनी प्रॉब्लम्स शेयर नहीं कर पाते और इस सिचुएशन में भी वे ज्यादा गुस्सा करते हैं। अगर बच्चों को पर्याप्त समय दिया जाए, उसके साथ खेलकूद में वक्त बिताया जाए, उसके साथ उनकी प्रॉब्लम्स की चर्चा की जाए और मौज-मस्ती में वक्त बिताया जाए, तो पेरेंट्स के साथ उनकी बॉन्डिंग भी बेहतर होती है। इससे बच्चे मेंटली ज्यादा रिलैक्स रहते हैं और अपनी सिचुएशन को बेहतर तरीके से हैंडल करना सीख लेते हैं और पेरेंट्स के साथ भी अपनी प्रॉब्लम्स को आसानी से साझा करने में कामयाब होते हैं।
Image Courtesy: Imagesbazaar
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